My Pen : रविवार 31 अक्टूबर, 2021
मन के अंदर आग है जो बुझता ही नहीं। भड़कता रहता है। समस्याओं पर खुले विचार लिखता रहता है। कभी बलात्कार, कभी आरक्षण तो कभी फ्री का सरकारी सामान। महंगाई जिसे रोक पाने में असमर्थ रही है सरकार।
आखिर जिम्मेदार कौन?
भारत की एक और व्यथा लेकर आज हम आये हैं। सत्ता की चाहत में यह सुव्यवस्था अब कुव्यवस्था बन गया है। यहां यह कहना शायद ज्यादा उचित होगा कि यह पक्ष और विपक्ष दोनों के लिए गले की हड्डी बन गई है न निगल पा रहे हैं और ना ही उगल पा रहे।
यह है आरक्षण का प्रसाद। जिसे संविधान निर्माता बाबा भीम राव अम्बेडकर साहब ने भारत वासियों को मात्र 10 वर्षों के लिए दिया था। लेकिन भारतीय चमचों और देश को बर्बाद करने वाले चंद राजनेताओं ने इसे ऐसा भुनाया, ऐसा भुनाया की आज भी इसका स्वाद चखने के लिए लोगों को दिया जा रहा है।
बलात्कार का कारण कौन?
घटनाओं पर चर्चा करने से पहले एक बात यहां कहना उचित होगा कि आधुनिकीकरण और मोबिलाइजेशन में हम अपने समाज को डुबोने में लगे हैं। महिलाओं में कपड़े पहनने का तरीका भी बदल गया है। कुछ अपनी संस्कृति बचाने में लगी हैं तो कुछ वेस्टर्न स्टाइल के अभद्र और अर्धनग्न परिधान का बखूबी प्रयोग करते हैं। वहीं मोबाइल का अत्यधिक प्रयोग मोबाइल क्रांति कहे या फिर फिजूल बाजी टाइम पास। जहां बड़ों को तो छोड़िए साहब, छोटे-छोटे बच्चे सैक्सी बनना चाहते है। अभद्र डांस, गाने और अभद्र कपड़े कौन-सी युग में ले जा रहे हैं। क्या इसे ही आधुनिकता कहते है।
वहीं पुरुष जाती स्वयं को सर्वोच्च समझती है। उसे लगता है सारे अधिकार केवल पुरुष को ही मिलने चाहिए। और वही काम जब महिला करे तो उसके चरित्र पर उंगली उठती है। हमारे समाज को इस दिशा में गंभीरता से सोचना ही होगा कि बढ़ते बलात्कर के पीछे का कारण क्या है? वैसे इस विषय पर हम कभी विस्तार से चर्चा जरूर करेंगे।
आइये अब फ्री की बात करते हैं।
पहली तो हमारे समाज में फ्री का ज्ञान बड़ी आसानी से मिल जाता है। आप एक पूछो हजारों उपदेश देने जरूर आगे आ जाएंगे। जिसे आप सजेशन भी कह सकते हैं। यह तो फिर भी ठीक है लेकिन दूसरी का क्या करें?
दूसरी ओर सरकारों ने हद कर रखा है। जो कुर्सी पर बैठता है फ्री में हर चीज बांटने लगता है।
वोट के बदले नोट फ्री में दिया जाता था यहाँ तक तो समझ आता है। लेकिन यह क्या सरकार बनते साथ ही कभी मोबाइल, कभी लैपटॉप। प्रत्येक सरकार क्या अपने पुरखों की जमीन बेच कर ये सब फ्री बांटती है।
राज्यों का फ्री समान बांटने का नौटंकी देखिये- साउथ में टेलीविजन, कहीं धोती-साड़ी, कहीं साइकिल, टैबलेट हद है भाई। अरे अपने पुरखों की कमाई पहले बांट के दिखाओ।
समान फ्री बांटना बकवास तो है ही, लेकिन सबसे बकवास बिजली फ्री में देना।
केंद्र सरकार देश के हर घर, बाजार और मोहल्ले में फ्री शौचालय बनवा दिया है। घर वाले तो फिर भी ठीक है लेकिन बाजार और मोहल्ले के हाल जानिए- कहीं तो ताले लटके हैं तो कहीं गंदगी का अंबार लगा है।
गरीब परिवार की मूलभूत आवश्यकता (रोटी कपड़ा और मकान) की कमी को दूर करना एक अच्छा कदम है। वहीं किसानों को फ्री में खाद दिया जाना भी सही है। जनधन खाते में फ्री का पैसा, किसानों को फ्री का पैसा, बेरोजगारों को बेरोजगारी भत्ता, विधवा – वृद्धा को पेंशन। छात्र और छात्राओं को दिया जाने वाला छात्रवृत्ति कार्यक्रम।
मैं इन सब के खिलाफ नहीं हूं लेकिन असली खेल तो अभी बताना बाकी है।
क्या लगता है आपको ये सब देने के लिए पैसा कहां से आता है? और क्या लगता है सब के सब इन सबको पाने के लायक है?
वास्तविकता यह है कि ये सब आम जनता के टैक्स के अरबों रुपयों की लूट का एक तमाशा मात्र है। वास्तविकता यह है कि जिसे यह सुविधाएं मिलनी चाहिए उसे मिलता ही नहीं। वह कार्यालयों के चक्कर लगाते-लगाते खुद चकरा जाता है। सरकारी फ्री का सामान बांटने के लिए निकलता तो 100% ही है लेकिन वास्तविकता में आते-आते यह 5% से भी कम हो जाता है। बाकी का 95% कहाँ जाता है यह आप सबको पता है। वहीं बचे हुए 5% में से केवल 1% जरूरतमंद को ही इसका लाभ मिल पाता है। बाकी के 4% संपन्न वर्ग लूट लेता है। दूसरी ओर फ्री के सामानों की गुणवत्ता क्या है इससे भी आप अनजान नहीं है।
अंग्रेजों ने क्या लुटा है साहब, जो ये लोग मिलकर लूट रहे हैं।
क्या कॉंग्रेस और क्या बीजेपी?
क्या अधिकारी और क्या सरकारी कर्मचारी?
आइये अब एक और खेल बताते हैं- महंगाई का।
ये जो देश की अर्थव्यवस्था है न यह आम जनता के टैक्स और फ्री के सामान के आसपास ही घूमती रहती है। एक चॉकलेट खरीदने से लेकर हवाई जहाज में सफर करने तक का टैक्स आम नागरिक देता है। और इस टैक्स के पैसे से सरकार और अधिकारी के घर का चूल्हा ही नहीं जलता बल्कि उसके अय्याशी का इंतजाम भी होता है। हकीकत क्या है आप अच्छी तरह से जानते हैं। आज जो महंगाई लगातार बढ़ रही है वह सरकारों की देन है। आम नागरिक के पैसों का उपयोग कम उपभोग अधिक करते हैं। एक तो मनमाना टैक्स, ऊपर से टैक्स के पैसों की अय्याशी। अब हर चीज फ्री में बांट ही दोगे तो बाकी का खर्चा किससे पूरा होगा।
ऊपर से डेवलपमेंट के नाम पर अवैध वसूली के साथ डेवलपमेंट के पैसों का गबन। खैर ये साधारण हो गया है। और मजे की बात इन पर जो कोई बोला, पूछो वो फिर कब बोला?