साधुवाद का चोला ओढ़कर समाजवाद की राह पर चला : आतंकवादी संगठन तालिबान।

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14 वर्ष से बड़ी सभी लड़कियों और औरतों की लिस्ट बनाई जाएगी और वे तालिबानी लड़ाकों के उपभोग की वस्तु बनाई जाएंगी।

क्या आप तालिबान के बारे में जानते हैं? आइये आज हम तालिबान संगठन के बारे में थोड़ी जानकारी ग्रहण करते हैं।

ई वर्षों के बाद आज फिर तालिबान सुर्खियों में हैं। कारण बस इतना सा ही है – इस्लाम और शरीयत कानून के आधार पर एक देश का निर्माण करना।

लेकिन आपको बता दें विश्व में 49 इस्लामिक देश पहले से मौजूद है। तालिबान अफगानिस्तान को भी इस्लामिक देश बनाना चाहता है। लेकिन अन्य इस्लामिक देशों की तरह नहीं बल्कि आतंकवाद की राह पर चलकर जबरन इस्लामिक राष्ट्र का निर्माण करना चाहता है। अफगानिस्तान पहले से ही मुस्लिम बहुल राष्ट्र है। लेकिन बर्बर खानाबदोश लुटेरों और आतंकवादियों की वजह से यह देश बर्बाद होने की कगार पर खड़ा है।

कभी आर्यवर्त या भारतवर्ष का हिस्सा कहा जाने वाला आज का अफगानिस्तान, आतंकवाद की जद में आकर सिसक रहा है। हिन्दू और बौद्ध धर्म की विरासत संजोएं आज का अफगानिस्तान इस्लामिक कट्टरपंथी का गुलाम बन चुका है। जहां खुशहाली और शांति के बारे में सोचना भी पाप है।

हाल के दिनों में अखबार और सोशल मीडिया ने अफगानिस्तान और तालिबान पर अच्छी कवरेज की है। लेकिन एक बार कल्पना करके देखिए की – क्या किसी असामाजिक तत्व के साथ स्वस्थ समाज की कल्पना की जा सकती है? 

आगे बढ़ने से पहले आपको हरिशंकर प्रसाद रचित ‘भेड़ें और भेड़िये’ नामक एक रचना का संक्षेप में और अपने शब्दों में जिक्र करना आवश्यक हो जाता है। वस्तुतः यह रचना वर्तमान समय के राजनीतिक विषयों पर केंद्रित था। लेकिन यहां पर इसकी चर्चा करना उचित बैठता है। आप में से कइयों ने उसे मध्य विद्यालय में अवश्य पढा होगा। यह रचना हमारे स्कूली दिनों के चैपटर का एक हिस्सा था। 
जिसमें लिखा था –
“एक जंगल था। जिसमें भेड़ों का झुंड, सियार और भेड़िया रहा करते थे। भेड़िया भेड़ों का शिकार किया करता था। फिर एक बार जंगल में इलेक्शन का समय आया। भेड़ों ने अपना प्रतिनिधि चुना और उसे अपना अगला नेता बनाने का विचार बनाया। वे सब खुश हुए की अब भेड़िये से हमारे भेड़ समाज की रक्षा होगी। और बहुमत भेड़ों की हो जाएगी। 
लेकिन उन्होंने देखा प्रचार करता हुआ भेड़िया और सियार उनके सामने ही आ रहा है। यह देख भेड़ें।भागने लगे। तभी सियार चिल्लाया -“अरे, डरो मत। ये अब बदल गए हैं। इन्होंने मांस खाना ही छोड़ दिया है अब ये शाकाहारी है। देखो इनके दांतों में घास भी लगा है। तुम्हारा नेता भेड़िया बन जायेगा तो तुम्हारा भला ही करेगा। यह तुम सब से अधिक बलवान और बुद्धिमान भी है और पूरे जंगल में यही तुम्हारी रक्षा भी कर सकता है। यकीन न हो तो इनके पास आकर नजदीक से देखो।”
यह सुन सब भेंड़ रुक गए और भेड़िये के पास आकर उसे देखने लगे। भेड़ों ने देखा वाकई भेड़िया तो शांत मन से बैठा है और उसके दांतों में घास भी लगा है। उन्होंने विचार किया। बात तो सही है, भेड़िया हम सबसे अधिक बलवान और फुर्तीला भी है, यह सचमुच हमारी रक्षा कर सकता है। यह देख सभी भेंड़ खुश हुए और अपने  नेता को छोड़ भेड़िये का जयकारा लगाने लगे। इलेक्शन का दिन आया, वोट हुई और भेड़िया भारी मतों से विजयी हो जाता है। भेड़ें खुश हो गई। क्योंकि उनका रक्षक अब उनकी रक्षा करेगा और जंगल में उन्हें कोई तंग भी नही करेगा। 
इलेक्शन जीत जाने के बाद मीटिंग बैठी। जंगल में शांति और भेड़ों को कोई तंग भी न करे इसके लिए भेड़िये ने कानून बनाया। सुबह नाश्ते के समय एक भेंड़, दोपहर के भोजन के समय एक भेंड़ और रात के भोजन में एक भेंड़ स्वत: ही भेड़िये की मांद में आ  जाएंगे। जिससे भेड़िया किसी भेंड़ को तंग भी नहीं करेगा। भेड़ों का कर्तव्य भी अपने नेता के प्रति बनता था कि वे उसे खुश रखे। सियार ने इस कानून पर मुहर लगा दी। वह इस खुशी में भेड़िया का साथ दे रहा था की भेड़ों का बचा मांस भेड़िये के खाने के बाद उसे ही मिलेगा। 
अब यह कानून सुन सभी भेड़ों का क्या हाल हुआ होगा आप महसूस कर सकते हैं।

यहां इस कहानी का जिक्र करने का यथार्थ आप शायद समझ चुके होंगे। 

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अभी हाल ही में तालिबान ने यह फरमान सुनाया है कि 14 वर्ष से बड़ी और 45 वर्ष से छोटी सभी लड़कियों और औरतों की लिस्ट बनाई जाए। वे कुंवारी हो या तलाकशुदा लिस्ट सबकी बनाई जानी चाहिए। ताकि पाकिस्तानी तालिबानी लड़ाकों के पास उनके उपभोग के लिए भेज दिया जाए।  रिपोर्ट्स के अनुसार आतंकवादी संगठन तालिबान इन लड़कियों और महिलाओं की शादी अपने आतंकी लड़ाकुओं से करवाएगा। साथ ही उन्हें पाकिस्तान के वजीरिस्तान ले जाया जाएगा, जहां उनका धर्म परिवर्तन भी किया जाएगा। तालिबान लड़ाकुओं ने पाकिस्तान, उज्बेकिस्तान, इरान और तजाकिस्तान से सटे कई महत्वपूर्ण शहरों पर कब्जा कर लिया है। और इन इलाकों के तमाम इमामों और मुल्लाओं को कल्चर कमिशन के नाम से एक पत्र दिया है। इसी पत्र में लड़कियों और विधवाओं की सूची बनाने की बात कही गई है। The Sun ने इस बारे में जिक्र भी किया है।

क्या आप तालिबान के बारे में जानते हैं? आइये आज हम तालिबान संगठन के बारे में थोड़ी जानकारी ग्रहण करते हैं।

तालिबान की स्थापना सितंबर 1994 में अफगानिस्तान के कंधार शहर में हुई थी। तालिब का अर्थ विद्यार्थी होता है। इसके संस्थापक मोहम्मद उमर और अब्दुल गनी बरादार को माना जाता है। यह एक देवबंदी इस्लामी आंदोलन और सैन्य संगठन है। और स्वयं के देश में ही युद्ध कर रहा।
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तालिबानी फ्लैग का प्रतीकात्मक चित्र

आपको बता दें की तालिबान ने वर्ष 1996 से लेकर 2001 तक अफगानिस्तान में तहलका मचा रखा था। अफगानिस्तान का लगभग 3/4 भाग तालिबान ने कब्जा कर रखा था। कब्जा किये इस क्षेत्र में   शरीयत और इस्लामी कानून के नाम पर मनमाने तरीके अपनाए। वर्ष 1994 में अफगान में हुए गृहयुद्ध के समय में यह पैदा हुआ और बड़े पैमाने पर पूर्वी और दक्षिणी अफगानिस्तान के पश्तून क्षेत्रों के छात्र इसमें शामिल हो गए थे, जो पारंपरिक इस्लामी स्कूलों में शिक्षित थे। 

मोहम्मद उमर के नेतृत्व में, आंदोलन पूरे अफगानिस्तान में फैल गया। व्यापक आंदोनल और संघर्ष के बाद मुजाहिदीन सरदारों से अफगानिस्तान कु सत्ता छीन ली गई। और अंततः 1996 में अफगानिस्तान के इस्लामी अमीरात की स्थापना की गई। राजधानी कंधार में स्थानांतरित किया गया। अपने बढ़ते प्रभाव को दर्शाने और विश्व में दबदबा बनाने के लिए के लिए इसने 11 सितंबर, 2001 को अमेरिका पर हमला कर दिया। इस हमले का मास्टर माइंड ओसामा बिन लादेन था। हमलों के बाद दिसंबर, 2001 में इसने अफगानिस्तान के अधिकांश हिस्सों पर अपना अधिकार कर लिया। इस तालिबानी सरकार को विश्व के प्रमुख तीन देशों ने (पाकिस्तान, सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात) औपचारिक राजनयिक मान्यता दे दी थी।

दुनियाँ में इस्लाम का एक अलग ही पैगाम फैलाना इनका विशेष काम बना। महिलाओं के बारे में इनके विचार स्पष्ट है और उनका मानना है कि वे केवल उपभोग की वस्तु हैं। जिसका विरोध नोबेल विजेता मलाला यूसुफजई ने किया था। फिलहाल वर्ष 2016 से तालिबान का नेता मौलवी हिबतुल्ला अखुंदजादा है। सबसे आश्चर्य की बात यह है कि इसके समर्थन में विश्व के कई देश शामिल है। 

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आइये जानते हैं वे कौन से देश हैं जो आतंकवादी संगठन तालिबान के समर्थक हैं। – पाकिस्तान, कतर, ईरान, चीन, रूस, सऊदी अरब। लेकिन इनमें से पाकिस्तान, रूस और सऊदी अरब इस बात से अब इंकार करते हैं की वे तालिबान के समर्थक है।

विश्व के कई ऐसे संगठन भी हैं जो तालिबानी समर्थक है जिनमें प्रमुख रूप से आते हैं- हक्कानी नेटवर्क, अल कायदा, तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (जो 2004 से पाकिस्तान में सक्रिय है), तहरीक-ए-नफाज-ए-शरीयत-ए-मोहम्मदी, हिज़्ब-ए इस्लामी गुलबुद्दीन, उज़्बेकिस्तान का इस्लामी आंदोलन। ये सभी इस्लामिक संगठन है जो तालिबान की नीतियों का समर्थन करते हैं।

हालांकि विश्व में कई ऐसे देश भी हैं जो तालिबान के नीतियों के विरोध में हैं जिनमें प्रमुख है – अफ़ग़ानिस्तान, भारत, संयुक्त राज्य अमेरिका, यूनाइटेड किंगडम, नाटो और आईएसएएफ में शामिल सभी राष्ट्र।

ऐसे इस्लामिक संगठन भी हैं जो तालिबानी नीतियों के खिलाफ है उनमें प्रमुख हैं – इस्लामिक स्टेट-कोरासन प्रांत, उज़्बेकिस्तान का इस्लामी आंदोलन, जमीयत-ए इस्लामी, जुनबिश-ए-मिली और हिज़्बे वहदत।

अब तालिबान अपना पैर फिर से पसार रहा है। देखना यह है कि यह शांति दूत बनकर आता है या फिर भेड़ें और भेड़िये वाला किस्सा फिर से यहां दुहराया जाएगा।

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