रहमान ने बनाया पंक्षियों के लिए आशियाना।

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दोस्तों गर्मियों का मौसम आ चुका है। जहां एक ओर  लोग गर्मियों से परेशान रहते हैं तो वहीं पानी की जरूरत भी गर्मियों में बढ़ जाती है। 

लेकिन सोचिए पानी साथ होकर भी एक बूंद पीने को न मिले तो ? प्रार्थना करिये ऐसा कभी किसी के साथ न हो। 

तो दोस्तों आज हम बात करते हैं गर्मी से परेशान पशु-पक्षियों के बारे में। यह तो हम सभी जानते हैं की गर्मी के दिनों में हमें पानी और छाया चाहिए। ठीक उसी प्रकार से पानी और छाया इन्हें भी चाहिए। इसलिए जहां तक हो सके घर के बाहर एक पेड़ अवश्य लगाएं। दूसरा छोटी सी पानी की टंकी अपने क्षेत्र में अवश्य बनाये जिससे कि आने-जाने वाले पशु और पंछी अपनी प्यास बुझा सकें। 

घर के छत पर एक कोने में छायादार स्थान बनाये और वहां पंक्षियों के लिए एक कटोरे में पानी और एक कटोरे में थोड़ा सा अनाज अवश्य रखे। 

नन्हें और बेजुबान प्राणियों के लिए इतना तो हम कर ही सकते हैं।

आज हम ऐसे ही एक शख्स के बारे में चर्चा करेंगे जिन्होंने अपना जीवन नन्हे-नन्हे पंक्षियों को समर्पित कर दिया है। वह शख्स कोई शहर से नहीं बल्कि एक छोटे से गाँव से आता है। हम बात कर रहें है बिहार के गया जिले में रहने वाले तंजील उर रहमान की। जो गया जिला के बोधगया ब्लॉक, चेरकी थाना क्षेत्र के नस्का गांव में रहते हैं ।  पंक्षियों के प्रति आगाध प्रेम की वजह से पूरे बोधगया में चर्चा में रहते हैं।  

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तंजील उर रहमान कोई फेमस एक्टर या फेमस शख्स नहीं हैं। वे बिल्कुल ही सरल और साधारण इंसान है। लेकिन इनके कार्य अद्वितीय हैं। ये पंक्षियों से बहुत ज्यादा प्यार करते हैं। इतना अधिक प्यार की इन्होंने अपने ही घर को पंक्षियों का घोसला बना दिया है। सबसे बड़ी बात तो यह है कि पंक्षियों की सुरक्षा और उनकी निगरानी के लिए उन्होंने पूरे घर में सीसीटीवी कैमरा भी लगाए हैं।  

विशेष रूप से छोटी चिड़िया कहे जाने वाली गौरैया के संरक्षण के लिये इन्होंने यह कदम उठाएं हैं। कई बार तो पंक्षियों को मारने वाले लोगों से इनकी लड़ाई तक हो चुकी है। ऐसा लगता है जैसे पंक्षियों के प्राण इनके जिस्म में समाया हुआ हो। पंक्षियों की घटती संख्या ने उन्हें इस कार्य को करने की प्रेरणा दी। 

पहले तो इनके बनाये हुए घोसलों में एक या दो पक्षी ही रहते थे लेकिन धीरे-धीरे इनकी संख्या में वृद्धि होती गई और आज सैकड़ों की संख्या में है ये चहकती रहती हैं। 

पंक्षियों के लिए खाने-पीने का सारा प्रबंध प्राकृतिक तरीके से ही करते हैं। उन्होंने अपने बगीचे और घर के बाहर में मिट्टी के छोटे-छोटे बर्तन जिन्हें घड़ा भी कहते हैं को लटकाया है जिसमें लगभग सैकड़ों पंक्षियों ने अपना घोसला बनाया है। सुबह-शाम इनकी चहकने की आवाज आसपास के लोगों का भरपूर मनोरंजन करती है।  पंक्षियों के लिए उठाया गया यह कदम सराहनीय है। 

दोस्तों इनके कार्य की जितनी सराहना की जाए कम है। हमें भी इनसे प्रेरणा लेते हुए अपने घर और बागीचे में पंक्षियों के रहने की व्यवस्था करनी चाहिए। 

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