मशरुम उत्पादन बना अतिरिक्त आय का स्रोत, महिलायें हो रहीं आत्मनिर्भर। डुमरिया प्रखंड के खैरबनी गांव की 10 महिलाओं की पहल ला रही रंग, मशरूम उत्पादन में बनीं प्रेरणास्रोत।

THE NEWS FRAME

जमशेदपुर  |  झारखण्ड 

ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाएं प्राय: मजदूरी का काम और खेती सब्जी बाड़ी को ही आय का महत्वपूर्ण साधन समझती रही हैं। वर्षो से श्रम और पारम्परिक पशुपालन आय का स्त्रोत रहा है किंतु पहली बार अब वे मशरुम उत्पादन कर अच्छा आय अर्जित करने लगी हैं।  डुमरिया प्रखंड के खैरबनी पंचायत अंतर्गत खैरबनी गांव की दस महिलाओं ने सामूहकि रुप से मशरुम की खेती एक 30X30 की जमीन पर पुआल-बॉस की घर बनाकर करना शुरू किया जो उनके लिए आय का अच्छा स्रोत साबित हुआ है।  

THE NEWS FRAME

जे.टी.डी.एस से मिला तकनीकी प्रशिक्षण एवं आर्थिक सहयोग 

झारखंड ट्राईबल डेवलपमेंट सोसाइटी (JTDS) द्वारा वर्ष 2016 में गांव के महिलाओं का समूह बनाकर उन्हें स्थानीय स्तर पर रोजगार उपलब्ध कराने की पहल की गई। थोपे बाहा महिला समिति के नाम से एक स्वयं सहायता समूह बनाकर प्रारंभ में दस हजार रू. का बीज पूंजी तथा संचालन से जुड़ी कई प्रशिक्षण JTDS के द्वारा दिया गया । मशरुम उत्पादन हेतु खैरबनी गांव की 42 अनुसूचित जनजाति की महिला को प्रशिक्षण के साथ ही प्रत्येक महिला को 40-40 बैग जिसमें पुआल, मशरुम बीज, कीटनाशक दवा, प्लास्टिक, स्प्रेयर तथा सभी 42 महिलाओं के बीच 2 मशरुम ड्रायर मशीन तथा 2 पुआल कटर वितरित किया गया।  

THE NEWS FRAME

थोपे बाहा महिला समिति से ही जुड़ी गांव की 10 महिलाओं सोनामुनी हासदा, आरसू हेम्ब्रम, पावेट हेम्ब्रम, पोको मुर्मू, गेरथो मार्डी, पानोमुनी मार्डी, बती हेम्ब्रम आदि ने समूह में व्यवसायिक रूप से मशरुम उत्पादन शुरू कर सभी के लिए प्रेरणास्त्रोत बनी हैं। इस वर्ष अब तक 386 किलो मशरुम का उत्पादन उन्होने किया है जिसमें 264 किलो का स्वयं घरेलू खपत के बाद कुल 133 किलो मशरुम की बिक्री कर लगभग 16,000 रु. की उन्हें आमदनी हुई। JTDS के डीपीएम रुसतम अंसारी ने बताया कि मशरूम उत्पादन महिलाओं के आर्थिकपार्जन की दिशा में पहला प्रयास है जो सफल होता दिख रहा है। खास बात यह है कि महिला अब इसे गांव के हाट में भी बेच पा रही है। कुछ कच्चा और सुखा मशरुम एंजेसी को बेची जा रही है। आने वालों वर्षों में यह ग्रामीण क्षेत्रों में भी व्यापकता पा लेगा।

Leave a Comment