जमशेदपुर: आज दिनांक 02 सितंबर 2024 को महान साहित्यकार एवं महाभारत धारावाहिक के पटकथा लेखक डॉ. राही मासूम रजा की जयंती पर करीम सिटी कॉलेज, जमशेदपुर के हिंदी विभाग में विभागीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया। अतिथि वक्ता वर्कर्स कॉलेज, जमशेदपुर की हिंदी विभागाध्यक्ष प्रो. सुनीता गुड़िया रहीं।
संगोष्ठी में विषय प्रवेश करते हुए विभाग की प्रो. डॉ. संध्या सिन्हा ने कहा कि डॉ. राही मासूम रजा स्वयं को गंगा का पुत्र कहते थे। डॉ. राही मासूम रजा एक ऐसे रचनाकार के रूप में विख्यात थे, जिनका रचनात्मक काल संस्कृत से लेकर उर्दू और महाकाव्य से लेकर गजल तक फैला हुआ था। भारतीय संस्कृति को गहराई से पहचानने वाले डॉ. राही मासूम रजा अपनी रचना में समन्वय का भाव रखते हैं।
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अपने वक्तव्य में अतिथि वक्ता प्रो. सुनीता गुड़िया ने बताया कि उपन्यास से लेकर कविता तक और गजलों से लेकर फिल्मी संवादों तक ऐसा कोई क्षेत्र नहीं है, जहां डॉ. राही मासूम रजा ने अपनी सशक्त समन्वयवादी विचारधारा और शैली से दखल न दिया हो। महाभारत के अविस्मरणीय संवाद आज भी उनकी अद्भुत शैली के रंग दर्शाते हैं। राही मासूम रजा कट्टरता के प्रबल विरोधी थे और साथ ही वे अपने भीतर एक बहुमूल्य सांस्कृतिक पहचान रखते थे। विभाजन से आहत रजा साहब हमेशा मिश्रित संस्कृति के पक्षधर रहे।
यही कारण था कि उन्होंने न केवल लेखन के स्तर पर बल्कि राजनीतिक स्तर पर भी सामाजिक समानता के लिए संघर्ष किया। यही कारण है कि एक ओर डॉ. राही मासूम रजा ‘आधा गांव’ लिखते हैं तो दूसरी ओर महाभारत टीवी सीरियल लिखते हैं। विभागाध्यक्ष डॉ. सुभाष चंद्र गुप्ता ने अपने संबोधन में बताया कि डॉ. राही मासूम रजा व्यवस्था के खिलाफ मुखर होकर बोल सकते थे। वे भारतीय साझा संस्कृति और जीवनशैली के महान विद्वान थे।
संगोष्ठी में कई विद्यार्थियों ने रजा साहब की कविताएं सुनाईं तथा 4 विद्यार्थियों ने उनके एक-एक उपन्यास पर चर्चा की। अंत में विभाग के प्राध्यापक डॉ. फिरोज आलम ने विद्यार्थियों का आभार व्यक्त करते हुए कहा कि डॉ. रजा की गजलें और कविताएं सामाजिक सरोकारों से ओतप्रोत होकर पूरे भारतीयता के लिए दिल से कई सवाल पूछती हैं तथा व्यवस्था से टकराती हैं। कार्यक्रम का आयोजन विभाग की छात्रा निशा भट्टाचार्य ने किया। उक्त कार्यक्रम में हिंदी विभाग के सेमेस्टर 1, 2, 3 और 6 के विद्यार्थी उपस्थित थे।