राजनीति 2022 : शुक्रवार 14 जनवरी, 2022
देश में आरक्षण और जातीगत व्यवस्था एक श्राप है जिसका परिणाम आने वाले दिनों में शायद हमें देखना पड़े। ओबीसी के आरक्षण को लेकर ओबीसी समाज 31 जनवरी को भारत बंद का ऐलान कर चुकी है।
एक ओबीसी नेता द्वारा जारी बयान में भारत बंद के सम्बंध में कहा गया –
देश की आजादी के 75 वर्षों में जानवरों की गिनती हुई मगर ओबीसी समाज की जनगणना नहीं की गयी। जिसके कारण पिछड़े वर्ग के सही आंकड़े उपलब्ध नहीं है।आंकड़े उपलब्ध न होने के कारण पिछड़े वर्ग के विकास की योजनाएं भी नहीं बनाईं जाती और आंकड़े उपलब्ध न होने का बहाना बनाकर पिछड़े वर्ग को पर्याप्त प्रतिनिधित्व के अधिकार से भी आजादी के 75 बर्षो से वंचित रखा गया है।
ग़ुलाम भारत में अंग्रेजों ने सन् 1931 में पिछड़े वर्ग की गिनती करवाईं थी उस समय पिछड़े वर्ग के लोग 52% थे लेकिन 15 अगस्त 1947 से आज तक हमारी गिनती नहीं करवाई गई। न कांग्रेस के द्वारा 55 वर्षों में न भाजपा के द्वारा 25 वर्षो में जाति आधारित जनगणना करवाई गई।
आश्चर्य है कि देश के 52% ओबीसी को रिजर्वेशन देने के लिए प्रावधान आया 26 जनवरी 1950 मे। आर्टिकल 340 में संख्या के अनुपात में। लेकिन 52% ओबीसी को 27% से 14% रिजर्वेशन दिया गया। मंडल कमीशन बना 1978 में, रिपोर्ट आई 1980 में लागू होने की घोषणा हुई 1990 में लेकिन लागू हुआ 1993 में। लेकिन अब तक यह नियम पूरी तरह लागू नहीं हुआ, लेकिन 15% सवर्णो को 10% देने के लिए कोई कमीशन नहीं बना और 72 घंटे में आरक्षण दे दिया गया। आज 75 वर्षो से कौन किसके हिस्से की रोटी खा रहा है यह जानना आवश्यक है। सामान्य 15% और हिस्सेदारी 50.5% है। ओबीसी की जनसंख्या 75% है लेकिन आरक्षण में हिस्सेदारी 27% – 14% ही है। जबकि एससी, एसटी की सँख्या 25% है और आरक्षण में हिस्सेदारी 22.5% है। इस प्रकार ओबीसी समुदाय के 75 वर्षों से धोखाधड़ी, शोषण, अन्याय अत्याचार हो रहा है और संविधान के विरोध में जाकर ओबीसी की 700000 से अधिक आय पर सुप्रीम कोर्ट ने क्रिमीलेयर लगाने का काम किया।
अभी केन्द्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा देकर जाति आधारित जनगणना करने से इंकार कर दिया है जो कि पिछङे वर्ग के साथ नाइंसाफी है। पिछड़े वर्ग के लोग ही बङी संख्या में किसान है। तीन कृषि कानून के माध्यम से किसानों की उपज के साथ-साथ उनकी जमीनों पर पूंजीपतियों का कब्जा होने का खतरा बढ़ गया है।
खाद्यान, दलहन, तिलहन आलू-प्याज को आवश्यक वस्तु अधिनियम से बाहर कर पूंजीपतियों को अनियंत्रित भण्डारण का अधिकार देने से मंहगाई, कालाबाजारी बढ़ने से देश की बहुत बड़ी आबादी भुखमरी के कगार पर पहुंच जाएगी। सरकार को जनहित में कार्य करना चाहिए, लेकिन सरकार जनहित के बजाय पूंजीपतियो के हित में काम कर रही है। और 75 वर्षों में किसानों को अपनी उपज कीमत तय करने के लिए आज तक कोई कानून नहीं बना है। इसका एक बड़ा कारण ईवीएम EVM वोटिंग चुनाव मशीन में घोटाले से चुनाव जीतना है।
24 अप्रैल 2017 को मां. वामन मेश्राम साहब, राष्ट्रीय अध्यक्ष बामसेफ, भारत मुक्ति मोर्चा ने सुप्रीम कोर्ट से EVM ईवीएम के साथ 100% बूथों पर पेपर टे्ल लगाने का केस जीत लिया। जिसके कारण प्रत्येक ईवीएम मशीन के साथ पेपर टे्ल मशीन तो लग गई। लेकिन पेपर टे्ल पर्चियों का जब तक 100% मिलान नहीं होता, तब तक ईवीएम वोटिंग मशीन का घोटाला पकड़ा नहीं जा सकता।
08 अक्टूबर 2013 को सुप्रीम कोर्ट ने यह मान लिया है कि बगैर पेपर टे्ल के स्वतंत्र, निष्पक्ष एवं पारदर्शी चुनाव नहीं किया जा सकता है और पेपर टे्ल मशीन लगाने तथा उससे निकली पर्चियों का 100% मिलान करने का आदेश दिया है तो देश में स्वतंत्र, निष्पक्ष एवं पारदर्शी चुनाव हेतु या फिर बैलेट पेपर से चुनाव कराया जाए।
केन्द्र एवं राज्य सरकारों द्वारा बड़े पैमाने पर निजिकरण करने के कारण ओबीसी, एससी, एसटी का आरक्षण समाप्त हो रहा है इसलिए हमारी मांग है कि निजी क्षेत्र में भी ओबीसी, एससी, एसटी को आरक्षण लागू किया जाए, साथ ही हमारी मांग है कि अधिकारियों, कर्मचारियों की पुरानी पेंशन बहाल किया जाए।
उपरोक्त मुद्दे, समाज हित, देशहित एवं लोकतंत्र को बचाने के मुद्दे हैं इसलिए समाज, देश, लोकतंत्र को बचाने के लिए यह चरण बध्द आन्दोलन किया जा रहा है। अतः आप समस्त बुध्दिमान, अधिकारी, कर्मचारी वकील, इंजिनियर, डाक्टर, व्यापारी सांसद विधायक, विधार्थी किसान, मजदूर, महिला, युवा, बेरोजगार, रिक्सा चालक, साथियों से निम्न निवेदन है कि इस आंदोलन को सफल करने के लिए तन-मन धन से साथ सहयोग करे।
“ओबीसी शेर है सिर्फ जागने की देर है यह आजादी झूठी है देश की जनता भूखी है।”