Devotional : शनिवार 14 जनवरी, 2023
मकर संक्रांति एक ऐसा त्योहार है जिसे पूरे भारतवर्ष में विभिन्न रीति- रिवाजों के साथ मनाया जाता है।
उत्तरी भारत में विशेष कर इसे मकर संक्रांति के नाम से ही जाना जाता है। वहीं पूर्वी क्षेत्र में खासकर झारखंड, पश्चिम बंगाल और उड़ीसा में इसे टुसु पर्व भी कहते हैं। वहीं पश्चिम के क्षेत्र खासकर पंजाब में लोहड़ी, दक्षिण भारत में पोंगल, बिहू आदि विभिन्न नामों से जाना जाता हैं। इसे पतंग उत्सव के रूप में भी मनाया जाता है।
ऐसे तो संक्रांति प्रत्येक महीने में आती है लेकिन मकर संक्रांति साल में एक बार आती है। महाभारत काल में बाणों की शय्या पर मरणासन्न अवस्था में पड़े भीष्म पितामह ने इसी दिन का इंतजार किया था और उत्तरायण काल शुरू होने के बाद ही देह त्यागा था।
हिंदू पंचांग के अनुसार, ग्रह नक्षत्रों की विशेष गणना जिसमें ग्रहों के राजा सूर्य का मकर राशि में प्रवेश करना मकर संक्रांति कहलाता है। इस दिन की विशेष महत्ता है।
धार्मिक मान्यता के अनुसार भगवान सूर्य उत्तर दिशा की तरफ प्रयाण करते हैं, उसी दिन उतरायण (मकर संक्रांति) का पर्व मनाया जाता है। इस दिन से ही रात का समय कम होता जाता है और दिन का समय बढ़ता जाता है।
वर्ष 2023 में मकर संक्रांति किस दिन होगी।
मकर संक्रांति को लेकर श्रद्धालुओं में संशय है कि आखिर इसे 14 को मनाए या 15 को? आइये जानते हैं वर्ष 2023 में संक्रांति कब मनाए?
सूर्य 14 जनवरी 2023 की रात, 8 बजकर 21 मिनट पर मकर राशि में गोचर करेंगे। ऐसी स्थिति में सूर्योदय 15 जनवरी को प्राप्त हो रही है। अतः मकर संक्रांति वर्ष 2023 में 15 जनवरी को मनाई जानी चाहिए।
मकर संक्रांति का क्या महत्व है?
ऐसा माना जाता है कि मकर संक्राति के दिन सूर्य भगवान को अर्घ्य देने से धन धान्य की वृद्धि होती है और जीवन में सुख-शांति बढ़ेती है। संक्रांति के दिन जो स्नान नहीं करता वह सात जन्मों तक निर्धन और रोगी रहता है और जो संक्रांति का स्नान कर लेता है वह तेजस्वी और पुण्यात्मा हो जाता है।
इस दिन तिल का विशेष महत्व होता है, खासकर काले तिल का। विभिन्न व्यंजनों में प्रयोग करते हुए खाने के साथ ही इसे दान भी किया जाता है।
संक्रांति के दिन काले तिल का उपयोग करते हुए उबटन भी लगाया जाता है। तिल का उबटन आरोग्यप्रद होता है।
वहीं भगवान सूर्य को भी तिलमिश्रित जल से अर्घ्य दिया जाता है। इस दिन तिल का दान करने से पापनाश। होता है। तो तिल का भोजन आरोग्य देता है। साथ ही तिल का हवन पुण्य देता है। पानी में थोड़े तिल डाल कर पीने से स्वास्थ्य में लाभ मिलता है।
मकर संक्रांति का धार्मिक महत्व
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इस दिन सुर्योद्रय से पूर्व स्नान करने से दस हजार गौदान करने का फल प्राप्त होता है। जो लोग इस दिन पुण्यकर्म करते हैं वे अक्षय पुण्यदायी होते हैं।
सूर्यदेव की विशेष प्रसन्नता हेतु इस मंत्र का जाप करें-
‘पद्म पुराण’ में सूर्यदेवता को प्रसन्न करने का मूल मंत्र है – ॐ ह्रां ह्रीं स: सूर्याय नम:
इस सूर्य मंत्र के जाप से आत्मानंद की प्राप्ति होती है।
मकर संक्रांति का वैज्ञानिक महत्व
तिल, गुड़ से बने व्यंजन, चावल और चने की दाल की खिचड़ी आदि ऋतु-परिवर्तनजन्य रोगों से भी रक्षा करती है। तिलमिश्रित जल से स्नान आदि से भी ऋतु-परिवर्तन के प्रभाव से रोग, चिंता, शोक आदि में लाभ होता है। उत्तरायण काल में स्नान करने से शरीर में नवीन ऊर्जा का संचार होता है।
सूर्य की धूप में खाद्य पदार्थ, जैसे-घी, तेल आदि 3-4 घंटे रखा रहे तो अधिक सुपाच्य हो जाता है। धूप में रखे हुए पानी से स्नान करने से शरीर मजबूत बनता है। साथ ही सूखा रोग (Rickets) नहीं होता और रोगनाशिनी (Humanity) शक्ति बरकरार रहती है।
(सूर्य की किरणों से रोग दूर करने की प्रशंसा ‘अथर्ववेद’ में भी की गई है। कांड –1 के बाइसवें सूक्त के श्लोकों में सूर्य की किरणों का वर्णन आता है)।
सुबह के समय 15-20 मिनट धूप लेना चाहिए। इसे सूर्यस्नान भी कहते हैं। लेटकर सूर्यस्नान करने से अधिक लाभ मिलता है। दिन के समय या कड़ाके की धूप से बचना चाहिए।
सूर्यस्नान का सही वक्त क्या है? सूर्य स्नान के क्या लाभ हैं?
सूर्योदय से 1-2 घण्टे तक ही सूर्य स्नान का समय सही माना जाता है। सूर्य की कोमल धूप होनी चाहिए। इससे मांसपेशियाँ और शरीर की हड्डी तंदुरस्त होती हैं। हड्डियाँ मजबूत बनती हैं।
स्नायुओं का दौर्बल्य दूर होता है। स्नायु की दुर्बलता, शरीर में दुर्बलता, थकान व कमजोरी हो तो प्रतिदिन सूर्यस्नान करना चाहिए।
सूर्यस्नान से त्वचा के रोग भी दूर होते हैं। रक्त में कैल्शियम, फॉस्फोरस व लोहें की मात्राएँ बढ़ती हैं, ग्रंथियों के स्त्रोतों में संतुलन होता है। सूर्यकिरणों से खून का दौरा तेज, नियमित व नियंत्रित रहता है। लाल रक्त कोशिकाएँ जाग्रत होती हैं, रक्त की वृद्धि होती है। सूर्य स्नान से रोगाणुओं का नाश होता है, मस्तिष्क के रोग, आलस्य, प्रमाद, अवसाद, ईर्ष्या-द्वेष आदि शांत होते हैं।
गठिया, लकवा और आर्थराइटिस के रोग में भी लाभ मिलता है। नियमित सूर्यस्नान करने से मन पर नियंत्रण, मन का स्थिर रहना, हार्मोन्स पर नियंत्रण और त्वचा में चमक एवं स्नायुओं में क्षमता, सहनशीलता की वृद्धि होती है।