…….यानी टीकाकरण के कारण मौतें हुईं? कोविड-19 टीकाकरण: मिथक बनाम तथ्य

नई दिल्ली :  स्‍वास्‍थ्‍य एवं परिवार कल्‍याण मंत्रालय द्वारा दिनांक 15 जून 2021 को जारी प्रेस रिलीज में टीकाकरण से हुई मृत्यु पर विशेष जानकारी दी गई है। जिसमें बताया गया है कि –

“टीकाकरण के बाद किसी भी मौत या अस्पताल में भर्ती होने का कारण स्वत: रूप से टीकाकरण को नहीं माना जा सकता है।”

“घटना का आकलन यह समझने में मदद करता है कि क्या “टीकाकरण के बाद प्रतिकूल घटना” सीधे टीके के कारण हुई थी और मामलों की जांच राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर की जाती है।”
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आगे बताया गया कि – “कुछ मीडिया रिपोर्ट्स में गंभीर एईएफआई के मामलों में वृद्धि की बात कही गई है, जिसके अनुसार टीकाकरण के बाद ‘मरीजों की मौत’ भी हुई है। मीडिया रिपोर्टों के अनुसार, टीकाकरण के बाद होने वाली 488 मौतें 16 जनवरी 2021 और 7 जून 2021 की अवधि के दौरान कोविड के बाद की जटिलताओं से जुड़ी हैं। इस दौरान कुल 23.5 करोड़ कोविड के टीके लगाए जा चुके थे।”

लेकिन यह स्पष्ट किया जाता है कि ये रिपोर्टें मामले की अधूरी और सीमित समझ पर ही आधारित हैं। यह ध्यान दिया जा सकता है कि “दम तोड़ना” शब्द किसी घटना को दर्शाता है यानी टीकाकरण के कारण मौतें हुईं।


भारत में कोविड-19 के टीकाकरण के बाद रिपोर्ट की गई मौतों की संख्या 23.5 करोड़ खुराकों में से मात्र 0.0002 प्रतिशत है।जो कि आबादी में अपेक्षित मृत्यु दर के दायरे में ही है। जैसा कि यह निश्चित है एक जनसंख्या में, मृत्यु एक निश्चित दर से होती है। एसआरएस डेटा के अनुसार 2017 में मृत्यु दर 6.3 प्रति 1000 व्यक्ति सालाना थी।

(एसआरएस, रजिस्ट्रार जनरल और जनगणना आयुक्त, भारत  

जिसे नीचे दिए लिंक पा देखा जा सकता है। https://main.mohfw.gov.in/sites/default/files/HealthandFamilyWelfarestatisticsinIndia201920.pdf)

यह भी जानना महत्वपूर्ण और प्रासंगिक है कि कोविड-19 रोग के लिए सकारात्मक जांच करने वालों की मृत्यु दर 1 प्रतिशत से अधिक है और जबकि कोविड-19 टीकाकरण इन मौतों को रोक सकता है। इसलिए, कोविड-19 बीमारी के कारण मरने के ज्ञात जोखिम की तुलना में टीकाकरण के बाद मरने का जोखिम लगभग नगण्य है।

टीकाकरण के बाद प्रतिकूल घटना (एईएफआई) को ‘किसी भी अप्रिय चिकित्सा घटना के रूप में परिभाषित किया गया है जो टीकाकरण के बाद होती है और जिसका टीके के उपयोग के साथ एक घटनात्मक संबंध नहीं होता है। 


यह कोई प्रतिकूल या अनपेक्षित संकेत, लक्षण या रोग, असामान्य प्रयोगशाला खोज, हो सकता है। भारत सरकार के साथ-साथ राज्य सरकारों द्वारा डॉक्टरों, स्वास्थ्य कर्मियों, और वैक्सीन प्राप्तकर्ताओं को टीकाकरण के बाद किसी भी समय टीकाकरण के बाद होने वाली सभी मौतों, अस्पताल में भर्ती होने और विकलांगता के साथ-साथ किसी भी छोटी और प्रतिकूल घटनाओं की रिपोर्ट करने के लिए प्रोत्साहित किया गया है।

इस रिपोर्ट में यह भी साफ साफ कहा गया है कि –

“किसी भी टीकाकरण के बाद होने वाली मौतों, अस्पताल में भर्ती होने या विकलांगता या चिंता का कारण बनने वाली घटनाओं को गंभीर या गंभीर मामलों के रूप में वर्गीकृत किया जाता है और इसकी जिला स्तर पर जांच की जानी चाहिए। घटना का आकलन यह समझने में मदद करता है कि क्या घटना टीके के कारण हुई थी। 


इसकी जांच राष्ट्रीय और राज्य स्तर पर आयोजित की जाती है। इसलिए, टीकाकरण के बाद किसी भी मौत या अस्पताल में भर्ती होने को स्वत: रूप से टीकाकरण के कारण नहीं माना जा सकता है जब तक कि जिला, राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर एईएफआई समितियों द्वारा जांच नहीं की जाती है और टीकाकरण के लिए जिम्मेदार नहीं ठहराया जाता है।”

“जिले से लेकर राज्य तक हर स्तर पर एईएफआई निगरानी की मजबूत व्यवस्था की गई है। जांच पूरी हो जाने के बाद, कोविड-19 टीकाकरण से संबंधित जानकारी को पारदर्शी रूप से साझा करने के बाद, केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय की वेबसाइट पर रिपोर्ट जारी की जाती है।”


ये तो थी केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय की प्रेस रैली रिपोर्ट लेकिन स्थानीय क्षेत्रों से यह खबर सुनने को अवश्य मिली है कि टीका लेने के बाद फलां व्यक्ति को लकवा मार गया है या उसकी मृत्यु हो गई है। लेकिन वास्तविकता का अभाव ही रहा है।

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