My Pen : बृहस्पतिवार 18 नवम्बर, 2021
सोशल मीडिया पर वर्तमान शिक्षा व्यवस्था और विद्यार्थी पर शिक्षा के दबाव को लेकर एक कहानी शेयर की गई। जो वाकई में वास्तविक शिक्षा व्यवस्था को आईना दिखाता है।
छोटी सी इस कहानी में आप यह जान पाएंगे कि वाकई में हम आज भी केवल दौड़ रहे हैं। ठहराव तो जैसे जीवन में किसी के पास है ही नहीं। बस एक रेस है जिसमें हमसब मिलकर दौड़ रहे हैं। जिसका अंत कभी नहीं है।
आइये इस कहानी को पढ़ते हैं।
एक पिता आप के इकलौते बेटे को डॉक्टर बनाना चाहता था। बेटा इतना मेधावी नहीं था कि NEET क्लियर कर लेता। इसलिए दलालों से MBBS की सीट खरीदने का जुगाड़ किया।
पुश्तैनी घर, ज़मीन, जायदाद, ज़ेवर सब गिरवी रख के 35 लाख रूपये दलालों को दिए। लेकिन अफसोस दलालों से धोखा खाया।
अब क्या करें…? पिता को तो लड़के को डॉक्टर बनाना है, कैसे भी…!!
फिर किसी तरह विदेश में लड़के का एडमीशन कराया गया, वहाँ भी लड़का चल नहीं पाया। और फेल होने लगा। धीरे-धीरे वह डिप्रेशन में रहने लगा।
त्योहार पर घर आया और मानसिक असंतुलन खो कर घर में ही फांसी लगा ली। घरवालों के सारे अरमान धराशायी हो गए।रेत के महल की तरह पूरा परिवार ढह गया।25 दिन बाद माँ-बाप और बहन ने भी जहर खा कर आत्म-हत्या कर ली।
अपने बेटे को डॉक्टर बनाने की झूठी महत्वाकांक्षा ने पूरा परिवार ही मौत के मुँह में चला गया।
माँ बाप अपने सपने, अपनी महत्वाकांक्षा अपने बच्चों से पूरी करना चाहते हैं तो वहीं कुछ माँ-बाप अपने बच्चों को Topper बनाने के लिए इतना ज़्यादा अनर्गल दबाव डालते हैं कि बच्चे का स्वाभाविक विकास ही रुक जाता है।
आधुनिक स्कूली शिक्षा बच्चे की Evaluation और Gradening ऐसे करती है, जैसे सेब के बाग़ में सेब की खेती की जाती है।
पूरे देश के करोड़ों बच्चों को एक ही Syllabus पढ़ाया जा रहा है।
आइये इसे एक उदाहरण से समझते है-
जंगल में सभी पशुओं को एकत्र कर सबका इम्तिहान लिया जा रहा है और पेड़ पर चढ़ने की क्षमता देख कर Rank निकाली जा रही है।
यह शिक्षा व्यवस्था, ये भूल जाती है कि इस प्रश्नपत्र में तो बेचारा हाथी का बच्चा फेल हो जाएगा और बन्दर First आ जाएगा।
अब पूरे जंगल में ये बात फैल गयी कि कामयाब वो है जो झट से पेड़ पर चढ़ जाए। बाकी सबका जीवन व्यर्थ है।
इसलिए उन सब जानवरों के, जिनके बच्चे कूद के झटपट पेड़ पर न चढ़ पाए, उनके लिए कोचिंग Institute खुल गए, वहां पर बच्चों को पेड़ पर चढ़ना सिखाया जाता है।
चल पड़े हाथी, जिराफ, शेर और सांड़, भैंसे और समंदर की सब मछलियाँ चल पड़ीं अपने बच्चों के साथ, Coaching institute की ओर…
हमारा बिटवा भी पेड़ पर चढ़ेगा और हमारा नाम रोशन करेगा।
हाथी के घर लड़का हुआ…तो उसने उसे गोद में ले के कहा – “हमरी जिन्दगी का एक ही मक़सद है कि हमार बिटवा पेड़ पर चढ़ेगा।”
और जब बिटवा पेड़ पर नहीं चढ़ पाया, तो हाथी ने सपरिवार ख़ुदकुशी कर ली।
अपने बच्चे को पहचानिए। वो क्या है, ये जानिये।
हाथी है या शेर, चीता, लकडबग्घा, जिराफ ऊँट है या मछली या फिर हंस, मोर या कोयल ? क्या पता वो चींटी ही हो ?
और यदि चींटी है आपका बच्चा, तो हताश निराश न हों। चींटी धरती का सबसे परिश्रमी जीव है और अपने खुद के वज़न की तुलना में एक हज़ार गुना ज्यादा वजन उठा सकती है।
इसलिए अपने बच्चों की क्षमता को परखें और जीवन में आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित करें…ना कि भेड़ चाल चलाते हुए उसे हतोत्साहित करें।
SAVE HUMAN BEHAVIOR FIRST
“क्योंकि किसी को शहनाई बजाने पर भी भारत रत्न से नवाज़ा गया है”
अपने कल के भविष्य को उज्जवल बनाने के लिए आइये मिलकर इस घिसीपिटी शिक्षा व्यवस्था से बाहर निकले।