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बर्मामाइंस लाल बाबा फाउंड्री में अतिक्रमण हटाओ अभियान रुकने से स्थानीय लोगों को मिली राहत, लेकिन चिंता बनी रही

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जमशेदपुर: शहर के बर्मामाइंस इलाके की लाल बाबा फाउंड्री में शुक्रवार को अतिक्रमण हटाओ अभियान टल गया, जिससे स्थानीय निवासियों और व्यवसायियों ने राहत की सांस ली। प्रशासन ने इस अभियान के तहत फाउंड्री से 70 एकड़ जमीन को अतिक्रमण मुक्त करने की योजना बनाई थी, लेकिन पुलिस बल की पर्याप्त व्यवस्था न होने और भारी विरोध के चलते अभियान को रोकना पड़ा। हालांकि, इस टलाव के बाद भी स्थानीय लोगों में असमंजस और चिंता का माहौल बना हुआ है, क्योंकि उन्हें डर है कि प्रशासन किसी भी वक्त उनका घर उजाड़ सकता है।

अभियान की शुरुआत और विरोध

बर्मामाइंस थाने में प्रतिनियुक्त दंडाधिकारी सुमित प्रकाश दोपहर करीब 1:45 बजे मौके पर पहुंचे, जबकि पुलिस बल और महिला पुलिसकर्मी सुबह 8 बजे के बाद ही पहुँच चुके थे। टाटा स्टील के सुरक्षा विभाग और लैंड विभाग के अधिकारी, कर्मचारी और कोर्ट की टीम भी 10 बजे के बाद मौके पर पहुंची थी। अभियान को अंजाम देने के लिए चार जेसीबी मशीनें भी बुलाई गई थीं।

अभियान शुरू होने से पहले ही स्थानीय लोगों ने भारी संख्या में एकत्र होकर विरोध शुरू कर दिया। बर्मामाइंस स्थित ट्यूब कंपनी गोलचक्कर के समीप प्रदर्शनकारियों ने टायर जलाकर और पेड़ों की टहनियां रखकर रास्ता अवरुद्ध कर दिया। इससे पुलिस बल और अन्य प्रशासनिक दल को मौके पर ही रोक दिया गया। भीड़ ने नारेबाजी करते हुए मांग की कि उन्हें कोर्ट में अपना पक्ष रखने का उचित अवसर नहीं दिया गया है और हाईकोर्ट में अपनी बात रखने का मौका दिया जाना चाहिए। प्रदर्शनकारियों का आरोप था कि उन्हें न्यायालय में पर्याप्त सुनवाई का अवसर नहीं मिला और वे उच्च न्यायालय से राहत पाने के लिए समय चाहते हैं।

राजनीतिक हस्तक्षेप और टकराव

अतिक्रमण हटाओ अभियान के दौरान राजनीतिक दलों के नेताओं का भी दखल देखने को मिला। भाजपा और कांग्रेस के स्थानीय नेता मौके पर पहुंचे और प्रदर्शनकारियों के साथ अपना समर्थन दिखाने की कोशिश की। हालांकि, दोनों दलों के नेताओं के बीच मंच पर ही आपस में विवाद हो गया, जिससे स्थिति और तनावपूर्ण हो गई। दोनों पक्षों में झड़प को देखते हुए अन्य लोगों ने बीच-बचाव कर मामले को शांत कराया।

प्रशासन का निर्णय और स्थानीय लोगों की प्रतिक्रिया

भारी विरोध के चलते प्रशासन ने स्थिति को भांपते हुए वापस लौटने का निर्णय लिया। कोर्ट के नाजिर धीरज कुमार और पुलिस बल ने भी तनावपूर्ण माहौल को देखते हुए वापस लौटने का फैसला किया। अभियान के टलने से स्थानीय लोगों को अस्थायी रूप से राहत जरूर मिली, लेकिन प्रशासनिक कार्रवाई की अनिश्चितता अब भी बनी हुई है।

स्थानीय लोगों का कहना है कि उनका जीवन अब संकट में है और वे हर वक्त इस डर में जी रहे हैं कि कब प्रशासन उनके घरों को तोड़ने के लिए आ जाएगा। उनके लिए सबसे बड़ी चिंता यह है कि उन्हें न्यायालय से कोई राहत नहीं मिली है और जबरन अतिक्रमण हटाने की कार्रवाई फिर से शुरू हो सकती है। इसके साथ ही स्थानीय व्यवसायियों ने भी चिंता जताई है कि अगर प्रशासन ने कार्रवाई की तो उनका व्यवसाय प्रभावित हो सकता है, जिससे उन्हें भारी नुकसान उठाना पड़ेगा।

अतिक्रमण का इतिहास और वर्तमान स्थिति

लाल बाबा फाउंड्री क्षेत्र में वर्षों से अतिक्रमण की समस्या रही है। टाटा स्टील की जमीन पर बसे ये अवैध कब्जे कई वर्षों से प्रशासन और स्थानीय निवासियों के बीच तनाव का कारण बने हुए हैं। कई बार प्रशासन द्वारा इस इलाके में अतिक्रमण हटाने की कार्रवाई की कोशिश की गई है, लेकिन हर बार विरोध के चलते यह प्रयास सफल नहीं हो पाया है। प्रशासन का दावा है कि लाल बाबा फाउंड्री की 70 एकड़ जमीन अवैध कब्जे में है, जिसे खाली करवाना जरूरी है।

हालांकि, स्थानीय निवासियों का कहना है कि वे वर्षों से इस जमीन पर बसे हुए हैं और उनके पास इस जमीन से जुड़ी अपनी दावेदारी है। वे चाहते हैं कि प्रशासन उन्हें न्यायालय में अपनी बात रखने का पूरा मौका दे और बिना उनकी सुनवाई के कोई निर्णय न लिया जाए।

आगे की राह

बर्मामाइंस इलाके में प्रशासन और स्थानीय निवासियों के बीच तनाव अभी भी बरकरार है। प्रशासनिक अधिकारियों का कहना है कि अतिक्रमण हटाने का अभियान अभी सिर्फ स्थगित किया गया है, लेकिन इसे पूरी तरह से रद्द नहीं किया गया है। स्थानीय निवासियों को अब भी डर है कि कभी भी प्रशासन फिर से कार्रवाई शुरू कर सकता है।

वहीं, राजनीतिक दलों की भूमिका भी इस पूरे मामले में अहम हो गई है। भाजपा और कांग्रेस के नेताओं ने इस मुद्दे पर अपनी-अपनी राय व्यक्त की है और वे स्थानीय लोगों का समर्थन जुटाने की कोशिश में लगे हुए हैं। इससे यह साफ है कि आने वाले समय में इस मुद्दे पर राजनीतिक माहौल भी गर्म हो सकता है।

इस पूरे घटनाक्रम ने बर्मामाइंस इलाके में अतिक्रमण और पुनर्वास के सवालों को फिर से सामने ला दिया है। स्थानीय लोग अपने भविष्य को लेकर अनिश्चितता में हैं और प्रशासन पर निर्भर हैं कि उन्हें न्याय और राहत कब मिलेगी।

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