जमशेदपुर: मेनहर्ट घोटाला के अभियुक्तों पर कार्रवाई के लिए माननीय झारखण्ड उच्च न्यायालय में दायर मेरी रिट याचिका पर गत 26 जून को आदेश हुआ है। इस आदेश के आलोक में घोटालाबाजों के खिलाफ शीघ्र ही राँची के डोरण्डा अथवा धुर्वा थाना में प्राथमिकी दर्ज कराउंगा।
मेरी याचिका खारिज करते हुए विद्धान न्यायाधीश ने मुझे तीन विकल्प दिया है, जो निम्नवत् है:-
1) मैं झारखण्ड उच्च न्यायालय के दो न्यायाधीश की खंडपीठ द्वारा 28 सितंबर, 2018 में दिये गये आदेश के क्रियान्वयन कराने के लिए उच्च न्यायालय की खंडपीठ में जाँउ,
2) मैं घोटाला के दोषियों के विरूद्ध थाना में भारतीय दंड संहिता के प्रावधानों के अनुरूप प्राथमिकी दर्ज कराउं और जाँच की मांग कंरू,
3) मैं सक्षम न्यायालय में कार्रवाई हेतु मुकदमा दायर करूं।
अपने अधिवक्ता के परामर्श के अनुसार मैंने दूसरा विकल्प चुना है और शीघ्र ही राँची के डोरण्डा अथवा धुर्वा थाना में उच्च न्यायालय के निदेशानुसार प्राथमिकी दर्ज कराउंगा। मांग करूंगा कि भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो (एसीबी) ने इस मामले में बंद लिफाफा में जो प्राथमिक जाँच रिपोर्ट माननीय उच्च न्यायालय को सौंपा है, पुलिस उस रिपोर्ट को एसीबी से प्राप्त करे और उस पर कार्रवाई करे। उल्लेखनीय है कि एसीबी ने इस मामले में प्राथमिक जाँच किया है और मेरी रिट याचिका की सुनवाई के समय माननीय झारखण्ड उच्च न्यायालय द्वारा मांगे जाने के बाद इसे बंद लिफाफा में न्यायालय को सौंपा है। इस प्राथमिक जाँच रिपोर्ट में उन सभी अभियुक्तों के नाम हैं, जिनके विरूद्ध कार्रवाई के लिए थाना में एफआईआर करने का निर्देश माननीय उच्च न्यायालय ने दिया है।
गत 26 जून को जब झारखण्ड उच्च न्यायालय ने मेरी रिट याचिका खारिज करने का निर्णय लिया तो घोटालाबाज और घोटालाबाजों के समर्थकों ने इसे मेरे लिए एक बड़ा झटका बताया और ऐसा माहौल बनाया कि न्यायालय ने इस संबंध में मेरे आरोपों को खारिज कर दिया है। दो दिन बाद 28 जून को न्यायालय का निर्णय आने के बाद इनके मुँह पर तमाचा लगा है। कारण कि न्याय-निर्णय में माननीय न्यायाधीश ने मेरी याचिका में उल्लिखित उन बिन्दुओं का जिक्र किया है, जिसके अनुसार मेनहर्ट के परामर्शी चयन में भारी अनियमितताएँ हुई हैं।
मेरी रिट याचिका को माननीय न्यायालय ने केवल इस आधार पर खारिज किया है कि इस विषय में 28 सितंबर, 2018 को माननीय झारखण्ड उच्च न्यायालय के दो न्यायाधीश की खंडपीठ ने पहले ही निर्णय दिया है कि ‘‘सरकार जाँच के निष्कर्षों पर कार्रवाई करे।’’ परन्तु तत्कालीन सरकार ने इस पर कार्रवाई नहीं किया, इसलिए उच्च न्यायालय का कहना है कि इस मामले में एक बार जब दो न्यायाधीशों की खंडपीठ ने निर्णय दे दिया है तो उस पर एकल पीठ द्वारा विचार करना उचित नहीं है। इसलिए न्यायालय ने निर्देश दिया है कि या तो मैं 28 सितंबर, 2018 के दो न्यायाधीशों की खंडपीठ द्वारा दिये गये निर्णय को लागू कराने के लिए खंडपीठ के समक्ष जाउं अथवा थाना में एफआईआर दर्ज करांउ या सक्षम न्यायालय में मुकदमा दर्ज करूं। मैंने दूसरा विकल्प चुना है। न्यायादेश की छायाप्रति संलग्न है।
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सरयू राय