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झारखंड

स्वास्थ्य मंत्री श्री बन्ना गुप्ता के आदेश पर स्वास्थ्य विभाग द्वारा मानहानि का मुकदमा पर विद्यायक सरयू राय ने लिखा मुख्यमंत्री को लिखा पत्र

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THE NEWS FRAME

जमशेदपुर  |  झारखण्ड 

सेवा में,

माननीय मुख्यमंत्री,

झारखण्ड सरकार, राँची।

विषय: आपकी सरकार के स्वास्थ्य विभाग द्वारा डोरंडा थाना, राँची में मेरे विरूद्ध दायर दूसरी प्राथमिकी संख्या 253/2023 के संबंध में। 

महोदय,

उपर्युक्त विषयक प्राथमिकी दिनांक 29.08.2023 को आपकी सरकार के स्वास्थ्य मंत्री श्री बन्ना गुप्ता के आदेश पर स्वास्थ्य विभाग की विधि प्रशाखा-14 के एक कर्मी द्वारा मेरे विरूद्ध दायर की गई है। इसके पूर्व स्वास्थ्य मंत्री ने इसी मामले में एक मानहानि का मुकदमा मुझ पर दायर किया है। यह दूसरी प्राथमिकी है जो राँची के डोरंडा थाना कांड संख्या 105/2022 में दिनांक 14.06.2023 को न्यायिक दंडाधिकारी XIII द्वारा पारित आदेश के आलोक में दायर की गई है। 

कांड संख्या 105/2022 के अनुसंधानकर्ता ने माननीय न्यायालय से अनुरोध किया था कि 02.05.2022 को दायर इस कांड की प्राथमिकी में अभियुक्त के रूप में मेरा नाम अंकित करना भूलवश छूट गया है, इसलिए मेरा नाम इसमें जोड़ने का आदेश दें। इस कांड में पारित न्यायिक दंडाधिकारी के आदेश में एक जगह अंकित है कि “प्राथमिकी के कॉलम संख्या-7 अर्थात अभियुक्त के कॉलम में मात्र अज्ञात कार्यालय कर्मी अंकित है जबकि कुछ अन्य अंकित लिपि पर व्हाइटनर लगा हुआ है।’’ औपचारिक प्राथमिकी के साथ संलग्न दो लिखित आवेदनों पर प्रासंगिक अभियुक्त श्री सरयू राय, माननीय सदस्य, झारखंड विधानसभा, राँची का नाम उल्लिखित है।”

मेरे विरूद्ध दायर यह दूसरी प्राथमिकी संख्या 253/2023, दिनांक 29.08.2023 दायर करने के लिए स्वास्थ्य विभाग की विधि प्रशाखा ने न्यायिक दंडाधिकारी के आदेश के उपर्युक्त अंश की मनमाना व्याख्या किया है जो सही नहीं है। मेरे विरूद्ध दायर स्वास्थ्य विभाग की दूसरी प्राथमिकी में न्यायिक दंडाधिकारी के आदेश में अपनी बात डालने की कोशिश की गई है, जो निम्नवत है:-

“दूसरे शब्दों में यह कहा जाना अतिशयोक्ति नहीं होगी कि विद्वान दंडाधिकारी ने 

अपने आदेश में स्पष्ट संकेत दे दिया है कि दर्ज प्राथमिकी के कॉलम-7 में नामित अभियुक्त के नाम से छेड़छाड़ किये जाने के लिये व्हाइटनर का उपयोग कर कतिपय उपलब्ध साक्ष्य को मिटाने का अपराध अभियुक्त को लाभ पहुँचाने के उद्देश्य से जानबूझकर की गई कूटरचना का फलाफल है’’

न्यायिक दंडाधिकारी के आदेश की उपर्युक्त मनमाना व्याख्या करते हुए आपकी सरकार के स्वास्थ्य मंत्री ने भा.द.वि. की धाराओं 109, 201, 204, 218, 120ठ, 468 एवं 471 के अंतर्गत पुलिसकर्मियों, संलिप्त अज्ञात व्यक्तियों सहित लाभान्वित होने के नाते श्री सरयू राय, मा.स.वि.स. यानी मुझको, नामित करते हुए दूसरी प्राथमिकी दर्ज करने का आदेश संचिका में दिया है और प्राथमिकी संख्या 253/2023, दिनांक 29.08.2023 रांची के डोरण्डा थाना में दर्ज कराया है। इस प्राथमिकी पर पत्रांक-01/स्था.मु.(विविध)-05-08/ 2023-362(वि.को.) स्वा., राँची, दिनांक-29.08.2023 अंकित है। इससे स्पष्ट है कि मेरे उपर प्राथमिकी दर्ज करने का यह आदेश स्वास्थ्य विभाग की इस संचिका में स्वास्थ्य मंत्री ने दिया है। 

माननीय मुख्यमंत्री जी, उपर्युक्त विवरण के आलोक में सवाल उठता है कि:-

1. न्यायिक दंडाधिकारी के प्रासंगिक आदेश पर मंतव्य स्थिर करने के लिए आपके स्वास्थ्य मंत्री ने महाधिवक्ता अथवा किसी सक्षम विधि विशेषज्ञ का परामर्श प्राप्त किया है या यह ताल-तिकड़म में माहिर उनके उर्वर मस्तिष्क की उपज है?

2. मेरे ऊपर दायर इस प्राथमिकी में न्यायिक दंडाधिकारी के आदेश के जिस अंश को उद्धृत किया गया है उसमें कहीं भी यह नहीं कहा गया है कि व्हाइटनर मेरे नाम पर लगाया हुआ है। बल्कि न्यायिक दंडाधिकारी के आदेश में उल्लेख है कि व्हाइटनर किसी अन्य अंकित लिपि पर लगा है। ऐसी स्थिति में स्वास्थ्य मंत्री ने कैसे समझ लिया कि अन्य अंकित लिपि की जगह मेरा ही नाम है ? क्या स्वास्थ्य मंत्री ने यह संपुष्ट करने का प्रयास किया कि जितनी लंबाई-चैड़ाई में व्हाइटनर लगा है, उतनी लंबाई-चैड़ाई में मेरा नाम अंट सकता है या नहीं ?

3. अभ्युक्तीकरण के जिस पृष्ठ पर व्हाइटनर लगा है उस पृष्ठ की अतिरिक्त प्रतियाँ अनुसंधानकर्ता के पास हैं या नहीं ? यदि हैं तो व्हाइटनर लगी प्रति की जगह पर वे इसे न्यायिक दंडाधिकारी के समक्ष प्रस्तुत कर सकते थे। सवाल है कि ऐसा उन्होंने क्यों नहीं किया? संचिका पर मेरे विरूद्ध प्राथमिकी दर्ज करने का आदेश करने वाले स्वास्थ्य मंत्री और उनके अधिकारियों ने इस तथ्य पर विचार क्यों नहीं किया ?

4. न्यायिक दंडाधिकारी के जिस आदेश को एक अंश के आधार पर स्वास्थ्य मंत्री ने मुझपर प्राथमिकी दर्ज करने का आदेश देने की नासमझी दिखाया है उसी आदेश में अनुसंधानकर्ता के हवाले से न्यायिक दंडाधिकारी ने अंकित किया है कि “प्रासंगिक कांड में प्राथमिकी दर्ज करते समय भूलवश अभियुक्त कॉलम में अभियुक्त श्री सरयु राय, माननीय सदस्य, झारखंड विधानसभा, राँची का नाम अंकित करना छूट गया था।” सवाल है कि यह भूल किसने की? यह भूल मुझपर प्राथमिकी करने का आदेश देनेवाले स्वास्थ्य मंत्री के कार्यालय के कर्मी ने की या स्वयं कांड के अनुसंधानकर्ता ने की? यदि यह भूल पहली प्राथमिकी का मज़मून तैयार करने वाले स्वास्थ्य मंत्री के विभागीय अधिकारियों/कर्मियों ने की तो क्या मंत्री जी ने उनपर कोई कारवाई किया? 

5. स्वास्थ्य मंत्री ने विभागीय कर्मियों पर दबाव डालकर चार-पाँच दिन बाद रांची के डोरंडा थाना प्रभारी को पत्र भेजवाया कि प्राथमिकी में श्री सरयू राय का अर्थात मेरा नाम भूलवश छूट गया है, इसे भी प्राथमिकी में जोड़ा जाय। उस समय मेरा नाम नहीं जुट पाया तो बाद में स्वास्थ्य मंत्री ने षडयंत्र किया और व्हाट्नगर लगाने के बहाने मेरा नाम प्राथमिकी में जुड़वाया और न्यायिक दंडाधिकारी के आरोप की गलत व्याख्या कर मुझपर दूसरी प्राथमिकी दर्ज कराया। मुख्यमंत्री जी वस्तुतः असली षडयकारी तो आपकी सरकार के स्वास्थ्य मंत्री हैं, जिन्होंने विभागीय अधिकारियों पर दबाव डालकर प्राथमिकी में मेरा नाम जोड़ने के लिए प्राथमिकी होने के चार दिन बाद एक पत्र डोरंडा थाना, रांची को भेजवाया।

6. न्यायिक दंडाधिकारी के इस आदेश में यह भी अंकित है कि इस बारे में बाद में दिनांक 05.05.2022 को ज्ञापांक 2064/2022 द्वारा अनुसंधानकर्ता ने श्री सरयू राय का नाम जोड़ने के लिए अलग से अनुरोध पत्र दिया है और आग्रह किया है कि प्राथमिकी के अभियुक्त कॉलम में श्री सरयू राय का नाम जोड़ने की कृपा की जाय। जब अनुसंधानकर्ता का यह अनुरोध पत्र पूर्व से न्यायिक दंडाधिकारी के यहाँ था तब अभियुक्त कॉलम पर व्हाइटनर लगा देने से मैं कैसे लभान्वित हो जाता? इस प्राथमिकी की अंतिम पंक्ति में स्वास्थ्य मंत्री के विभाग में प्रतिनियुक्त एक कर्मी ने अज्ञात कर्मियों पर और लाभान्वित होने वाले के रूप में मुझ पर नामजद प्राथमिकी दर्ज किया है। ऐसा करने का षडयंत्र निश्चित रूप से स्वास्थ्य मंत्री के निर्देश पर हुआ है। दूसरी प्राथमिकी में मुझे नामज़द अभियुक्त बनाने की साज़िश आपके स्वास्थ्य मंत्री द्वारा ही रची गई है।

7. यदि एक क्षण के लिए मान लिया जाय कि मुझे लाभ पहुँचाने के लिए प्रासंगिक कांड के अभियुक्त कॉलम पर व्हाइटनर लगाने का षडयंत्र हुआ है तो सवाल उठता है कि यह षडयंत्र किसने किया है? मेरी समझ से व्हाइटनर लगाने का काम दो जगहों में से ही किसी एक जगह पर हो सकता है। एक, डोरंडा थाना में, जहां अनुसंधानकर्ता का अभिलेख संरक्षित है और दूसरा, न्यायिक दंडाधिकारी के कार्यालय में जहाँ अनुसंधानकर्ता द्वारा अभिलेख जमा किया गया है। यदि न्यायिक दंडाधिकारी के कार्यालय में जमा होने के पूर्व अनुसंधानकर्ता के यहाँ ही अभिलेख के प्रासंगिक पृष्ठ पर व्हाइटनर लगाया गया है तब इसकी जाँच और आरोप गठन डोरंडा थाना को केन्द्र में रखकर होनी चाहिए थी और व्हाइटनर लगाने वाले की शिनाख्त डोरंडा थाना में की जानी चाहिए थी। तब जाँच की सूई अनुसंधानकर्ता अथवा उनके निर्देशानुसार न्यायिक दंडाधिकारी कार्यालय में अभिलेख जमा करने हेतु ले जाने वाले पुलिसकर्मी की ओर जायेगी।

8. अन्यथा यह माना जाएगा कि पुलिस द्वारा अभिलेख न्यायिक दंडाधिकारी के यहाँ सही स्थिति में जमा हुआ और न्यायिक दंडाधिकारी के कार्यालय में इस पर किसी के द्वारा व्हाइटनर लगा दिया गया। ऐसी स्थिति में षडयंत्र की जाँच करने के लिए विधि-सम्मत तरीक़ा से न्यायिक दंडाधिकारी के समक्ष आग्रह पत्र जमा करना चाहिए था। पर ऐसा क्यों नहीं हुआ? इस महत्वपूर्ण पहलू की अनदेखी किसके आदेश से हुई? आपके स्वास्थ्य मंत्री ने संचिका पर मेरे विरूद्ध प्राथमिकी दर्ज करने का आदेश देते समय इस पहलू पर विचार क्यों नहीं किया? 

चुकि इस मामले में आपकी सरकार के स्वास्थ्य मंत्री को षडयंत्र की बू आ रही है और मुझे षडयंत्र का लाभुक मानकर उन्होंने मुझपर अलग से दूसरी प्राथमिकी दर्ज करने का निर्देश संचिका में दिया है, इसलिये आपसे निवेदन है कि षडयंत्र या कूटरचना की जाँच उपर्युक्त बिंदुओं के आलोक में की जाय और इसमें स्वास्थ्य मंत्री की भूमिका की भी जाँच हो, ताकि पता चल सके कि षडयंत्र/कूटरचना का सूत्रधार मैं हूँ या आपके स्वास्थ्य मंत्री हैं? 

माननीय मुख्यमंत्री जी, आपके स्वास्थ्य मंत्री के भ्रष्ट आचरण का ठोस प्रमाण मैंने आपके सामने एवं विधानसभा के पटल पर कई बार रखा है। वस्तुतः आपकी सरकार का स्वास्थ्य विभाग भ्रष्टाचार और लूट का अड्डा बन चुका है। जनहित वाली योजनाएँ यहाँ दम तोड़ रही हैं। राज्य भर के मेडिकल काॅलेज एवं अस्पताल, सदर अस्पताल, सीएचसी, पीएचसी बदहाल हैं। खरीदे गये नये एंबुलेंसों में जीवन रक्षक उपकरण आधे-अधूरे हैं या नदारद है। स्वास्थ्य मंत्री के भ्रष्ट आचरण और स्वास्थ्य विभाग के भ्रष्टाचार के मामले उठाने पर मंत्री मुकदमा करते हैं, लीगल नोटिस देते हंै। इस पर आपके स्तर से कार्रवाई नहीं होगी तो माना जाएगा कि स्वास्थ्य विभाग पर आपका नियंत्रण नहीं रह गया है और आपकी सरकार का स्वास्थ्य विभाग जनस्वास्थ्य एवं जनहित विरोधी कार्य कर रहा है, मरीजों की जान ले रहा है। 

अनुरोध है कि कृपया स्वास्थ्य मंत्री की जनविरोधी गतिविधियों के नियंत्रित करने और इनकी षडयंत्रकारी गतिविधियों पर जनहित में रोक लगाने की कारवाई करेंगे। 

सधन्यवाद,

भवदीय

(सरयू राय)

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