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Pahalgam Terror Attack : बेजा न हो सैयद आदिल हुसैन शाह की कुर्बानी – आनंद सिंह

Pahalgam Terror Attack : Syed Adil Hussain Shah’s sacrifice should not go in vain – Anand Singh
“मजहब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना”
सैयद आदिल हुसैन शाह—एक साधारण नाम, मगर असाधारण हिम्मत। जम्मू-कश्मीर के पहलगाम के एकमुकाम इलाके के इस युवक ने आतंकवाद के सामने खड़े होकर वो कर दिखाया, जो शायद पूरी दुनिया को एक सच्चे इंसान और सच्चे भारतीय की परिभाषा समझा गया।
🔍 कुछ जरूरी सवाल –
- क्या हम अब भी कश्मीरी मुसलमानों को शक की निगाह से देखेंगे?
- क्या हम आतंकियों और आम नागरिकों में फर्क करना भूल जाएंगे?
- क्या सोशल मीडिया पर जहर फैलाकर हम सैयद आदिल हुसैन शाह जैसी कुर्बानियों को मिटा देंगे?
कश्मीरी मुसलमान: आतंकवाद के खिलाफ आवाज
- कश्मीर में स्वतः स्फूर्त बंदी हुई, किसी पार्टी ने नहीं करवाई।
- लोगों के चेहरों पर दुख भी था और गुस्सा भी।
- क्योंकि आदिल अकेले नहीं थे, कई और लोग थे जिन्होंने आतंकियों का विरोध किया। कुछ की जानकारी है, कुछ की आगे मिलेगी।
आतंकियों के सामने खड़े होकर पर्यटकों की रक्षा में शहीद हुए पहलगाम के सैयद आदिल हुसैन शाह की बहादुरी जितनी भी सराही जाए, कम है।
उनकी देशभक्ति और वीरता को नमन करते हुए वरिष्ठ पत्रकार श्री आनंद सिंह जी ने एक विस्तृत विचार साझा किया है, जिसमें उन्होंने यह स्पष्ट किया है कि एक देशभक्त मुसलमान और एक आतंकवादी इस्लामी कट्टरपंथी के बीच क्या मूलभूत अंतर होता है।
उन्होंने बताया कि कैसे सैयद आदिल हुसैन शाह जैसे भारतीय मुसलमान अपनी जान की परवाह किए बिना निर्दोष पर्यटकों की रक्षा के लिए आतंकियों के सामने डटकर खड़े हो गए — जबकि हमलावर पाकिस्तानी आतंकवादी इस्लाम के नाम पर इंसानियत की हत्या कर रहे थे।
आतंकियों के सामने खड़े होकर पर्यटकों की रक्षा में शहीद हुए पहलगाम के आदिल शाह – श्री आनंद सिंह
सैयद आदिल हुसैन शाह को आप जानते हैं? आप कहेंगे, क्या बकवास कर रहा हूं मैं। मैं बकवास नहीं कर रहा। आज आपको बताऊंगा कि सैयद आदिल हुसैन शाह कौन थे और कैसे उनकी जान गई। लेकिन, आपको हिंदू-मुस्लिम वाला चश्मा पहले उतार कर फेंकना होगा। आपको जम्मू-कश्मीर वाला चश्मा भी उतार कर फेंकना होगा। आपको सिर्फ और सिर्फ एक भारतीय की नजर से इसे देखना होगा अन्यथा आपकी खोपड़ी में वह बात नहीं घुसेगी, जो मैं आपको बताना चाहता हूं।
📌 कौन थे सैयद आदिल हुसैन शाह?
- पेशे से एक खच्चर चालक
- रोज़ पर्यटकों को पहाड़ों की सैर कराते थे
- 700-800 रुपये की कमाई से घर का पालन-पोषण
- ना कोई राजनैतिक रुतबा, ना सोशल मीडिया पर कोई अभियान – बस एक आम भारतीय
सैयद आदिल हुसैन शाह पहलगाम के एकमुकाम इलाके के बाशिंदे थे। वह खच्चर पर पर्यटकों को बिठाकर उन्हें सैर कराते थे। रोज का 700-800 रुपये कमाते थे। वह इन्हीं पैसों से अपने घर को चलाते थे। घर में कमाने वाला कोई और नहीं था। बहुत पढ़े-लिखे भी नहीं थे।
🚨 आतंकियों के सामने सीना तान कर खड़े हो गए
बैसरन, पहलगाम में जब पाकिस्तानी आतंकियों ने हमला किया, पर्यटकों को निशाना बनाया, तब आदिल शाह पीछे नहीं हटे। उन्होंने डटकर आतंकियों से कहा:
“ये हमारे मेहमान हैं, इन्हें मत मारो। इससे हमारा घर चलता है। यह इस्लाम के भी खिलाफ है।”
आदिल ने एके-47 छीनने की कोशिश की, मगर आतंकियों ने उन्हें पांच गोलियां मार दीं। वहीं शहीद हो गए – मगर एक संदेश देकर गए जो आने वाली पीढ़ियों को रास्ता दिखाएगा।
जब आतंकवादियों ने पहलगाम के बैसरन में पर्यटकों को मारना शुरु किया तो सैयद आदिल हुसैन शाह आतंकियों के सामने खड़े हो गये। प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार, उन्होंने आतंकियों से कहा कि वे जो कर रहे हैं वह गलत है। ये पर्यटक हैं। कश्मीर घूमने आए हैं। अतिथि हैं। निर्दोष हैं। ये आते हैं तो हमें दो-चार पैसे मिलते हैं और घर चलता है। आप इन्हें न मारो। यह इस्लाम के खिलाफ है। ये किस धर्म के हैं, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। ये हमारे मेहमान हैं।
तब आतंकियों ने उन्हें जोर का धक्का दे दिया। वह उठे। फिर आतंकियों से भिड़ गये। आतंकियों की एके-47 छीनने की कोशिश की। तब आतंकियों ने उन्हें मौत के घाट उतार दिया। उन्हें पांच गोलियां मारी गईं।
यहीं पर रुकें। आतंकियों का मजहब क्या था? इस्लाम। सैयद आदिल हुसैन शाह का मजहब क्या था? इस्लाम। मारने वाला इस्लाम को मानने वाला, मरने वाला भी इस्लाम को मानने वाला। दोनों इस्लाम को मानने वाले थे। लेकिन, मारने वाले ने यह नहीं समझा कि जिसे वह मारने जा रहा है, वह भी इस्लाम को मानने वाला है। मारने वाले पाकिस्तानी थे। मरने वाला हिंदुस्तानी। हिंदुस्तानी मुसलमान ने अपनी जान इसलिए दे दी, क्योंकि वह हिंदुस्तानी हिंदू को बचाना चाहता था। क्योंकि इसी हिंदुस्तानी हिंदू के आने-जाने से उसका घर चलता था। ये बात समझनी होगी कि हिंदुस्तान का मुसलमान हिंदुओं का शत्रु नहीं है। बेशक यहां पर मामला पर्यटन का है लेकिन जान पर खेल कर पर्यटक को बचाने वाली भावना को भी देखने की जरूरत है। ऐसे कई लोग थे उस वारदात में, जो पाकिस्तानी आतंकियों की खिलाफत कर रहे थे। कुछ की जानकारी हो पाई है, कुछ की बाद में होगी।
भारत सरकार आने वाले दिनों में पाकिस्तान के खिलाफ सैन्य कार्रवाई करेगी, यह प्रायः तय है। अभी तो मात्र पांच बड़े फैसले किये गए हैं। लेकिन, उस दौर में भी आपको कश्मीर के मुसलमानों को शक के नजरिये से नहीं देखना होगा। 35 साल से तिल-तिल कर मर रहे इन कश्मीरी मुसलमानों को बीते दो वर्षों में खुली हवा में सांस लेने का मौका मोदी सरकार में ही मिला था और अब उस पर ग्रहण लगता दिखा तो बेचैनी लाजिमी है। आपने स्वतःस्फूर्त जम्मू-कश्मीर बंदी देखी या नहीं? यह किसी पार्टी के कौल पर बंद नहीं था। यह ऑटोमैटिक था।
इस दौर में बकवासबाजी की कोई जरूरत नहीं है। हिंदू-मुसलमान करने की भी कोई जरूरत नहीं है। सोशल मीडिया पर जो जहर फैलाया जा रहा है, उसे रोकने की जरूरत है। पूरा देश गम और गुस्से में है लेकिन उस गम और गुस्से में आपको एक बार सैयद आदिल हुसैन शाह के बारे में भी सोचना होगा। विविधताओं से भरपूर इस देश में हर कोने में सैयद आदिल हुसैन शाह हैं। जरूरत इस बात की है कि हम सैयद आदिल हुसैन शाह जैसों की कुर्बानी को याद रखें। भारत सरकार एक्शन में है। आप कुछ ऐसा न करें कि सरकार ही हतोत्साहित हो जाए।
✍️ रिपोर्ट: आनंद सिंह
❗ इस्लाम के नाम पर कत्ल? मगर किसका?
यहां मारने वाला भी मुसलमान था, मरने वाला भी। फर्क सिर्फ इतना था:
- मारने वाला पाकिस्तानी था, जो इस्लाम की गलत व्याख्या के तहत आतंक फैला रहा था
- मरने वाला हिंदुस्तानी था, जो इस्लाम की असल तालीम – इंसानियत – के लिए जान दे गया
एक आदिल हर शहर में है, बस पहचानने की जरूरत है
आदिल हुसैन शाह जैसे लोग ही हैं जो भारत की आत्मा को जिंदा रखते हैं।
उनकी कुर्बानी को किसी मजहबी चश्मे से नहीं देखा जाना चाहिए।
अगर हम अब भी न जागे, तो वह मानसिकता जीत जाएगी जो “धर्म” के नाम पर इंसानियत को कुचलती है।
🕊️ संदेश:
“भारत सरकार एक्शन में है, मगर हमें भी इंसानियत के साथ खड़ा रहना होगा।
सैयद आदिल हुसैन शाह की कुर्बानी को बेकार न जाने दें। उन्हें याद रखें, बताएं, और गर्व करें।”