जेठउठानी एकादशी व्रत :
जेठउठानी एकादशी व्रत या देवउठानी एकादशी व्रत (Devuthani Ekadashi) भगवान विष्णु को समर्पित है। यह छोटी दिवाली के नाम से भी जाना जाता है। इस व्रत का हिंदू धर्म में विशेष महत्व है।
जेठउठानी एकादशी व्रत या देवउठानी एकादशी व्रत (Devuthani Ekadashi) कब मनाया जाता है?
जेठउठानी एकादशी व्रत या देवउठानी एकादशी व्रत (Devuthani Ekadashi) कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को मनाया जाता है। ऐसा माना जाता है कि इस दिन भगवान विष्णु गहरी निंद्रा से चार माह बाद आज ही के दिन जागते हैं और जागने के बाद आज से सभी मांगलिक कार्यों को आरम्भ करते हैं।
मान्यता है कि इस एकादशी को व्रत (Ekasdashi Vrat) रखने से भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी प्रसन्न होते हैं और भक्तों की सर्व मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।
देव उठानी एकादशी का शुभ मुहूर्त – 2021 (Dev Uthani Ekadashi Shubh Muhurat – 2021)
वर्ष 2021 में जेठउठानी एकादशी व्रत या देवउठानी एकादशी व्रत का आरम्भ – 14 नवम्बर, 2021 को प्रातः 05 बजकर 48 मिनट एवं समाप्ति 15 नवम्बर, 2021 को प्रातः 06 बजकर 39 मिनट पर हो रहा है।
देवउठानी एकादशी व्रत में तुलसी का क्या महत्व है?
तुलसी का पेड़ लगभग हर घर में पाया जाता है। और यह औषधीय गुणों से भरा होता है। ऐसी धार्मिक मान्यता है कि तुलसी पत्र के बिना भगवान विष्णु प्रसाद ग्रहण नहीं करते और वे तुलसी पत्र पाने से ही प्रसन्न हो जाते हैं।
देवउठानी एकादशी को तुलसी विवाह के रूप में भी मनाया जाता है।
इसके पीछे एक पौराणिक धार्मिक कथा है।
इस कथा के द्वारा हम जानेंगे-
1. तुलसी विवाह
2. तुलसी का पेड़ कैसे उत्पन्न हुआ?
अपने पूर्व जन्म में तुलसी ने राक्षस कुल में एक लड़की के रूप में जन्म लिया। जिसका नाम वृंदा था। बचपन से ही वृंदा भगवान विष्णु की अनन्य भक्त थी। वह जब बड़ी हुई तो उसका विवाह राक्षस कुल में दानव राज जलंधर से किया गया। दानव राज जलंधर समुद्र से उत्पन्न हुआ था। वृंदा एक पतिव्रता स्त्री थी और पति की सेवा किया करती थी।
किसी बात को लेकर जब देवताओ और दानवों में युद्ध हुआ तब जलंधर युद्ध पर जाने लगे तो वृंदा ने कहा – स्वामी जब तक आप युद्ध जीत कर नहीं आ जाते, मैं व्रत और अनुष्ठान करुगी। जलंधर युद्ध में चले गये और वृंदा व्रत का संकल्प लेकर पूजा में बैठ गयी। उनके इस व्रत के प्रभाव से देवता जलंधर से हारने लगे।
यह देख सारे देवता भगवान विष्णु जी के पास गये। भगवान विष्णु से प्रार्थना करते हुए सारा हाल बताया। तब भगवान कहने लगे – वृंदा मेरी परम भक्त है और मैं उसके साथ छल नहीं कर सकता। यह सुन देवताओं को बड़ा आश्चर्य हुआ।
फिर कुछ सोचने के बाद देवता बोले – भगवान इस दुविधा का कोई उपाय तो बताइये। हम बड़ी आशा लेकर आपके पास आये हैं, अब आप ही हमारी मदद कर सकते है। यह सुन भगवान विष्णु ने देवताओं को सहायता देने का निर्णय लिया और जलंधर का रूप धर कर वृंदा के महल में पहुँच गये।
जैसे ही वृंदा ने अपने पति को आता देखा, वे तुरंत पूजा मे से उठ गई और उनकी चरण वंदना की। ऐसा करते ही उनका संकल्प टूट गया और युद्ध में जलंधर का सिर काट दिया गया। जलन्धर का कटा सिर वृंदा के पास आकर गिरा। यह देख वृंदा डर गई। और आश्चर्य भरी नजरों से कभी कटे सिर को और कभी सामने खड़े जलन्धर को देखती है।
मन ही मन सोचती है कि – यह कैसी लीला है? मेरे पति का सिर मेरे सामने कटा पड़ा है और मेरे सामने भी मेरा पति खड़ा है। फिर वृंदा ने सामने खड़े अपने पति रूपी भगवान विष्णु से पूछा- आप कौन हो जिसका स्पर्श मैंने किया है?
यह सुन भगवान विष्णु बिना कुछ कहे अपने वास्तविक रूप में आ गये और यह देख वृंदा सारी बात समझ गई। भगवान विष्णु को श्राप देते हुए उसने कहा – आप पत्थर बन जाओ। इतना कहना था कि भगवान पत्थर के बन गये।
इसकी जानकारी सभी देवता को हुई। सृष्टि का संचालन रुक गया, जिस वजह से देवताओं में हाहाकार मच गया। वे सभी देवी लक्ष्मी जी के पास जाकर पश्चाताप कर रोने लगे और भगवान विष्णु को ठीक करवाने की प्रार्थना करने लगे। लेकिन यह तो भगवान विष्णु की एक लीला थी जिसे देवताओं को समझ पाना मुश्किल था।
देवी लक्ष्मी वृंदा के पास गई और सृष्टि के कल्याण और संचालन हेतु भगवान को श्राप से मुक्त करने की प्रार्थना की। इस बात को समझ वृंदा ने भगवान को पुनः पहले जैसा कर दिया और उस स्थान पर अपने पति का सिर लेकर स्वयं सती हो गयी।
उस स्थान पर उनकी राख बची और वहाँ से एक पौधा उत्पन्न हुआ जिसे देख भगवान विष्णु ने कहा – आज से इनका नाम तुलसी होगा। और मेरा एक रूप पत्थर के समान इनके साथ रहेगा जिसे शालिग्राम के नाम से तुलसी जी के साथ ही पूजा जायेगा और मैं बिना तुलसी पत्र के प्रसाद ग्रहण नहीं करूंगा।
तब से तुलसी जी कि पूजा होने लगी। और तुलसी जी का विवाह शालिग्राम जी के साथ कार्तिक मास की एकादशी को किया जाता है। इसे ही देव-उठावनी एकादशी और इस दिन तुलसी विवाह के रूप में मनाया जाता है।
देव-उठावनी एकादशी के दिन किन बातों का ध्यान रखना चाहिए?
धार्मिक ग्रंथों के अनुसार देव-उठावनी एकादशी के दिन चावल खाना वर्जित माना गया है। ऐसी मान्यता है कि एकादशी के दिन चावल खाने से पुनर्जन्म के समय में रेंगने वाले जीव की योनि मिलती है। आपको बता दें कि वर्ष में 24 एकादशी होती हैं। इसलिए इन सभी 24 एकादशी में भी चावल नहीं खाना चाहिए।
पति-पत्नी को ब्रह्नाचार्य व्रत का पालन करना चाहिए। तथा भगवान विष्णु की पूजा-अर्चना की जानी चाहिए।
व्रत रखते हुए स्वयं को शांत रखना चाहिए।क्रोध और लड़ाई-झगड़े से भी दूर रहना चाहिए। वहीं सात्विक भोजन ग्रहण करना चाहिए।
इस दिन सुबह जल्दी उठ कर नदी में स्नान करना चाहिए सम्भव हो तो गंगा नदी में स्नान कर धार्मिक चिंतन और विष्णु जी की उपासना करनी चाहिए। शाम के समय में हरी भजन और कीर्तन गाना शुभ माना जाता है। इस दिन दान देना श्रेष्ठ माना गया है।
यदि किसी की विवाह में बाधा आ रही है तो उन्हें एकादशी के दिन हल्दी, केसर, केला आदि फलों का दान देना चाहिए जो विष्णु को प्रिय हैं। माना जाता है कि एकादशी व्रत रखने से पूर्वजों को मोक्ष की प्राप्ति होती है।
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