झारखंड
वरिष्ठ नागरिक दुर्व्यवहार जागरूकता दिवस पर ओल्ड एज होम में कार्यक्रम आयोजित

जमशेदपुर । नालसा एवं झालसा के निर्देश पर जिला विधिक सेवा प्राधिकार जमशेदपुर द्वारा विश्व वरिष्ठ नागरिक दुर्व्यवहार जागरूकता दिवस पर कार्यक्रम आयोजित किया गया।
इस मौके पर बतौर मुख्य अतिथि उपस्थित डालसा सचिव धर्मेन्द्र कुमार ने कहा कि भारत में बुज़ुर्ग महिलाओं एवं वृद्ध लोगों की देखभाल एवं संरक्षण के लिए कई कानून मौजूद हैं जो उनकी गरिमा, सम्मानपूर्ण जीवन एवं भरण-पोषण के अधिकार की रक्षा करते हैं।
“भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023” ने दंड प्रक्रिया संहिता 1973 का स्थान लिया है और इसे नागरिक-केन्द्रित दृष्टिकोण से तैयार किया गया है, जिसमें बुज़ुर्गों के अधिकारों की विशेष सुरक्षा सुनिश्चित की गई है। उन्होंने कहा कि भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 में निम्न बातों का प्रावधान किया गया है जिसके तहत धारा 144(1) (d) में स्पष्ट किया गया है कि यदि किसी माता या पिता के पास अपने जीवनयापन के लिए आवश्यक संसाधन नहीं हैं, तो वे अपने संतान से भरण-पोषण पाने के अधिकारी हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने यह भी निर्णय दिया है कि केवल पुत्र से नहीं, बल्कि पुत्री से भी भरन पोषण की मांग कर सकते हैं ।
अतः एक विवाहित बेटी भी अपने माता-पिता की भरण-पोषण की जिम्मेदारी से विमुख नहीं हो सकती।
न्यायपालिका ने यह भी रेखांकित किया है कि विधिक कर्तव्य के साथ-साथ भारतीय संस्कृति और नैतिकता भी संतान को अपने वृद्ध माता-पिता की देखभाल करने की जिम्मेदारी सौंपती है। यह प्रावधान धर्म, लिंग या वैवाहिक स्थिति की परवाह किए बिना सभी पर लागू होता है।
यदि कोई विधवा सौतेली माँ स्वयं का पालन-पोषण करने में असमर्थ है, तो वह अपने सौतेले पुत्र से भी भरण-पोषण की मांग कर सकती है। यह प्रावधान सामाजिक न्याय के आधार स्तंभ के रूप में कार्य करता है और संविधान के अनुच्छेद 15(3) और अनुच्छेद 39 के उद्देश्यों के अनुरूप है, जो महिलाओं, बच्चों और वृद्धों की विशेष सुरक्षा की बात करता है।
वहीं कार्यक्रम में विशिष्ट अतिथि के रूप में उपस्थित वरिष्ठ मध्यस्थ अधिवक्ता के के सिन्हा ने वरिष्ठ नागरिकों का संरक्षण अधिनियम, 2007 के बारे में जानकारी देते हुए बताया कि माता-पिता एवं वरिष्ठ नागरिकों का भरण-पोषण और कल्याण अधिनियम, 2007 भारत सरकार द्वारा विशेष रूप से माता-पिता एवं वृद्धजनों के कल्याण हेतु पारित किया गया है। इस अधिनियम के अनुसार माता-पिता शब्द में जैविक, दत्तक, सौतेले माता-पिता शामिल हैं।
संतान या अन्य संबंधी वृद्धजन की देखभाल के लिए उत्तरदायी होते हैं। यदि कोई व्यक्ति वृद्धजन को जानबूझकर किसी स्थान पर छोड़कर चला जाता है, तो उसे तीन माह तक की कारावास, या पांच हज़ार रुपये तक का जुर्माना, या दोनों दंड मिल सकते हैं। श्री सिन्हा ने कहा कि यह अधिनियम दंडनीय अपराधों को जमानती और संज्ञानात्मक बनाता है।
साथ ही राज्य सरकारों को इस अधिनियम के प्रभावी क्रियान्वयन हेतु नियमित मूल्यांकन और निगरानी करनी होती है। अर्थात बुज़ुर्ग महिलाओं की उपेक्षा या उनके साथ की गई हिंसा न केवल नैतिक अपराध है, बल्कि कानून के तहत एक दंडनीय अपराध भी है। चाहे वह पुत्र हो या पुत्री, विवाह के बाद भी माता-पिता के प्रति उत्तरदायित्व समाप्त नहीं होते।
कार्यक्रम के दौरान बुजुर्ग लोगों ने भी अपनी समस्याओं को डालसा सचिव के सामने शेयर किया , जिसके समाधान के उपाय भी बताए गए और जरूरत पड़ने पर डालसा सचिव ने खुद 15 दिन में भ्रमण करने की बात कही।
जागरूकता कार्यक्रम में डालसा के प्रधान सहायक संजय कुमार, पीएलवी प्रकाश मिश्रा, संजय तिवारी नागेन्द्र कुमार, दिलीप जायसवाल, आशीष प्रजापति, सुनीता कुमारी, सुनीता झा सहित ओल्ड एज होम में रह रहे काफी संख्या में वृद्ध महिला पुरुष उपस्थित थे।