जमशेदपुर | झारखण्ड
सेवा में
माननीय मुख्य (नगर विकास एवं आवास) मंत्री
झारखण्ड सरकार, राँची।
विषय: जमशेदपुर को औद्योगिक नगरी घोषित करने के संबंध में।
संदर्भ: 1) झारखण्ड सरकार के मंत्रिपरिषद का संकल्प संख्या ज्ञापांक 08/विविध/191/ 2014/न.वि.आ.- 5590, दिनांक 07.12.2023
2) नगर विकास एवं आवास विभाग की अधिसूचना संख्या-08/विविध/191/ 2014/न.वि.आ.- 5842, दिनांक 28.12.2023
महोदय,
उपर्युक्त विषय एवं संदर्भ में निवेदन है कि जिस प्रकार कानून को ताक पर रखकर जमशेदपुर को औद्योगिक नगरी घोषित किया गया है, वह भारत का संविधान की धारा 243(Q) के प्रासंगिक प्रावधान का अल्ट्रा वायरस (अधिकारातीत) है तथा झारखण्ड नगरपालिका अधिनियम-2011 की धारा 481 का भी अल्ट्रा वायरस (अधिकारातीत) है। इस तरह से उपर्युक्त संदर्भाधीन मंत्रिपरिषद का संकल्प और नगर विकास विभाग की अधिसूचना दोनों ही असंवैधानिक, गैरकानूनी और अधिकारातीत हैं। मंत्रिपरिषद के इस संकल्प और नगर विकास विभाग की अधिसूचना को अविलंब वापस लिया जाना न्यायोचित होगा।
इस विषय में निम्नांकित बिन्दुओं की ओर आपका ध्यान आकृष्ट करना चाहता हूँः-
1) आप अवगत है कि भारत का संविधान का अनुच्छेद 243(Q)(1)(C) में नगरपालिका के गठन और विशेष परिस्थितियों में औद्योगिक नगरी के गठन का प्रावधान है। सुलभ संदर्भ हेतु यह अनुच्छेद निम्नवत हैः-
‘‘किसी वृहतर नगरीय क्षेत्र के लिए नगर निगम का, गठन किया जाएगा: परंतु इस खंड के अधीन कोई नगरपालिका ऐसे नगरीय क्षेत्र या उसके किसी भाग में गठित नहीं की जा सकेगी जिसे राज्यपाल, क्षेत्र के आकार और उस क्षेत्र में किसी औद्यौगिक स्थापन द्वारा दी जा रही या दिए जाने के लिए प्रस्तावित नगरपालिक सेवाओं और ऐसी अन्य बातों को, जो वह ठीक समझे, ध्यान में रखते हुए, लोक अधिसूचना द्वारा, औद्योगिक नगरी के रूप में विनिर्दिष्ट करंे।’’
आश्चर्य है कि भारत का संविधान के अनुच्छेद 243(Q) में जो अधिकार माननीय राज्यपाल में निहित है, उसे नगरपालिका अधिनियम-2011 को झारखण्ड विधानसभा से अधिनियमित करते समय सरकार में निहित कर दिया गया है। इस संबंध में झारखण्ड नगरपालिका अधिनियम-2011 की धारा 481 उल्लेखनीय है, जो निम्नवत है:-
‘‘481. नगरपालिका क्षेत्र से औद्योगिक क्षेत्र को अलग रखना:
(1) राज्य सरकार, क्षेत्र के आकार और उस क्षेत्र में किसी औद्योगिक स्थापन द्वारा दी जा रही या दिये जाने के लिये प्रस्तावित, नगरपालिका सेवाओं और ऐसी अन्य बातों को, जो वह ठीक समझे, ध्यान में रखते हुए, अधिसूचना द्वारा, औद्योगिक नगरी के रूप में विनिर्दिष्ट कर सकेगी।
(2) औद्योगिक नगरी पर, इस अधिनियम के उपबंध राज्य सरकार द्वारा विनिर्दिष्ट सीमा तक, लागू होंगे।
(3) राज्य सरकार, उस जिले, जिसके अन्तर्गत नगरपालिका अवस्थित हो, के उपायुक्त की अध्यक्षता में एक समिति गठित करेगी, जो औद्योगिक नगरी के निर्धारित कार्यकलापों पर यथाविहित निगरानी रखेगी।’’
इससे स्पष्ट है कि झारखण्ड नगरपालिका अधिनियम की धारा 481 भारत का संविधान के अनुच्छेद 243(Q) के प्रावधान के विपरीत है। संविधान के प्रावधान 243(Q) में औद्योगिक नगरी के गठन का अधिकार राज्यपाल में निहित है, परन्तु झारखण्ड नगरपालिका अधिनियम की धारा 481 में इसे सरकार में निहित कर दिया गया है जो कि संविधान के प्रावधान के प्रतिकुल है और अल्ट्रा वायरस (अधिकारातीत) है। इस संबंध में झारखण्ड नगरपालिका अधिनियम-2011 को झारखण्ड विधानसभा में संशोधन विधयेक लाकर संशोधित किया जाना चाहिए।
2) उपर्युक्त संदर्भाधीन संकल्प और अधिसूचना में जमशेदपुर औद्योगिक नगरी का संचालन के लिए एक समिति बना दी गयी है, जिसका अध्यक्ष जिला के प्रभारी मंत्री/स्थानीय मंत्री को बनाया गया हैं। संकल्प और अधिसूचना का यह अंश भी झारखण्ड नगरपालिका अधिनियम-2011 के धारा 481(3) के प्रावधान के प्रतिकूल है। सुलभ संदर्भ हेतु धारा-481(3) को हू-ब-हू निम्नवत उद्धृत कर रहा हूँ:-
‘‘राज्य सरकार, उस जिले, जिसके अन्तर्गत नगरपालिका अवस्थित हो, के उपायुक्त की अध्यक्षता में एक समिति गठित करेगी, जो औद्योगिक नगरी के निर्धारित कार्यकलापों पर यथाविहित निगरानी रखेगी।’’
इससे स्पष्ट है कि उपर्युक्त संदर्भाधीन झारखण्ड मंत्रिपरिषद का संकल्प और नगर विकास विभाग की अधिसूचना झारखण्ड विधानसभा द्वारा पारित झारखंड नगरपािलका अधिनियम-2011 के प्रासंगिक प्रावधान के प्रतिकुल है। मंत्रिपरिषद को संकल्प द्वारा अथवा सरकार के किसी विभाग को अधिसूचना द्वारा विधानसभा से पारित अधिनियम के विपरीत कोई आदेश निकालने का अधिकार नहीं है। इसी प्रकार झारखण्ड नगरपालिका अधिनियम-2011 की धारा 481 संविधान के प्रावधान का स्पष्ट उल्लंघन है और यह अल्ट्रा वायरस (अधिकारातीत) है। उसी तरह झारखण्ड सरकार के मंत्रिपरिषद और नगर विकास विभाग द्वारा पारित संकल्प और अधिसूचना झारखण्ड नगरपालिका अधिनियम-2011 का अल्ट्रा वायरस (अधिकारातीत) है। राज्य सरकार को अधिनियम बनाते समय संविधान के किसी अनुच्छेद के विरूद्ध कोई प्रावधान करने और झारखण्ड सरकार के किसी विभाग को विधानसभा द्वारा पारित अधिनियम में किसी धारा के विपरीत कोई भी संकल्प/अधिसूचना जारी करने का अधिकार नहीं है। यदि सरकार ऐसा करती है तो यह असंवैधानिक एवं गैरकानूनी है।
झारखण्ड सरकार के मंत्रिपरिषद द्वारा निर्गत उपर्युक्त संदर्भाधीन संकल्प में अंकित है कि ‘‘प्रस्ताव एवं संलेख प्रारूप पर मुख्य (विभागीय) मंत्री का अनुमोदन, राजस्व-निबंधन एवं भूमि सुधार विभाग, वित्त विभाग की सहमति तथा विधि विभाग की विधिक्षा प्राप्त है।’’
आश्चर्य है कि इसमें से संबंधित विभागों के किसी अधिकारी ने यह ध्यान नहीं दिया कि मंत्रिपरिषद का प्रासंगिक संकल्प भारत का संविधान और झारखण्ड नगरपालिका अधिनियम-2011 के प्रावधान के प्रतिकुल है। इससे स्पष्ट होता है कि झारखण्ड सरकार मंत्रिपरिषद से कोई निर्णय लेते समय और सरकार के संबंधित विभाग उसकी समीक्षा और विधिक्षा करते समय नियम-कानून का कोई ख्याल नहीं रखते हैं। यह दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति है और मंत्रिपरिषद से निर्गत संकल्पों के औचित्य पर प्रश्नचिन्ह खड़ा करते हैं। यह कैसे संभव हो सकता है कि किसी सरकार का विधि विभाग मंत्रिपरिषद के समक्ष प्रस्तुत संकल्प की विधिक्षा करते समय संविधान और कानून के प्रावधान को नजरअंदाज करे। इसके लिए विधि विभाग सहित संबंधित विभागों के अधिकारियों से स्पष्टीकरण पूछा जाना चाहिए।
मंत्रिपरिषद के प्रासंगिक संकल्प और नगर विकास विभाग की प्रासंगिक अधिसूचना में नगरपालिका अधिनियम-2011 की धारा-481 में प्रावधान का उल्लंघन तो किया गया है, परन्तु इसका ध्यान नहीं रखा गया है कि जमशेदपुर औद्योगिक नगरी समिति में उपायुक्त के स्थान पर प्रभारी मंत्री/स्थानीय मंत्री का मनोनयन करते समय इस पद को लाभ के पद से अलग नहीं किया गया है। स्पष्ट है कि प्रभारी मंत्री/स्थानीय मंत्री जैसे ही औद्योगिक नगरी समिति के अध्यक्ष का पद धारण करेंगे वैसे ही इसे लाभ का पद होने के कारण वे अपने विधानसभा की सदस्यता गंवा बैठेंगे। यानी प्रासंगिक संकल्प और अधिसूचना आनन-फानन में जारी की गई है और प्रचलित नियम-कानून का भी ध्यान नहीं रखा गया है।
अंत में, मैं आपका ध्यान प्रासंगिक संकल्प और अधिसूचना में गठित जमशेदपुर औद्योगिक नगरी समिति के सदस्यों के मनोनयन की ओर भी आकृष्ट कराना चाहता हूँ और स्पष्ट करना चाहता हूँ कि जमशेदपुर औद्योगिक नगरी समिति का गठन करते समय जनता के संवैधानिक अधिकारों की घोर उपेक्षा की गई है। जमशेदपुर औद्योगिक नगरी समिति में 11 प्रतिनिधि टाटा स्टील की ओर से, 06 प्रतिनिधि राज्य सरकार की ओर से और स्थानीय शहरी प्रतिनिधि के रूप में 10 सदस्य (जमशेदपुर के सांसद, जमशेदपुर पूर्वी और पश्चिमी के विधायक सहित) शामिल किये गये हैं। प्रासंगिक संकल्प और अधिसूचना में यह भी अंकित है कि जमशेदपुर अधिसूचित क्षेत्र समिति के वार्ड संख्या- 1, 2, 3, 4, 5, 6, 7, 11, 12, 13, 14, 15, 16, 17, 18 एवं 19 (कुल 16 वार्ड) शामिल किये गये हैं, परन्तु यह प्रावधान नहीं किया गया है कि इन वार्डों के जनता का भी कोई निर्वाचित प्रतिनिधि इसमें होना चाहिए। मेरा आग्रह होगा कि संदर्भित संकल्प और अधिसूचना को निरस्त करते हुए जमशेदपुर औद्योगिक नगरी समिति में सभी वार्डों के निर्वाचित प्रतिनिधियों को भी स्थान मिलना चाहिए। इस तरह से जमशेदपुर की जनता का तीसरा मताधिकार भी सुरक्षित हो जाएगा।
अनुरोध है कि उपर्युक्त विवरण के आलोक में नगर विकास विभाग द्वारा जारी अधिसूचना संख्या-08/विविध/191/2014/न.वि.आ.-5842, दिनांक 28.12.2023 को अविलंब निरस्त करने, वर्तमान जमशेदपुर औद्योगिक नगरी समिति को पुनर्गठित करने, इसे भारत का संविधान और झारखण्ड नगरपालिका अधिनियम-2011 के प्रावधानों के अनुरूप करने तथा संबंधित वार्डों के निर्वाचित प्रतिनिधियों को इसमें स्थान देने की कृपा करेंगे।
सादर,
भवदीय
ह0/-
(सरयू राय)