झारखंड
टमाटर से आमदनी नहीं होने पर किसान रसिक मांडी ने शुरू किया कसावा की खेती

जमशेदपुर । पटमदा के किसान सब्जी उत्पादन में अव्वल माने जाते हैं लेकिन कभी कभी अच्छी फसल होने के बावजूद भी उन्हें पूंजी भी नहीं लौट पाती है। इस बार टमाटर की खेती में किसान को भारी नुकसान उठाना पड़ा है। स्थिति ऐसी है कि मार्केट में 5 रुपए किलो भी लेने वाला ग्राहक नहीं है। मजबूरन किसान उसे खेत में ही छोड़ दिया है। ऐसी परस्थिति में किसान उसमें एक जमीन दुई फसल की तर्ज पर कसावा की भी खेती शुरू किया है ,ताकि नुकसान की भरपाई हो सके, क्योंकि कसावा एक महत्वपूर्ण खाद्य फसल है और इसकी डंठल (तने) को काट कर ही खेत में रोपा जाता है। कसावा की खेती दुनिया के कई देशों में की जाती है, खासकर अफ्रीका, एशिया और लैटिन अमेरिका में।
इसे आम तौर पर सूखी, पथरीली या अनुपजाऊ मिट्टी पर भी उगाया जा सकता है, जिससे यह किसानों के लिए लाभदायक फसल साबित होती है। कसावा को शिमुल आलू के नाम से भी जाना जाता है।
आपको बतादें कि पटमदा के आदिवासी गांव डोगाडीह में रसिक मांडी नामक किसान ने अपने एक बीघा टमाटर लगे खेत वाले जमीन में दोहरी फसल कसावा की खेती शुरू किया है। इसके पहले उन्होंने एक बीघा जमीन में शुगर फ्री शकरकंद की खेती भी किया है। रसिक मांडी ने कसावा की फसल बुधवार को आटी पुआल मशरूम प्रा लि (बंदोवान) के एमडी सह किसान विशेषज्ञ डॉ अमरेश महतो एवं दीन बंधु ट्रस्ट के महासचिव नागेन्द्र कुमार की उपस्थिति में लगाया है। वहीं मौके पर उपस्थित किसान विशेषज्ञ डॉ अमरेश महतो ने बताया कि कसावा के पौधे बहुत कम पानी में भी अच्छी तरह विकसित हो जाता है।
यह अत्यधिक पौष्टिक खाद्य पदार्थ है जो ऊर्जा के स्रोत के रूप में उपयोग किया जाता है। इसमें कार्बोहाइड्रेट, विटामिन, खनिज, फाइबर आदि की मात्रा अधिक होती है जो पाचन में सहायता प्रदान करता है और आंत के स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद है। कसावा की जड़ों और पत्तियों में कुछ औषधीय गुण होते हैं। इसके सेवन से मधुमेह, गैस्ट्रिक और एसिडिटी जैसी पेट की समस्याओं को कम करने में मदद मिलती है। इसमें एंटी-इंफ्लेमेटरी और एंटीऑक्सीडेंट गुण होते हैं। यह बालों के अच्छे स्वास्थ्य को बनाए रखने में भी मदद करता है।
डॉक्टर महतो ने बताया कि किसान कसावा या शिमुल आलू उगाकर अच्छी आय कमा सकते हैं। यह किसान के लिए लाभदायक फसल हो सकती है, क्योंकि यह अपेक्षाकृत कम लागत में उगाई जा सकती है और बाजार में इसकी मांग भी है। शिमुल आलू का उपयोग विभिन्न खाद्य प्रसंस्करण में किया जाता है, जैसे साबूदाना, चिप्स, पापड़,आटा, स्टार्च आदि बनाना।
कसावा से बने विभिन्न उत्पादो को स्थानीय और अंतर्राष्ट्रीय बाजारों में बेचा जा सकता है, जिससे किसानों को अपनी आय बढ़ाने में मदद मिलेगी। कसावा की पत्तियों का उपयोग मवेशियों के चारे के रूप में भी किया जाता है, जो पशुपालकों के लिए एक अतिरिक्त लाभ है। उन्होंने कहा कि कसावा प्रसंस्करण में प्रयुक्त सामग्रियों की मांग दिन प्रतिदिन बढ़ रही है और इससे अच्छा मुनाफा किसानों को प्राप्त हो सकता है , क्योंकि इसका उपयोग भोजन, चिकित्सा और उद्योग में भी किया जाता है। शिमुल आलू एक साल में दो फसल देती है और कसावा के एक पेड़ में आठ से दस किलो तक उत्पादन होता है। जिससे किसानो को कमाई के अच्छे अवसर प्राप्त हो सकता है।