शिक्षा
आठवां अजूबा झारखण्ड का सरकारी स्कुल, गर्मी के मौसम में बच्चों लग रही ठंढ

🔥भीषण गर्मी में स्वेटर वितरण का कारनामा: झारखंड के सरकारी स्कूल ने रचा “आठवां अजूबा”
📍 स्थान: उत्क्रमित मध्य विद्यालय, खरखरी, बिरनी प्रखंड, गिरिडीह
✨ मुख्य बिंदु:
- भीषण गर्मी में स्कूल ने बच्चों के बीच स्वेटर बांटे
- तापमान 42 डिग्री के पार, फिर भी वितरण कार्यक्रम आयोजित
- ग्रामीणों में गहरा आक्रोश, विभाग रहा बेखबर
- शिक्षा विभाग ने विद्यालय प्रशासन पर जताई नाराज़गी
- जांच के आदेश, दोषियों पर कार्रवाई तय
पूरा मामला:
गिरिडीह जिले के बिरनी प्रखंड से हैरान करने वाली खबर सामने आई है, जहां इन दिनों तपती गर्मी के बीच उत्क्रमित मध्य विद्यालय, खरखरी में बच्चों के बीच स्वेटर का वितरण कर दिया गया।
जब पूरा इलाका 42 डिग्री सेल्सियस तापमान की भीषण गर्मी से झुलस रहा है, तब स्कूल प्रशासन ने ठंड के मौसम की वस्तु यानी स्वेटर बच्चों को सौंप दिया, मानो विद्यालय और शिक्षा विभाग को भी “कड़ाके की ठंड” महसूस हो रही हो!
ग्रामीणों ने इस अनोखी घटना पर तीखी प्रतिक्रिया दी है और इसे “आठवां अजूबा” करार दिया है। ग्रामीणों का कहना है कि,
“इतनी भयंकर गर्मी में बच्चों को स्वेटर बांटना हास्यास्पद और प्रशासनिक लापरवाही का उदाहरण है।“
ग्रामीणों ने यह भी आरोप लगाया कि विद्यालय ने पिछले वर्ष ही इन स्वेटरों का वितरण नहीं किया था। समय रहते कपड़े बांटे जाते तो छात्र लाभान्वित हो सकते थे, लेकिन अब इस भीषण गर्मी में वितरण का कोई औचित्य नहीं बचा है।
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🏫 विद्यालय प्रशासन का पक्ष:
विद्यालय के प्रधानाध्यापक रामप्रसाद यादव ने सफाई देते हुए कहा कि,
“ये स्वेटर पिछले वर्ष के हैं, जो स्टॉक में बचे हुए थे, इसलिए अब वितरित किए गए।“
हालांकि, उनका यह तर्क ग्रामीणों और शिक्षा विभाग को संतोषजनक नहीं लगा।
🏛️ शिक्षा विभाग की प्रतिक्रिया:
बिरनी बीईओ (प्रखंड शिक्षा पदाधिकारी) अशोक कुमार ने इस पूरे मामले पर नाराजगी जाहिर करते हुए कहा कि,
“प्रधानाध्यापक की लापरवाही से विभाग की छवि खराब हो रही है। भीषण गर्मी में स्वेटर वितरण पूरी तरह अनुचित है। मामले की जांच कर दोषी प्रधानाध्यापक पर कठोर कार्रवाई की जाएगी।”
📌 निष्कर्ष:
इस घटना ने एक बार फिर दिखा दिया कि कैसे कुछ लापरवाह निर्णय सरकारी शिक्षा व्यवस्था की गंभीरता पर सवालिया निशान खड़े कर देते हैं। बच्चों के हक के संसाधनों का सही समय पर उपयोग न हो पाना, न केवल शिक्षा व्यवस्था की खामियों को उजागर करता है, बल्कि सरकारी तंत्र की सुस्ती और उदासीनता को भी सामने लाता है।
अब देखना यह है कि जांच के बाद दोषियों पर कितनी सख्त कार्रवाई होती है और क्या भविष्य में बच्चों के हितों की रक्षा के लिए विभाग सतर्क होता है या नहीं।