जमशेदपुर | झारखण्ड
शहर के वरीय अधिवक्ता एवं राष्ट्रीय जनता दल नेता सुधीर कुमार पप्पू ने कहा कि बिहार के सत्ता लोलुप मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने बिहार, लोकतंत्र एवं समाजवाद को कलंकित किया है। उनकी कथनी-करनी सबसे अविश्वसनीय है और सत्ता में बने रहने की उनकी लालसा ने पूरे भारत और दुनिया में बिहार को मजाक बना दिया है।
अब किसी को झूठा या मुकरने वाला कहना होता है तो उसके लिए नीतीश संज्ञा दी जाती है।
नीतीश कुमार ने बीती रात लोकतंत्र की हत्या करने की कोशिश की। विधायक चेतन आनंद राष्ट्रीय जनता दल से संबंधित है और पार्टी के नेता तेजस्वी यादव के यहां बैठक में शामिल होना स्वाभाविक है। दिन भर टीवी में चल भी रहा था कि विधायक दल नेता तेजस्वी यादव के आवास पर चेतन आनंद बैठकर गिटार बजा रहे हैं और गाना गा रहे हैं। लेकिन भाई द्वारा यह कहना कि सात के बाद से मोबाइल स्विच ऑफ है और उसे ढूंढा जाए।
पटना के एसपी एसडीएम पहले रात नौ बजे नेता विधायक दल नेता तेजस्वी यादव के आवास जाते हैं। वहां तसल्ली से जवाब मिलता है और लौट जाते हैं। फिर रात के अंधेरे में पुलिस बल के साथ जाकर वहां से विधायक चेतन आनंद को निकाल रहे हैं। असल में विधानसभा में बहुमत साबित करने में नीतीश कुमार असफल है और इसलिए उन्होंने धमकाने की राजनीति की है। इस स्तर पर तो कोई गैर लोकतांत्रिक मुख्यमंत्री भी नहीं उतरा। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार दुहाई देते हैं कि वे समाजवादी हैं लोकतंत्र के समर्थक हैं और लोकनायक जयप्रकाश के शिष्य हैं। उनके इन शब्दों में ढोंग है।
लोकनायक जयप्रकाश ने तो लोकशाही की स्थापना के लिए देश की सबसे शक्तिशाली और अपनी प्रिय प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी के खिलाफ भी जाने से परहेज नहीं किया। यह जेपी की देन है कि देश तानाशाही से बच गया और लोकशाही दोबारा कायम हुई। लेकिन नीतीश कुमार देश के तानाशाह के कदमों में बैठे नहीं है बल्कि लोटानिया मार रहे हैं। शायद उन्हें इनकम टैक्स, सीबीआई और ईडी का भय है। तभी तो इस बार बिना कारण भारतीय जनता पार्टी के साथ खड़े हो गए। जिस भारतीय जनता पार्टी के नेता एवं प्रधानमंत्री ने उनके डीएनए पर सवाल खड़े किए, गृह मंत्री ने सार्वजनिक रूप से कहा कि दरवाजे बंद हो गए हैं, बीजेपी के एक नेता ने तो मुख्यमंत्री की कुर्सी से उन्हें उतारने के लिए अपने शीश पर मुरैठा बांध लिया, वे उन्हें पलटू राम की संज्ञा दे रहे थे।
अब आलम यह है कि नीतीश कुमार उन्हीं की कदमबोशी कर रहे हैं। समाजवादी डरते नहीं है और कुर्सी का लालच नहीं करते हैं। ऐसे में साफ है कि नीतीश कुमार समाजवादी हो ही नहीं सकते हैं हां कुर्सी प्रेमी है और अब बिहार की जनता को आने वाले चुनाव में नीतीश कुमार और उनकी पार्टी को सबक सिखाना चाहिए।