नई दिल्ली | सचिवालय
मुख्य बिंदु :
पत्रकार प्रेस की स्वतंत्रता के अंतिम प्रहरी और लोकतंत्र की रीढ़ हैं।
श्री धनखड़ ने सकारात्मक समाचारों को महत्व देने की जरूरत पर बल दिया
पत्रकारिता की वर्तमान दशा और दिशा गहन चिंता और चिंतन का विषय है।
श्री धनखड़ ने चिंता व्यक्त की लोकतंत्र का वाचडॉग, अब व्यावसायिक हितों के आधार पर काम करने लगा है।
“खोजी पत्रकारिता, लगभग विलुप्त हो चुकी है।”
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उपराष्ट्रपति ने माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय के चौथे दीक्षांत समारोह को संबोधित किया।
भारत के उपराष्ट्रपति श्री जगदीप धनखड़ ने कहा कि पत्रकार प्रेस की स्वतंत्रता के अंतिम प्रहरी हैं और लोकतंत्र में उनके कंधों पर बहुत बड़ा दायित्व है। स्वतंत्र पत्रकारिता को लोकतंत्र की रीढ़ बताते हुए उपराष्ट्रपति ने चिंता व्यक्त की कि हमारे प्रहरी कुंभकरण मुद्रा और निद्रा में है जोकि देश के लिए ठीक नहीं है।
आज भोपाल में माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय के चौथे दीक्षांत समारोह को संबोधित करते हुए उपराष्ट्रपति ने कहा कि सभी जानते हैं पत्रकारिता व्यवसाय नहीं है, समाज सेवा है। लेकिन अफसोस व्यक्त करते हुए उन्होंने आगे कहा कि बहुत से लोग यह भूल गए हैं और “पत्रकारिता एक अच्छा व्यवसाय बन गयी है, शक्ति का केंद्र बन गयी है, सही मानदंडों से हट गयी है, भटक गयी है। इस पर सबको सोचने की आवश्यकता है।”
श्री धनखड़ ने कहा कि पत्रकार का काम किसी राजनीतिक दल का हितकारी होना नहीं है। न ही पत्रकार का यह काम है कि वह किसी सेट एजेंडा के तहत चले या कोई विशेष नैरेटिव चलाये। सकारात्मक समाचारों को महत्व देने की ज़रूरत है पर बल देते हुए उन्होंने कहा कि प्रेस की स्वतंत्रता तभी हो सकती है, जब प्रेस जिम्मेवार हो।
श्री धनखड़ ने कहा कि पत्रकारिता की वर्तमान दशा और दिशा गहन चिंता और चिंतन का विषय है। हालात विस्फोटक हैं और, अविलंब निदान होना चाहिए। आप प्रजातंत्र की बहुत बड़ी ताकत हैं, और अपनी ताकत से सभी को सजग कर सकते हैं। लेकिन उन्होंने चिंता व्यक्त की कि लोकतंत्र का यह वाचडॉग, अब व्यवसायिक हितों के आधार पर काम करने लगा है। “जब आप जनता के watchdog हो तो किसी व्यक्ति का हित आप नहीं कर सकते, आप सत्ता का केंद्र नहीं बन सकते। सेवा भाव से काम करना होगा। आवश्यकता है – सच्चाई, सटीकता और निष्पक्षता, इनके बिना कुछ होगा नहीं,” उन्होंने कहा।
उपराष्ट्रपति ने कहा कि जिनका काम सबको आईना दिखाने का है, हम ऐसे हालात में पहुंच गए हैं कि हमें उनको आईना दिखाना पड़ रहा है। यह चिंता का विषय है।
विकास को राजनीति से जोड़कर न देखने का आग्रह करते हुए उन्होंने कहा कि विकास की चर्चा करने का यह आशय नहीं है कि आप किसी राजनीतिक दल की प्रशंसा कर रहे हैं, बल्कि विकास एक जमीनी हकीकत है। विभिन्न आंकड़े देते हुए उन्होंने कहा कि मध्य प्रदेश ने विकास के क्षेत्र में कई मुकाम हासिल किए गए हैं जिन्हें राजनीतिक चश्मे से नहीं देखा जाना चाहिए जैसे कि सिंचाई में 20 साल में 6 गुना वृद्धि हुई और हर डिविजनल हैडक्वाटर, चार लेन से जुड़ा हुआ है।
उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि पत्रकार अगर विकास को अपने रडार पर रखेगा तो समाज में जो सकारात्मक बदलाव आ रहा है, उसमें निश्चित रूप से गति आएगी और विकास के मामले में, राजनीतिक चश्मे को निकाल कर छोड़ देना चाहिए।
उन्होंने वर्ल्ड बैंक के अध्यक्ष के बयान का जिक्र करते हुए कहा कि पिछले 6 साल में वित्तीय समावेशन में जो भारत ने किया है, वो 47 साल में भी संभव नहीं था। श्री धनखड़ ने कहा कि दस वर्ष पूर्व हम विश्व की पांच कमजोर अर्थव्यवस्थाओं (fragile five) में गिने जाते लेकिन आज विश्व की पांचवीं बड़ी अर्थव्यवस्था हैं।
उपराष्ट्रपति ने कहा कि किसी मुद्दे पर सहमति हो या ना हो विचार विमर्श आवश्यक है। आपका अपना मत और विवेक है, आप सहमत – असहमत हो सकते हैं लेकिन विमर्श से मना नहीं कर सकते। उन्होंने कहा कि राज्यसभा के सभापति की हैसियत से “मैं लगातार इस ओर प्रयास कर रहा हूं, कि वहां क्या होना चाहिए – Dialogue, debate, discussion, deliberation, परंतु हो क्या रहा है? Disturbance, Disruption. संविधान सभा में तो 3 साल तक ऐसा कभी नहीं हुआ था। उन्होंने तो बहुत ही गंभीर मुद्दों का सामना किया था, उनका समाधान ढूंढा विचार विमर्श से।”
उपराष्ट्रपति ने निराशा व्यक्त की कि मीडिया इस मुद्दे पर अपेक्षित ध्यान नहीं दे रही है। उन्होंने अपील की कि यह जन आंदोलन बनना चाहिए कि आपके जन प्रतिनिधि कैसे ऐसा आचरण कर सकते हैं और उस उत्तरदायित्व का निर्वाहन कर रहे हैं या नहीं जो संविधान ने उनको दिया है।
उन्होंने कहा कि खबर वह है जिसे कोई छुपाना चाहता है, जिससे लोग डरते हैं कि सामने ना आ जाए। 80 के दशक में खोजी पत्रकारिता थी। वह बाद में पता नहीं कहां खो गई, कहां भटक गई खोजी पत्रकारिता, लगभग विलुप्त हो चुकी है। श्री धनखड़ ने टीवी डिबेट में असंसदीय भाषा के प्रयोग पर भी चिंता जाहिर की।
कुछ लोगों द्वारा भारत मंडपम को लेकर की गयी भ्रामक रिपोर्टिंग पर उपराष्ट्रपति ने कहा कि कुछ लोग देश की प्रशंसा को डाइजेस्ट नहीं कर सकते, उनका हाजमा खराब हो जाता है। भारत में जब भी कुछ अच्छा होता है वह पचा नहीं पाते और मौका ढूंढते हैं कि हमारे भारत को, हमारी संस्थाओं को कैसे कलंकित करें और दुनिया में फेरा लगते हैं।
भ्रष्टाचार को समाप्त करने में पत्रकारों की बड़ी भूमिका बताते हुए उन्होंने कहा कि पहले पत्रकारिता एक मिशन थी, एक उद्देश्य था समाज का हित था, पर अब टॉप आ गयी है सनसनीखेज रिपोर्टिंग।
श्री धनखड़ ने विश्वास व्यक्त किया कि रचनात्मक, सकारात्मक योगदान ही महान भारत को 2047 में विश्व गुरु बनाएगा, 2047 में निश्चित रूप से भारत दुनिया के शीर्ष पर होगा। उन्होंने छात्र-छात्राओं से कहा कि हमें गर्व होना चाहिए कि हम भारतीय हैं, हमें देश को सर्वोपरि रखना चाहिए।
उपराष्ट्रपति ने खुशी व्यक्त की कि माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय के दीक्षांत समारोह में पारंपरिक परिधान और अंगवस्त्र में पूरे भारत की झलक देखने को मिलती है।
इस अवसर पर डॉ (श्रीमती) सुदेश धनखड़, मध्य प्रदेश के मंत्री श्री राजेन्द्र शुक्ला व श्री मोहन यादव, सांसद, साध्वी प्रज्ञा ठाकुर, प्रो. के.जी. सुरेश, उप-कुलपति, शिक्षक, छात्र-छात्राएं, अभिभावक व अन्य गणमान्य जन उपस्थित रहे।
पत्रकार, प्रेस की स्वतंत्रता के अंतिम प्रहरी हैं, लोकतंत्र में उनका बहुत बड़ा दायित्व है।
पर चिंता का विषय है कि प्रहरी कुंभकरण मुद्रा और निद्रा में हैं। pic.twitter.com/DkauENebM9
— Vice President of India (@VPIndia) September 15, 2023
राज्यसभा के सभापति की हैसियत से मैं लगातार इस ओर प्रयास कर रहा हूं, कि वहां क्या होना चाहिए- Dialogue, debate, discussion.
परंतु हो क्या रहा है?
Disturbance, Distruption.
मीडिया को इस पर सवाल करना चाहिए कि आपके जन प्रतिनिधि कैसे ऐसा आचरण कर सकते हैं? pic.twitter.com/GL0zkq2yIZ
— Vice President of India (@VPIndia) September 15, 2023