झारखंड
🌍 अर्थ डे 2025: टाटा स्टील जूलॉजिकल पार्क ने ग्रामीण युवाओं को जैव-कीटनाशक निर्माण में दिखाया नया रास्ता

पटमदा प्रखंड के पलाशबनी गांव में “हमारा पावर, हमारा प्लैनेट” थीम पर आयोजित हुई व्यावहारिक कार्यशाला
📅 जमशेदपुर, 22 अप्रैल 2025:
पृथ्वी दिवस 2025 के अवसर पर टाटा स्टील जूलॉजिकल पार्क ने एक महत्वपूर्ण पहल करते हुए पटमदा प्रखंड के पलाशबनी गांव में ग्रामीण युवाओं और महिलाओं के लिए “घर पर जैव-कीटनाशक निर्माण” पर केंद्रित एक विशेष कार्यशाला आयोजित की। इस कार्यशाला का उद्देश्य पर्यावरण संरक्षण, जैव विविधता के महत्व और सतत कृषि को लेकर ग्रामीण समाज में जागरूकता फैलाना था।
यह आयोजन बिदु चंदन ट्रस्ट फॉर ट्राइबल सेल्फ-एम्पावरमेंट के सहयोग से हुआ, जो वर्षों से आदिवासी समुदायों के सशक्तिकरण में जुटा है। गांव की सीमाएं राष्ट्रीय राजमार्ग 33 से जुड़ी होने के बावजूद, यहां की आबादी अब भी पर्यावरणीय संसाधनों पर गहराई से निर्भर है।
Read More : दारुण दशा में आई पृथ्वी को मरहम की जरूरत – अंशुल शरण
🎯 मुख्य बिंदु:
- थीम: “Our Power, Our Planet – हमारा पावर, हमारा प्लैनेट”
- प्रशिक्षण: किचन गार्डन और घरेलू सामग्रियों से जैव-कीटनाशक बनाना
- प्रशिक्षिका: डॉ. सीमा रानी, जीवविज्ञानी एवं शिक्षा अधिकारी, टाटा जू
- लाभार्थी: पलाशबनी गांव के ग्रामीण युवा और महिलाएं
- लक्ष्य: पर्यावरण-अनुकूल कृषि को बढ़ावा देना और मिट्टी की उर्वरता बनाए रखना
🔬 विज्ञान और व्यवहारिक ज्ञान का अनूठा संगम
डॉ. सीमा रानी ने घरेलू कचरे, नीम के पत्ते, गोमूत्र और अन्य जैविक तत्वों से कीटनाशक तैयार करने की विधियों को सरल भाषा में समझाया और现场 डेमो भी दिया। उन्होंने बताया कि रसायनों पर निर्भरता घटाकर हम न सिर्फ खेती की लागत घटा सकते हैं, बल्कि पर्यावरण की रक्षा भी कर सकते हैं।
🌾 विश्लेषणात्मक निष्कर्ष:
इस कार्यशाला के जरिए यह स्पष्ट हुआ कि पर्यावरण संरक्षण सिर्फ शहरी अवधारणा नहीं, बल्कि ग्रामीण जीवनशैली का भी अभिन्न हिस्सा है। टाटा स्टील जूलॉजिकल पार्क की यह पहल दर्शाती है कि यदि सही दिशा में मार्गदर्शन मिले, तो ग्रामीण युवा भी पर्यावरण संरक्षण के मजबूत स्तंभ बन सकते हैं। जैव-कीटनाशकों का स्थानीय स्तर पर निर्माण, कृषि को अधिक टिकाऊ और आर्थिक रूप से लाभकारी बना सकता है।
टाटा स्टील जूलॉजिकल पार्क की यह पहल ना सिर्फ एक पर्यावरणीय जागरूकता कार्यक्रम थी, बल्कि यह ग्रामीण भारत को आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में भी एक ठोस कदम है। पृथ्वी दिवस के मौके पर इस तरह के प्रयास हमें याद दिलाते हैं कि धरती बचाने की जिम्मेदारी हम सभी की है – चाहे शहर में हों या गांव में।