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झारखंड

सम्वाद 2024: पारंपरिक आदिवासी व्यंजनों को संरक्षित करने की अनूठी पहल

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जमशेदपुर : टाटा स्टील फाउंडेशन द्वारा आयोजित सम्वाद 2024 आदिवासी समुदायों के बीच संवाद और सांस्कृतिक आदान-प्रदान को बढ़ावा देने का एक प्रमुख मंच है। यह आयोजन देशभर के आदिवासी समुदायों को एक साथ लाकर उनकी परंपराओं, कला, और जीवनशैली को साझा करने का अवसर प्रदान करता है। इस बार सम्वाद में विशेष ध्यान आदिवासी व्यंजनों पर केंद्रित किया गया है, जो प्रकृति के साथ इन समुदायों के गहरे जुड़ाव को दर्शाते हैं।

हर व्यंजन में संघर्ष, संसाधनशीलता और परंपराओं की कहानी समाहित होती है। आदिवासी व्यंजन केवल स्वाद नहीं, बल्कि संस्कृति को संरक्षित और साझा करने का एक सशक्त माध्यम हैं। इस आयोजन में भागीदारी केवल सांस्कृतिक धरोहर को प्रदर्शित करने तक सीमित नहीं रही, बल्कि विभिन्न आदिवासी समूहों के बीच सहयोग और समझ को बढ़ावा देने पर भी जोर दिया गया।

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आसुर जनजाति का दुर्खु कंदा: परंपरा और प्रेरणा का स्वाद

झारखंड के लातेहार जिले की आसुर जनजाति से शांता मिंज और उनकी बहनों नीलम उषा और रोज़ मैरी ने दुर्खु कंदा नामक एक अनोखा व्यंजन प्रस्तुत किया। यह दो वर्षों तक मिट्टी में पले-कंद से बनाया गया एक सुनहरा और कुरकुरा पैटी और स्वादिष्ट करी है। बड़ी इलायची, तेजपत्ता, मिर्च, अदरक और लहसुन जैसे मसालों के मिश्रण से बने इस व्यंजन की सुगंध और स्वाद ने सभी का मन मोह लिया।

इस आयोजन से प्रेरणा लेकर शांता ने होटल प्रबंधन की पढ़ाई शुरू की और अपनी बहनों के साथ मिलकर नेतरहाट में “आजि घोटो ओरा – दादी की रसोई” नामक कैंटीन खोलने का निर्णय लिया। यह उनके जड़ों को समर्पित एक प्रयास है, जिसमें वे अपने व्यंजनों के जरिए परंपराओं को जीवित रख रही हैं।

ओरांव जनजाति का हीलता मुंगा अड़ा और लाल चींटी का अचार

राउरकेला की 23 वर्षीय अमृता एक्का ने ओरांव जनजाति के पारंपरिक व्यंजन हीलता मुंगा अड़ा और अनोखे लाल चींटी अचार को प्रस्तुत किया। यह व्यंजन सहजन के पत्तों और बांस के अंकुरों से बना है, जो उनकी परंपरा और प्रकृति से जुड़े होने का प्रमाण है।

सम्वाद के दौरान मिली सीख और समर्थन से प्रेरित होकर अमृता ने अपने समुदाय की महिलाओं के साथ मिलकर फूड स्टॉल और अचार व्यवसाय शुरू किया। उनके अचार, जैसे बांस, सहजन के पत्तों और लाल चींटी के अचार, उनकी उद्यमशीलता और परंपरा को संरक्षित करने के प्रयासों का प्रतीक हैं।

संथाल जनजाति का चारपा पिठा: परंपरा और एकजुटता का स्वाद

पश्चिम बंगाल की छाया सिंह ने चारपा पिठा नामक पारंपरिक व्यंजन को प्रस्तुत किया, जो मकर संक्रांति पर विशेष रूप से बनाया जाता है। साल के पत्तों का उपयोग कर इसे तैयार करना न केवल खाना पकाने की प्रक्रिया है, बल्कि एक सांस्कृतिक अनुष्ठान भी है।

उड़द दाल और चावल के आटे से बने इस पिठे को कम मसालों के साथ पकाया जाता है, जो इसके प्राकृतिक स्वाद को सामने लाता है। छाया के अनुसार, यह व्यंजन केवल भोजन नहीं, बल्कि उनकी संस्कृति और समुदाय की शक्ति का प्रतीक है।

भविष्य की राह: आदिवासी महिलाओं की आर्थिक और सांस्कृतिक सशक्तिकरण

सम्वाद 2024 ने न केवल आदिवासी व्यंजनों को मंच प्रदान किया, बल्कि महिलाओं को उनके उद्यमशीलता कौशल विकसित करने के लिए प्रशिक्षण और समर्थन भी दिया। इन प्रयासों से वे अपने पारंपरिक व्यंजनों को व्यापक दर्शकों तक पहुंचाने और आर्थिक स्वतंत्रता हासिल करने में सक्षम हो रही हैं।

टाटा स्टील फाउंडेशन का यह प्रयास आदिवासी संस्कृति और व्यंजनों को संरक्षित करने के साथ-साथ सामुदायिक विकास और परंपराओं को जीवित रखने में मील का पत्थर साबित हो रहा है।

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