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सेराइकेला-खारसावां में दूसरा सहिया सम्मेलन: 2000 सहियाओं को किया गया सम्मानित

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सेराइकेला-खारसावां, 13 फरवरी, 2024 – टाटा स्टील फाउंडेशन, नेशनल हेल्थ मिशन और अमेरिकन इंडिया फाउंडेशन के सहयोग से आयोजित दूसरे वार्षिक सहिया सम्मेलन में 2000 सहियाएं जुटीं। मैनसी+ कार्यक्रम को तीनों जिलों में सफलतापूर्वक लागू करने में उत्कृष्ट प्रदर्शन करने के लिए 16 सहियाओं को विशेष सम्मान दिया गया। इस सप्ताह के अंत में एक और सहिया सम्मेलन होने वाला है, जिसमें कोल्हान प्रमंडल के 6000 सहियाओं में से 2000 और सहियाएं शामिल होंगी, जिन्होंने तीनों जिलों में मैनसी+ कार्यक्रम को सतह पर पहुंचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।


इस कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में सेराइकेला-खारसावां की उपायुक्त अर्चना तिग्गा, जिला सिविल सर्जन डॉ अजय कुमार सिन्हा और जिला समाज कल्याण अधिकारी सत्य थाकुर उपस्थित रहे। राज्य का प्रतिनिधित्व करते हुए जिलाधिकारी-सह-उपायुक्त रवि शंकर शुक्ला भी मौजूद थे।

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इस अवसर पर अपने विचार व्यक्त करते हुए टाटा स्टील फाउंडेशन के सीईओ सौरव रॉय ने कहा, “कोल्हान प्रमंडल के तीनों जिलों में फैली 6000 सहियाओं का एक साथ आना हमारे दृष्टिकोण का भी प्रतिबिंब है, जहां हर व्यक्ति अपनी क्षमता का सम्मानपूर्वक उपयोग कर सकता है और इस तरह एक न्यायपूर्ण और जागरूक समाज का निर्माण कर सकता है। मैनसी+ के दस साल के सफर में, सहियाएं ही प्रमुख योगदानकर्ता रही हैं, जो आदिवासी और वंचित समुदायों की गहरी जरूरतों को पूरा करने के लिए खुद को लगातार उन्नत करती रहती हैं। इन 6000 सहियाओं का नेटवर्क, जिनमें से कुछ कार्यक्रम की शुरुआत से ही हमारे साथ जुड़ी हुई हैं, लगभग 250 मैनसी फील्ड वर्करों के सहयोग से यह सुनिश्चित करती हैं कि गर्भवती महिलाओं और नवजात शिशुओं को समय पर सहायता के साथ सुलभ स्वास्थ्य सेवा अंतिम छोर तक पहुंचे। यह वार्षिक सम्मेलन एक ऐसा मंच है जहां हम सहियाओं द्वारा किए गए कार्यों की गहराई में जा सकते हैं। हम अपने सहयोगियों के आभारी हैं जो एक दशक से अधिक समय तक इस असरदार कार्यक्रम में हमारे साथ रहे हैं।”


कार्यक्रम की शुरुआत टाटा स्टील फाउंडेशन के सामुदायिक स्वास्थ्य क्लस्टर के प्रमुख अमित कुमार द्वारा मैनसी+ के दस साल के सफर का अवलोकन और उसके बाद यौन स्वास्थ्य और स्वच्छता के बारे में बातचीत के महत्व को रेखांकित करते हुए एक नुक्कड़ नाटक के साथ हुई। सास-बहू-पति सम्मेलन जैसे जागरूकता सत्र सामाजिक दबाव या पूर्वाग्रह के कारण किसी के जीवन को प्रभावित न होने देने के लिए स्वास्थ्य संबंधी व्यवहार शुरू करने में गेम चेंजर साबित हुए हैं।


टाटा स्टील फाउंडेशन की स्वास्थ्य सेवा में उन्नति की प्रतिबद्धता को प्रतिबिंबित करते हुए, मैनसी+ झारखंड के कोल्हान क्षेत्र में मातृत्व और शिशु मृत्यु दर को कम करने के लिए जीवन-चक्र-आधारित दृष्टिकोण के रूप में रणनीतिक रूप से विकसित हुआ है। मैनसी+ का दस सालों में पड़ा प्रभाव इसे एक अनुकरणीय मॉडल बनाता है, जिसे अब अन्य जिलों और राज्यों में भी अपनाया जा रहा है ताकि कुल मिलाकर एमएमआर और एनएमआर को कम किया जा सके। 


कार्यक्रम में गणमान्य व्यक्ति:



  • अर्चना तिग्गा, उपायुक्त, सेराइकेला-खारसावां (मुख्य अतिथि)

  • डॉ अजय कुमार सिन्हा, जिला सिविल सर्जन

  • सत्य थाकुर, जिला समाज कल्याण अधिकारी

  • रवि शंकर शुक्ला, जिलाधिकारी-सह-उपायुक्त (राज्य प्रतिनिधि)


टाटा स्टील फाउंडेशन के सीईओ सौरव रॉय ने कहा:


“यह सम्मेलन 6000 सहियाओं का एक साथ आना हमारे दृष्टिकोण का एक उदाहरण है, जहां हर व्यक्ति सम्मान के साथ अपनी क्षमता का उपयोग कर सकता है और एक न्यायपूर्ण और जागरूक समाज बना सकता है। मैनसी+ के दस साल के सफर में, सहियाएं ही प्रमुख योगदानकर्ता रही हैं। उन्होंने आदिवासी और वंचित समुदायों की जरूरतों को पूरा करने के लिए खुद को लगातार उन्नत किया है। ये 6000 सहियाएं, जिनमें से कुछ कार्यक्रम की शुरुआत से ही जुड़ी हैं, लगभग 250 मैनसी फील्ड वर्करों के साथ मिलकर यह सुनिश्चित करती हैं कि गर्भवती महिलाओं और नवजात शिशुओं को आवश्यक स्वास्थ्य सेवाएं समय पर मिलें। यह वार्षिक सम्मेलन सहियाओं द्वारा किए गए कार्यों को गहराई से समझने का एक अवसर है। हम अपने सहयोगियों के आभारी हैं जो एक दशक से अधिक समय तक इस कार्यक्रम में हमारे साथ रहे हैं।”


कार्यक्रम मुख्य आकर्षण:



  • मैनसी+ के दस साल के सफर का अवलोकन

  • यौन स्वास्थ्य और स्वच्छता के बारे में बातचीत को बढ़ावा देने वाला नुक्कड़ नाटक

  • सास-बहू-पति सम्मेलन जैसे जागरूकता सत्र जो स्वास्थ्य संबंधी व्यवहार को बढ़ावा देने में सफल रहे हैं

  • मातृत्व और शिशु मृत्यु दर को कम करने के लिए जीवन-चक्र-आधारित दृष्टिकोण अपनाने वाला मैनसी+ कार्यक्रम


समाज में सहियाओं की भूमिका:


सहियाएं तत्काल हस्तक्षेप से आगे बढ़कर नियमित जागरूकता कार्यशालाएं और परामर्श सत्र आयोजित करती हैं, जिससे यह सुनिश्चित होता है कि समुदाय के अंतिम व्यक्ति तक स्वास्थ्य सेवाएं पहुंचे।

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रामनवमी पर सरिया में उमड़ा आस्था का सैलाब, पत्रकारों को मिला “पुलिस मित्र” का सम्मान 

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गिरिडीह : सरिया प्रखंड में इस वर्ष रामनवमी का पर्व आस्था, उत्साह और भाईचारे का प्रतीक बनकर सामने आया। ठाकुर बड़ी और महावीर मंदिर से निकली भव्य शोभायात्रा ने सरिया की गलियों को भगवा रंग में रंग दिया। चंद्रमारनी, बड़की सरिया, बलीडीह जैसे गांवों से हजारों श्रद्धालु “जय श्रीराम” के नारों के साथ शामिल हुए। जगह-जगह श्रद्धालुओं के लिए शरबत, चना और पानी की निःशुल्क व्यवस्था रही, जिससे श्रद्धालुओं को काफी राहत मिली।

प्रशासन ने भी सुरक्षा व्यवस्था को बखूबी संभाला और किसी भी प्रकार की अप्रिय घटना नहीं हुई। हालांकि बिरनी प्रखंड के दलांगी गांव में मुस्लिम समुदाय के विरोध के चलते महावीर झंडा यात्रा नहीं निकल सकी, जिससे स्थानीय श्रद्धालुओं में मायूसी देखी गई।

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इस बार गिरीडीह पुलिस ने एक सराहनीय पहल करते हुए सरिया के कुछ पत्रकारों को “पुलिस मित्र” के रूप में सम्मानित किया। इसमें “द न्यूज़ फ्रेम” के गिरिडीह कोर्डिनेटर सह संवाददाता श्री संतोष कुमार तरवे को भी यह गौरव प्राप्त हुआ। इस सम्मान के लिए “द न्यूज़ फ्रेम” की पूरी टीम उन्हें हार्दिक बधाई देती है एवं उनके उज्ज्वल भविष्य की कामना करती है।

🌟 रामनवमी 2025 ने एक बार फिर साबित कर दिया कि सरिया की धरती आस्था और एकता का मजबूत प्रतीक है।

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वक्फ संशोधन बिल पास होने के बाद कथित सेक्युलर चेहरों से उतर गया नकाब : सुधीर कुमार पप्पू

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सुधीर कुमार पप्पू

जमशेदपुर। मोदी सरकार ने वक्फ संशोधन बिल को संसद के दोनों सदनों से पारित करवा लिया है, जिसके बाद देश की राजनीति में एक नई बहस छिड़ गई है। वरिष्ठ अधिवक्ता सुधीर कुमार पप्पू ने इस पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि तथाकथित सेक्युलर चेहरों की असलियत अब जनता के सामने आ चुकी है। उन्होंने आरोप लगाया कि मुस्लिम समाज को धोखा देने वाले नेताओं को अब आगामी चुनावों में इसका खामियाजा भुगतना पड़ेगा। उन्होंने यह भी कहा कि बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की पार्टी में असंतोष बढ़ा है और मुस्लिम नेता पार्टी छोड़ चुके हैं। चिराग पासवान और जीतन राम मांझी को भी इसका नुकसान होगा। आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू द्वारा भाजपा को समर्थन देना भी उनके लिए महंगा साबित हो सकता है, क्योंकि मुस्लिम समुदाय अब उन्हें समर्थन नहीं देगा।

पप्पू ने आरोप लगाया कि यह विधेयक एक सोची-समझी साजिश का हिस्सा है जिसके जरिए मोदी सरकार वक्फ बोर्ड की संपत्तियों पर कब्जा करना चाहती है ताकि उन्हें पूंजीपतियों को सौंपा जा सके। उन्होंने कहा कि यह विधेयक गैर संवैधानिक है और इसकी वैधता को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है। पूरे देश में इसके खिलाफ आंदोलन का माहौल बनता जा रहा है जो आने वाले समय में मोदी सरकार के लिए बड़ी चुनौती बन सकता है।

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कानूनी दृष्टिकोण से वक्फ (संशोधन) विधेयक 2025 के पक्ष और विपक्ष में तर्क:

इस विधेयक को लेकर सरकार का तर्क है कि यह वक्फ संपत्तियों के प्रबंधन में पारदर्शिता और जवाबदेही लाने का माध्यम है। विवादित संपत्तियों के निर्धारण, वक्फ बोर्ड की कार्यप्रणाली में सुधार और भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने के लिए इसमें कई प्रावधान जोड़े गए हैं। साथ ही, गैर-मुस्लिम सदस्यों को बोर्ड में शामिल करने से समुदायों के बीच समरसता को बढ़ावा मिलेगा।

वहीं दूसरी ओर, इसके विरोध में यह कहा जा रहा है कि यह विधेयक संविधान के अनुच्छेद 25, 26, 14, 15 और 300A का उल्लंघन करता है। विशेष रूप से धारा 3E (Section 3E) को लेकर गंभीर आपत्ति जताई गई है। याचिकाकर्ता ने तर्क दिया है कि यह प्रावधान अनुसूचित जनजातियों के उन सदस्यों को वक्फ के रूप में संपत्ति समर्पित करने के अधिकार से वंचित करता है जो इस्लाम धर्म अपना चुके हैं। अनुसूचित जातियों के विपरीत, अनुसूचित जनजातियों के सदस्य धर्म परिवर्तन के बाद भी अपनी जनजातीय पहचान नहीं खोते। ऐसे में इस्लाम अपनाने वाले जनजातीय व्यक्ति मुसलमान भी माने जाते हैं, परन्तु इस संशोधन द्वारा उन्हें अपने धर्म के एक आवश्यक अंग का पालन करने से रोका जा रहा है, जो कि अनुच्छेद 25 और 26 के तहत उनके धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार का उल्लंघन है।

यह प्रावधान अनुच्छेद 14 और 15 का भी उल्लंघन करता है क्योंकि यह धर्म के आधार पर अनुसूचित जनजातियों के बीच और जनजातीय मुसलमानों के बीच भेदभाव करता है। इसके अतिरिक्त यह अनुच्छेद 300A के तहत संपत्ति के अधिकार को भी अप्रभावी बनाता है। इस प्रकार, यह संशोधन मनमाना, भेदभावपूर्ण और असंवैधानिक है तथा इसे रद्द किया जाना चाहिए।

निष्कर्षतः, वक्फ संशोधन विधेयक एक संवेदनशील और बहुआयामी विषय है जो धार्मिक अधिकार, अल्पसंख्यक संरक्षण और प्रशासनिक सुधार – तीनों के बीच संतुलन की मांग करता है। इसे केवल राजनीतिक चश्मे से नहीं बल्कि संविधान और न्यायिक समीक्षा की कसौटी पर परखा जाना चाहिए।

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रोटरी क्लब वेस्ट ने आयोजित किया प्रेरणादायक पर्यावरण जागरूकता सत्र, डॉ. विक्रांत तिवारी ने साझा किए अनुभव

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जमशेदपुर : रोटरी क्लब वेस्ट जमशेदपुर द्वारा मोतीलाल नेहरू पब्लिक स्कूल के प्रेक्षागृह में एक प्रेरणादायक पर्यावरण जागरूकता सत्र का आयोजन किया गया। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि थे प्रख्यात पर्यावरणविद् और सामाजिक उद्यमी डॉ. विक्रांत तिवारी, जिन्होंने अपने दो दशक से अधिक के कार्य अनुभव के आधार पर युवाओं और शिक्षकों को पर्यावरण संरक्षण के प्रति प्रेरित किया।

डॉ. तिवारी का प्रेरणास्पद संदेश

आईआईएम कलकत्ता और हार्वर्ड बिजनेस स्कूल के पूर्व छात्र डॉ. तिवारी ने बताया कि उन्होंने अब तक 17 मिलियन से अधिक पेड़ों का रोपण करवाया है और कई एनजीओ को संसाधन जुटाने में सहायता प्रदान की है। उन्होंने यह भी बताया कि उनकी टीम न केवल हरित भारत की कल्पना को साकार कर रही है, बल्कि आदिवासी कला और संस्कृति को बढ़ावा देकर सतत विकास की दिशा में भी कार्य कर रही है।

डॉ. तिवारी ने छात्रों को बताया कि “पर्यावरण संरक्षण कोई विकल्प नहीं, बल्कि यह अब हमारी अनिवार्य जिम्मेदारी बन चुकी है। जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों से निपटने के लिए हमें व्यक्तिगत और सामाजिक स्तर पर छोटे लेकिन असरदार कदम उठाने होंगे।”

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विद्यालय प्रबंधन की सक्रिय भागीदारी

इस कार्यक्रम की सफलता में स्कूल प्रबंधन समिति, विशेष रूप से प्राचार्या श्रीमती संगीता सिंह, उप प्राचार्या और समन्वयक शिक्षकों की भूमिका अत्यंत सराहनीय रही। उन्होंने छात्रों को न केवल आयोजन से जोड़ा, बल्कि पर्यावरणीय चेतना को व्यवहार में उतारने का संदेश भी दिया।

रोटरी क्लब की प्रतिबद्धता

रोटरी क्लब वेस्ट की यह पहल संगठन की स्थिरता, हरित भविष्य और सामाजिक उत्तरदायित्व की भावना को दर्शाती है। क्लब ने इस सत्र के माध्यम से यह स्पष्ट किया कि वे न केवल समाज सेवा में, बल्कि पर्यावरण संरक्षण जैसे संवेदनशील विषयों पर भी जागरूकता बढ़ाने में अग्रणी भूमिका निभा रहे हैं।

छात्रों में दिखा उत्साह

सत्र के दौरान छात्रों ने पर्यावरण से जुड़ी जिज्ञासाओं को खुलकर साझा किया और डॉ. तिवारी से मार्गदर्शन प्राप्त किया। कार्यक्रम के अंत में “प्रकृति से संवाद” विषय पर एक लघु प्रस्तुति ने सभी को भावुक और जागरूक कर दिया।

यह आयोजन न केवल एक जागरूकता अभियान था, बल्कि एक प्रेरणा स्रोत भी बना, जो भावी पीढ़ी को हरित और टिकाऊ भारत के निर्माण की दिशा में सोचने और कार्य करने के लिए प्रेरित करता है।

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