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भटकाना, लटकाना, अटकाना, मटियाना और भूलजाना यही है सरयू राय का चरित्र – डा. अजय कुमार

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मौके से क्यों गायब रहे, सरयू राय बताएं किसके लिए काम कर रहे है.

जमशेदपुर। पूर्व सांसद सह कांग्रेस के वरिष्ठ नेता डा. अजय कुमार ने सोमवार को पत्रकारों को संबोधित करते हुए कहा कि पांच वर्षों में विधायक सरयू राय ने भटकाना, लटकाना, अटकाना, मटियाना और भूलजाना ये पांच बेहतरीन कार्य किए. यही उनका चरित्र भी है. सरयू राय ने पांच वर्षों में केवल जनता को ठगा है. लोग त्राहिमाम कर रहे हैं.

भटकाना
पांच वर्षों में मोहरदा जलापूर्ति योजना की स्थिति में कोई सुधार नहीं हुआ आज भी लोगों को दूषित एवं बदबूदार पानी की सप्लाई हो रही है. पांच वर्षों में बिरसानगर, बागुनहातू,बारीडीह बस्ती,बागुननगर आदि क्षेत्रों में शुद्ध पानी नहीं उपलब्ध करा पाए सरयू राय. लोग पानी के लिए विधायक के पास भटकते रहे और विधायक उन्हें आश्वासन की चासनी से सराबोर वादों की मिठाई दिखाकर भटकाते रहे.

लटकाना

पांच वर्षों में जेम्को चौक से साउथ गेट तक जाने वाली सड़क की सूरत-ए-हाल नहीं बदल पाए सरयू राय. भारी वाहनों के चलने से सड़क जर्जर हो गयी है. इस क्षेत्र की जनता जान हथेली पर रख कर सफर करती है, इस सड़क पर हुए हादसे में कई लोगों ने अपनी जान गंवाई है. पंचवर्षीय योजना के तहत भी इस सड़क का जीर्णोद्धार नहीं हो पाया. तो आप समझ सकते है कि सरयू राय ने कितना विकास के कार्य किया है. शनिवार की रात इस सड़क पर एक पत्रकार घर लौटने के क्रम में घायल हो गया. आप समझ सकते हैं कि सरयू राय कितनी तेजी से कार्य करते है. पांच वर्षों से तो इस सड़क का जीर्णोद्धार लटका हुआ है.

अटकाना
25 वर्षों तक बीजेपी व पूर्व मुख्यमंत्री ने जमशेदपुर पूर्वी के लोगों को मालिकाना के नाम पर ठगा और अब पांच वर्ष सरयू राय ने भी मालिकाना के नाम पर अटकाये रखा.

मटियाना

पांच वर्ष (2014 से 2019) तक मंत्री रहे औऱ फिर 2019 से विधायक इतने दिनों में सरयू राय चमत्कार कर सकते थे, लेकिन उन्होंने कुछ नहीं किया. बस मटियाते रहे.

भूलजाना
कल्याणनगर, इंद्रानगर जैसी बस्तियों में लोग नरकीय जीवन जीने को विवश हैं. यह मैं नहीं मीडिया में छपी खबरें इसके प्रमाण हैं. विधायक या सांसद नहीं होने के बावजूद भी बस्तीवासी मुझ तक पहुंच रहे हैं और एक कांग्रेस कार्यकर्ता होने के नाते मैं उनकी बात सुनने और उनकी समस्या का समाधान करने की पूरी कोशिश कर रहा हूं, तो फिर सरयू राय क्यों नहीं कर सकते? सरयू राय चुनाव जीतने बाद गरीब एवं दबे कुचले लोगों को भूल जाते है. क्योंकि उनसे उन्हें कुछ हासिल होने वाला नहीं बल्कि वे कॉर्पोरेट्स घरानों के लिए हमेशा तत्पर नजर आते है. लोगों से किए गए वादों को भूलजाना उनकी फितरत है.

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सरयू राय ने पूरे नहीं किए वादे

डा. अजय कुमार ने कहा कि सरयू राय ने चुनाव के समय युवाओं को रोजगार दिलाने का वादा एवं जमशेदपुर को कंपनियों का कब्रगाह नहीं बनने देने का वादा किया था. लेकिन पिछले पांच साल कितने युवाओ को रोजगार दिलाये हैं सरयू राय. अपने परिवार और रिशेतेदार को छोड़कर किसी का भी काम नहीं किए सरयू राय. वहीं पांच वर्षों मे एक भी कंपनी नहीं खुलवा पाए, केबल कंपनी के कर्मचारियों से किया अपना वादा भी पूरा नहीं किए. टाटा मोटर्स के अन्दर संचालित कंपनी खड़गपुर चली गई और सरयू राय हाथ पर हाथ धरे बैठे रहें. सरयू राय ने सिर्फ मुझ पर झूठे आरोप लगाते रहे हैं.

अजय कुमार ने कहा कि सरयू राय ने जमशेदपुर से अत्याचार, अपराध और आतंक से मुक्ति दिलाने का वादा किया था लेकिन वो नाकाम रहे. जमशेदपुर में अपराधी बेलगाम है. हत्या और चोरी की घटनाएं बढ़ गई है. वहीं बिरसानगर जैसे क्षेत्रों में भूमाफियाओं का आतंक बढ़ गया है. कई भूमाफिया को सरयू राय का संरक्षण भी प्राप्त है. ऐसे में जमशेदपुर से अपराध कैसे समाप्त हो पाएगा.

गायब होने की कला में माहिर हैं

डा.अजय कुमार ने कहा कि विधायक सरयू राय गायब होने की कला में माहिर है.

जब लालबाबा फाउंड्री स्थित गोदाम को तोड़ने के लिए जिला प्रशासन की टीम दल बल के साथ पहुंची तब विधायक मौके से गायब रहे. लोग अपने विधायक सांसद को दीया लेकर ढ़ूढ रहे थे और विधायक सरयू राय एवं सांसद विद्युत वरण महतो नदारद थे. जबकि एक दिन पहले वे लोगों को आश्वासन देकर आए थे और मुझ पर आरोप लगा रहे थे.

मैं जिला प्रशासन की टीम से भिड़ गया क्योंकि मुझे ठेके नहीं लेने है और जिन्हें लेने हैं वो मौके से गायब रहा. इससे साबित होता है कि कौन कॉर्पोरेट घराने की दलाली करता है. जनता सब हिसाब चुकता करेगी.

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धार्मिक

रामनवमी पर चांडिल में भव्य शोभा यात्रा, उमड़ा रामभक्तों का जनसैलाब

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चांडिल: रामनवमी के पावन अवसर पर श्री राम समिति, चांडिल के अध्यक्ष आकाश महतो के नेतृत्व में एक भव्य शोभा यात्रा का आयोजन किया गया। इस शोभा यात्रा में सैकड़ों की संख्या में रामभक्तों ने उत्साह और श्रद्धा के साथ भाग लिया। रामभक्ति से सराबोर यह शोभा यात्रा पूरे चांडिल क्षेत्र में आकर्षण का केंद्र बनी रही।

यात्रा की शुरुआत मंगलाचरण के साथ हुई और पूरे मार्ग में श्रीराम के जयकारे गूंजते रहे। युवाओं का उत्साह देखते ही बन रहा था, जिन्होंने पारंपरिक परिधानों में ढोल-नगाड़ों की ताल पर नृत्य करते हुए शोभा यात्रा को जीवंत बना दिया। वहीं, महिलाओं की भागीदारी भी इस आयोजन में विशेष रूप से देखने को मिली। उन्होंने भक्ति गीतों और धार्मिक झांकियों के माध्यम से वातावरण को भक्तिमय बना दिया।

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डीजे की धुन पर रामभक्त झूमते नजर आए, जिससे शोभा यात्रा और भी रंगीन और आकर्षक बन गई। सभी ने भगवा अंग वस्त्र धारण किया हुआ था, जिससे पूरे वातावरण में आध्यात्मिक ऊर्जा और एकता की भावना झलक रही थी। रामनवमी के इस पर्व को जन्मोत्सव की तरह पूरे उल्लास और धूमधाम से मनाया गया।

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स्थानीय लोगों ने शोभा यात्रा में शामिल श्रद्धालुओं के लिए जगह-जगह शरबत और जलपान की व्यवस्था कर अतिथि सत्कार की मिसाल पेश की। इस आयोजन के सफल संचालन के लिए श्री राम समिति और स्थानीय प्रशासन ने विशेष सहयोग किया। अध्यक्ष आकाश महतो ने सभी श्रद्धालुओं और सहयोगियों का धन्यवाद करते हुए कहा कि “रामनवमी केवल एक पर्व नहीं, बल्कि हमारे संस्कारों और एकता का प्रतीक है।”

यह शोभा यात्रा न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक बनी, बल्कि सामाजिक सौहार्द और सामूहिक सहभागिता का संदेश भी लेकर आई।

वीडियो देखें :

 

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क्राइम

रेलवे ट्रैक पर मिला महिला का शव, 24 घंटे में पुलिस ने सुलझाई हत्या की गुत्थी

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सरायकेला : यशपुर रेलवे फाटक से महज 100 मीटर की दूरी पर पड़ा महिला का शव अब एक सनसनीखेज हत्या की गवाही दे रहा है। यह मामला सरायकेला जिले के गम्हरिया थाना क्षेत्र का है, जहाँ एक अज्ञात महिला की लाश रेलवे ट्रैक पर मिलने से पूरे इलाके में हड़कंप मच गया।

स्थानीय लोगों की सूचना पर मौके पर पहुँची पुलिस ने शव को कब्जे में लेकर जांच शुरू की। शुरुआत में मामला आत्महत्या का प्रतीत हो रहा था, लेकिन पुलिस की सतर्कता और एसडीपीओ के नेतृत्व में गठित एसआईटी (विशेष जांच टीम) ने महज 24 घंटे में इस रहस्य से पर्दा हटा दिया।

पुलिस ने मृतका की पहचान भवानी कैवर्त के रूप में की, जो कि नारायणपुर गांव, सरायकेला की रहने वाली थीं। लेकिन इससे भी चौंकाने वाला तथ्य तब सामने आया जब जांच में पता चला कि इस हत्या को अंजाम किसी और ने नहीं, बल्कि महिला के अपने पोते लक्ष्मण कैवर्त और उसके साथी चंदन कैवर्त ने ही दिया।

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एसडीपीओ के अनुसार, प्रारंभिक पूछताछ में यह स्पष्ट हुआ है कि हत्या आपसी पारिवारिक विवाद के चलते की गई। हत्या को रेलवे दुर्घटना की शक्ल देने के लिए महिला के शव को ट्रैक पर फेंक दिया गया था। लेकिन पुलिस की टीम ने तकनीकी साक्ष्य, कॉल रिकॉर्ड और मौके की बारीकी से जांच कर साजिश की परतें खोल दीं।

फिलहाल दोनों आरोपियों को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया है, और मामले की आगे की जांच जारी है। पुलिस यह भी जांच कर रही है कि इस घटना में और कौन-कौन लोग शामिल हो सकते हैं।

इस घटना ने एक बार फिर यह साबित कर दिया कि अपराध चाहे जितना भी शातिर तरीके से क्यों न किया गया हो, कानून की नजर से छुप नहीं सकता।

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ट्रेन लेट होना अब सिर्फ असुविधा नहीं, एक सामाजिक अन्याय बन चुका है।

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ट्रेन लेट होना अब सिर्फ असुविधा नहीं, एक सामाजिक अन्याय बन चुका है। सरकार और रेलवे को इस पर ध्यान देना होगा। नहीं तो वह दिन दूर नहीं जब लोग यह कहने लगेंगे : “रेल यात्रा का मतलब है—अनिश्चितता, असुरक्षा और असंवेदनशीलता।”

  • क्या समय पर पहुँचना अब सपना बन गया है? – ट्रेन लेट होने की त्रासदी

SOCIAL DIARY : 31 मार्च 2025 का दिन, नई दिल्ली से पूरी जाने वाली ट्रेन संख्या 18102 चांडिल स्टेशन पर सुबह 11:00 बजे पहुँची, और टाटानगर जंक्शन तक पहुँचते-पहुँचते तीन घंटे 40 मिनट की देरी हो चुकी थी।

अब यह केवल एक आंकड़ा नहीं है, बल्कि इससे जुड़ी हैं कई अनकही कहानियाँ — कोई परीक्षार्थी जो साल भर की मेहनत के बाद परीक्षा केंद्र पहुंचने की दौड़ में था, कोई बेटा जो अपनी बीमार माँ से आखिरी बार मिलना चाहता था, कोई महिला जो अपने बीमार बच्चे को अस्पताल ले जा रही थी।

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लेकिन क्या रेलवे को इन कहानियों से कोई फर्क पड़ता है?

  • ट्रेन लेट होना: आम जनजीवन पर एक गंभीर प्रभाव

भारतीय रेल देश की जीवनरेखा मानी जाती है। करोड़ों लोग प्रतिदिन रेल सेवाओं का उपयोग करते हैं—कोई काम पर जाता है, कोई इलाज के लिए सफर करता है, कोई परीक्षा देने निकलता है, तो कोई अपनों से मिलने। लेकिन जब यही ट्रेनें समय से नहीं चलतीं, तो आम जनता के जीवन पर इसका गंभीर प्रभाव पड़ता है। ट्रेन लेट होना भारत में वर्षों से एक सामान्य समस्या रही है, लेकिन इसके पीछे छिपे दर्द और संकटों की आवाज़ अब बुलंद होनी चाहिए।

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जब ट्रेन लेट होती है, तो सिर्फ समय नहीं जाता — उम्मीदें, मौके और कभी-कभी जान भी चली जाती है।

रेलवे देरी के पीछे “तकनीकी खराबी”, “भीड़”, या “मौसम” जैसे कारण गिनाता है। मगर उन लोगों का क्या जो इस देरी के कारण परीक्षा नहीं दे पाते, अस्पताल नहीं पहुँच पाते, या जिन्हें अपनों की आखिरी सांसें पकड़ने का मौका तक नहीं मिलता?

  • क्या कोई जवाबदेही है?
  • क्या कोई अधिकारी यह मानता है कि उसकी व्यवस्था के कारण किसी की ज़िंदगी तबाह हुई?

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आज की घटना एक उदाहरण है, समस्या नहीं

यह तो हर रोज़ की कहानी बन चुकी है। देशभर में हर दिन दर्जनों ट्रेनें घंटों लेट होती हैं। लेकिन हमारी समस्या सिर्फ ट्रेन लेट होना नहीं है, समस्या है — इस देरी को सामान्य मान लेना

हमने समय पर चलने की उम्मीद छोड़ दी है। यह खतरनाक है।

ट्रेन लेट होना केवल असुविधा नहीं, यह एक अधिकार हनन है

क्या एक नागरिक को यह अधिकार नहीं है कि वह समय पर पहुंचे? क्या सरकार की यह जिम्मेदारी नहीं बनती कि वह ऐसी व्यवस्था दे जो भरोसेमंद हो?
जैसा कि श्री अमरिख सिंह, जिला उपाध्यक्ष, आम आदमी पार्टी (पूर्वी सिंहभूम) ने कहा:

“अगर किसी की मृत्यु हो जाती है, किसी का एग्जाम छूट जाता है, तो इसका जिम्मेदार कौन है? यह अमानवीय कार्य बंद होना चाहिए।”

यह प्रश्न केवल एक व्यक्ति का नहीं है, यह हर उस नागरिक का है जो रेल व्यवस्था पर निर्भर है।

अब वक्त है बदलाव का

रेलवे को चाहिए कि वह—

  • हर स्टेशन पर रीयल टाइम सूचना प्रणाली को मजबूत करे
  • देरी की स्थिति में यात्रियों को मुआवजा दे
  • गंभीर मामलों में जवाबदेही तय करे
  • आपातकालीन यात्राओं के लिए प्राथमिकता को सिस्टम में शामिल करे

 

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घटना का संदर्भ:
31 मार्च 2025 को नई दिल्ली से पूरी जाने वाली ट्रेन संख्या 18102, जो टाटानगर होते हुए गुजरती है, चांडिल स्टेशन पर 11:00 बजे पहुँची। यह ट्रेन टाटा जंक्शन में तीन घंटे 40 मिनट की देरी से पहुँची। इस ट्रेन में कई परीक्षार्थी अपने एग्जाम देने जा रहे थे, कुछ लोग अपने बीमार माता-पिता से मिलने, तो कुछ मरीजों को अस्पताल ले जाने के लिए सफर कर रहे थे।

इस देरी के कारण कई संभावनाएं संकट में पड़ीं—अगर कोई मरीज समय पर अस्पताल नहीं पहुँचता और उसकी जान चली जाती है, या किसी छात्र की परीक्षा छूट जाती है, तो इसका जिम्मेदार कौन है? क्या रेलवे प्रशासन अपनी जवाबदेही स्वीकार करता है?

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ट्रेन लेट होने के कारण:

  1. तकनीकी खराबियाँ: लोकोमोटिव में तकनीकी खराबियाँ अक्सर ट्रेनों की लेटलतीफी का कारण बनती हैं।
  2. पुरानी इंफ्रास्ट्रक्चर: रेलवे ट्रैक और सिग्नलिंग प्रणाली का आधुनिकीकरण न हो पाना।
  3. मौसम की मार: कोहरा, बारिश, और बाढ़ जैसे प्राकृतिक कारण भी प्रमुख भूमिका निभाते हैं।
  4. ऑपरेशनल मिसमैनेजमेंट: ट्रेनों का समय पर प्लेटफॉर्म न मिल पाना या गलत टाइम टेबल मैनेजमेंट।
  5. राजनीतिक और वीआईपी मूवमेंट: कई बार विशेष ट्रेनों को प्राथमिकता देने से आम यात्री गाड़ियों की अनदेखी की जाती है।

आम जनजीवन पर प्रभाव:

  • छात्रों पर असर: परीक्षा से चूकना न केवल एक मौके का नुकसान है, बल्कि मानसिक और भविष्यगत तनाव भी है।
  • बीमार यात्रियों के लिए संकट: मेडिकल एमरजेंसी में देरी जानलेवा साबित हो सकती है।
  • कामकाजी लोगों का नुकसान: समय पर नौकरी पर न पहुँचने से वेतन कटौती या नौकरी पर खतरा हो सकता है।
  • मानसिक तनाव और असुविधा: घंटों प्रतीक्षा करना, खानपान की समस्याएँ, और थकावट यात्रियों के अनुभव को नकारात्मक बना देती है।
  • परिवारिक समस्याएं: शादी, अंतिम संस्कार या किसी जरूरी पारिवारिक कार्यक्रम में देर होने से सामाजिक पीड़ा उत्पन्न होती है।

जवाबदेही का सवाल:
जब ऐसी घटनाएं होती हैं, तो रेलवे प्रशासन अक्सर “अनुकूल परिस्थितियों” का हवाला देकर पल्ला झाड़ लेता है। लेकिन एक लोकतांत्रिक देश में नागरिकों के मौलिक अधिकारों की रक्षा करना सरकार की जिम्मेदारी है। समय पर सेवा देना, खासकर जीवन-मृत्यु या भविष्य से जुड़ी यात्राओं में, कोई सुविधा नहीं, बल्कि एक अधिकार है।

जैसा कि श्री अमरिख सिंह (जिला उपाध्यक्ष, आम आदमी पार्टी, पूर्वी सिंहभूम) ने भी कहा है, अगर ऐसी घटनाओं में किसी की मृत्यु होती है या किसी का भविष्य संकट में पड़ता है, तो इसकी पूरी जिम्मेदारी रेलवे प्रशासन की होनी चाहिए। सरकार को चाहिए कि वह इस अमानवीय व्यवस्था पर रोक लगाए और आम लोगों के अधिकारों का हनन बंद करे।

समाधान के सुझाव:

  1. रेलवे सिस्टम का आधुनिकीकरण और तकनीकी सुधार।
  2. टाइम टेबल में पारदर्शिता और वास्तविक समय पर अपडेट।
  3. यात्रियों को देरी की स्थिति में मुआवजा और वैकल्पिक सुविधा देना।
  4. ट्रेन संचालन में ज़िम्मेदार अधिकारियों की जवाबदेही तय करना।
  5. रेल यात्रियों की आपातकालीन आवश्यकताओं के लिए विशेष व्यवस्था करना।

निष्कर्ष:
ट्रेन लेट होना एक सामान्य समस्या नहीं रह गई है। यह आम जनता के जीवन, भविष्य और स्वास्थ्य से जुड़ा संवेदनशील मुद्दा है। सरकार और रेलवे प्रशासन को चाहिए कि वे इसे गंभीरता से लें, ताकि आम आदमी को राहत मिल सके और रेल यात्रा फिर से समयबद्ध, भरोसेमंद और मानवीय बन सके। ट्रेन लेट होना अब सिर्फ असुविधा नहीं, एक सामाजिक अन्याय बन चुका है। सरकार और रेलवे को इस पर ध्यान देना होगा। नहीं तो वह दिन दूर नहीं जब लोग यह कहने लगेंगे—
“रेल यात्रा का मतलब है—अनिश्चितता, असुरक्षा और असंवेदनशीलता।”

समय पर ट्रेन चलाना सिर्फ तकनीक का सवाल नहीं, यह नैतिक ज़िम्मेदारी है। और यह जिम्मेदारी अब टाली नहीं जा सकती।

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