“जाको राखे साईंयां मार सके ना कोई।” इस घटना को जानने के बाद आप यही कहेंगे, ये पंक्तियां वास्तव में हकीकत बयां करती हैं।
26 मई 2021 को आये यास तूफान से जिंदगी और मौत के बीच जुझ रहे नन्हें परिंदे की जान जमशेदपुर के मानगो, जवाहरनगर, विकास विद्यालय के पास रहने वाले बच्चों ने बचा कर की।
आपको बता दें कि यास तूफान के कारण इस नन्हें परिंदे का बुलबुल परिवार तो सुरक्षित स्थान ढूंढ कर जा चुका था। लेकिन यह नन्हा बुलबुल का बच्चा अपने घोसलें में ही छूट गया था। कारण बस इतना-सा था कि इस नन्हें से बच्चे के पर नहीं निकले थे। फिर होना क्या था कुदरक का कहर ऐसा आया कि घोसला बारिश और तूफान में टूटकर जमीन पर गिर गया। बारिश होती रही और यह नन्हा बुलबुल अपने घोसलें में सिमट कर जिंदगी और मौत की जंग लड़ रहा था। वह शायद मौत के मुँह में चला भी जाता अगर उस पल इन बच्चों की नजर नहीं पड़ती।
घर वालों के लाख मना करने के बावजूद बच्चे सुनते किसकी हैं। दोपहर का समय था, तूफान और बारिश का मजा लेने के लिए बच्चों ने घर की खिड़की खोली ठंढी-ठंढी हवा के झोंको ने इनको मस्त कर दिया। तभी एक कि नजर खिड़की के बाहर टूटे घोसले पर पड़ी। जब उस छोटे लड़के ने अपने भाई और बहन को इस घोसले को दिखाया तो कौतूहल वश सभी का ध्यान उस घोसले पर केंद्रित हो गया।
सब ने देखा कि घोसले में ही दो नन्हें जीव फंसे पड़े है जो बहुत छटपटा भी रहे थे। फिर क्या था इन बच्चों ने बिना देर किए ही भींगते हुए घोसले सहित उसे घर के अंदर ले आये। सभी बारिस में भींग चुके थे और घरवालों की डांट भी खा चुके थे। लेकिन चेहरे पर खुशी बहुत थी। उन्हें घर के एक अलमारी के कोने में घोसला सहित रख दिया।
कहते हैं बच्चे भगवान का रूप होते हैं। आज इन बच्चों ने ईश्वर का रूपधर कर नन्ही चिड़ियों को बचाया था।
दूसरे दिन सुबह तक बारिस खत्म हो चुकी थी। बच्चे बुलबुल के नन्हें बच्चों को निहार रहे थे। बाहर बुलबुल का परिवार उन्हें ढूंढ रहा था। और खूब आवाजें कर रहा था। यह देख बच्चों ने सोच-विचार करके घोसले को मजबूती से बनाते हुए उसे घर के बगीचे में रखने का प्लान बनाया। फिर क्या था। बच्चों ने जुगाड़ टेकनिक का इस्तेमाल करते हुए एक पुराने हेलमेट को लिया। जो ऊपर से तो ठीक दिख रहा था लेकिन अंदर से खाली था। यह हेलमेट बुलबुल के बच्चों को धूप और बरसात दोनों से बचाने में सक्षम दिख रहा था।
फिर क्या था उस हेलमेट को नीचे से प्लास्टिक की रस्सी द्वारा जाल जैसा छान दिया गया। अब जहां हेलमेट में फाइवर ग्लास होता है वहां का ग्लास हटाते हुए आधा प्लास्टिक बैग से ढंक दिया ताकि बरसात अगर तेजी से हो तो पानी इसके अंदर ना जाये। और आधा इनके परिवार वालों को आने-जाने के लिए खुला रखा। सूखा नारियल के आधे खोल के टुकड़े में घोसले और नन्हें पंछियों को रखकर उस हेलमेट के अंदर रख दिया। अब उस हेलमेट को बागीचे में एक बांस के सहारे टांग कर घर के अंदर आ गए। वे खिड़की से झांककर यह देखने लगे कि बुलबुल का परिवार उस हेलमेट के पास आता है या नहीं। थोड़ी देर बीतने के बाद उन्होंने देखा बुलबुल का परिवार अपने नन्हें बच्चों को ढूंढने में कामयाब हो गया। उसकी माँ आई और उनको भोजन ढूंढ-ढूंढकर लाकर देने लगी।
यह देख घर के बच्चे बहुत खुश हुए। बुलबुल के बच्चों को बचाने में पूजा (12 वर्ष), आर्यन (11वर्ष) और करण (11वर्ष) ने अपनी सूझबूझ का परिचय दिया। ये सभी बच्चे विकास विद्यालय के विद्यार्थी हैं।
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