भारत बंद , पूरी तरह से एक राजनीतिक नाटक कहा जा सकता है। किसानों का प्रदर्शन कई दिनों से चल रहा है। पिछले 12 दिनों से पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश के कुछ लोग सिंघू बॉर्डर पर किसान बिल का विरोध कर रहे हैं। ‘चक्का जाम’ नाम से, पूरे देश में बंद का माहौल बनाया जा रहा है। 15 विपक्षी दल, और कई ट्रेड यूनियनों ने मिलकर किसानों के बिल के विरोध में प्रदर्शन किया । यह आंदोलन केंद्र के तीन नए कृषि बिलों के खिलाफ शुरू किया गया था, लेकिन अब इस पूरे कृषि बिल को समाप्त करने की बात तथाकथित पार्टियों द्वारा की गई है।
लेकिन हम भारत बंद के नुकसान और लाभों के बारे में बात करेंगे।
हम बचपन से लेकर आज तक देखते आ रहे हैं – भारत बंद है।
आखिर यह भारत बंद है क्या? भारत बंद कौन करता है? और क्या ऐसा करना मांगों को पूरा करता है?
वर्ष 1947 में, भारत को अंग्रेजों से मुक्त करने के लिए, चक्का जाम, रेल जाम, राजमार्ग जाम करने के लिए टायर या अन्य वस्तुओं को जलाया गया था और यह प्रथा आज भी प्रचलित है। भारत की स्वतंत्रता के समय, भारत और अमेरिका की समान अर्थव्यवस्थाएँ थीं। एक रुपया एक डॉलर के बराबर था। लेकिन आज देखें कि डॉलर और रुपया दोनों का स्तर क्या है? आप सोच रहे होंगे कि भारत के बंद होने के बीच डॉलर कहां से आ गया। तो मैं आपको बता दूं दुनियां भर की अर्थव्यवस्था डॉलर से ही मापी जाती है। कुछ महीनो पहले जीडीपी बहस हो रही थी। CAA बिल पर भी पुरे देश को जलाने की साजिस थी, पश्चिम बंगाल में कई ट्रेन, बसों को आग के हवाले कर दिया गया था। मैं कोई अर्थशास्त्री नहीं हूँ। देश का एक नागरिक होने के नाते मेरे कुछ विचार है जिससे देश को होने वाले नुक्सान से बचाया जा है। कभी तथाकथित नौटंकी बाजो ने आम लोगो के बारे में सोचा है।
ठेला चलाने वाले, दैनिक मजदूर , रोड किनारे सब्जी / अन्य चीजें बेचने वाले लोग इस बंदी से लाभ उठा सकते है क्या ? क्या ऐसा करने से उन मजदूरों का घर चलेगा ? बाजार में किसी का दूकान तोड़ देना , किसी का ऑटो फोड़ देना क्या इससे मसले हल हो जायेंगे ? एम्बुलेंस का रास्ता रोके हुए लोग क्या उस मरीज को स्वस्थ कर सकते है ? कई सवाल है जिसका जवाब बंद समर्थक नहीं दे सकते है।
सरकार के गलत फैसले का विरोध करना सही है लेकिन क्या बंद ही एक मात्र रास्ता है सरकार के नीतियों को बदलने का। विधायक और सांसद जनता के प्रतिनिधि है लेकिन उनकी चुप्पी यह दर्शाती है की, कहीं न कहीं उनका अस्तित्व नहीं के बराबर है।
किसी एक को बिरयानी खिलाने से सबका पेट नहीं भरता। सबका बासी भात खाकर ही मन तृप्त हो जाता है। इसलिए काम वह करना चाहिए जिससे सरकार के गलत कार्यो का विरोध भी हो और आम जनता को किसी प्रकार का नुकसान भी ना हो।
स्वयं राष्ट्रीय संपत्ति को नुक्सान पहुँचाने से स्वयं का ही नुकसान होता आया है। बंद और राष्ट्रीय संपत्ति को नुक्सान पहुँचाना, टैक्स की बढ़ोतरी में योगदान देता है। और इसलिए तो आज तक न हमारी अर्थव्यवस्था मजबूत हो पायी है और न ही हमारा बौद्धिक विकास।
गलत नीतियों में बदलाव के लिए बंद समर्थको को अपने जन प्रतिनिधियो से बात करनी चाहिए। रास्ते और भी हो सकते है सुधार के। हमें एक बार जरूर सोचना होगा।
इस विषय पर आगे भी बात रखेंगे। आप का कोई सुझाव हो तो हमें अवश्य संपर्क करें।