चीन के वुहान शहर से फैला एक वायरस जिसने बहुत ही तेजी से पुरे विश्व को अपनी चपेट मे ले लिया। दुनिया बंद होने के कगार पर खड़ी हो गई, पुरा विश्व थम सा गया। ऐसा लगा मानो जैसे गतिशील समय कहीं रुक सा गया हो।
कोविद – 19 के नाम से विख्यात कोरोना महामारी से आज पूरा विश्व ग्रसित है। यह महामारी आपदा के रूप मे तो जरूर आई किन्तु इसने नए अवसरों को भी जन्म दिया और भविष्य में होने वाली भयावह दुर्घटनाओं से भी हमारा साक्षात दर्शन कराया । कोरोना से बचने के लिए तमाम आवश्यक वस्तुओ का निर्माण बहुत ही तेजी से हुआ जिसमें – फेस मास्क, हैण्ड ग्लव्स, हैंड वाश और सेनेटाइजर प्रमुख है। पीपीई किट (एक प्रकार से प्लास्टिक का बना हुआ वस्त्र जो पुरे शरीर को ढक कर रखता है ) का निर्माण भी अब होने लगा है। कोरोना काल में जहाँ एक ओर संक्रमित व्यक्ति के पास जाने से अपने लोग कतरा रहे थे वहां पर कई ऐसे भी थे जिन्होंने अपनी जान की परवाह किये बगैर कोरोना पीड़ित व्यक्ति की देखभाल उसके स्वस्थ होने तक की। इस सेवा में कई लोग शहीद हो गए।
लॉक डाउन ने भी सामाजिक और आर्थिक व्यवस्था को ही बदल कर रख दिया।
परिवार का पेट भरने की चिंता ने गरीबों और दैनिक कमाने वाले लोगो का सबकुछ छीन लिया। जिंदगी से जंग लड़ने को तैयार, लोग पैदल ही दूर-दराज़ शहरों से अपने घरो को लौटने लगे। सोचा – ऐसे समय में कम से कम नमक रोटी खाकर ही परिवार का गुजारा चल जाएगा। गाँव, घर में सबके साथ ही रहेंगे और इस बीमारी से भी सुरक्षित रहेंगे। लेकिन उन्हें क्या पता था जिससे वो बचना चाहते थे वो उनके साथ-साथ चल रहा है। कई लोग इस भागादौड़ी में ही अपनी जान गँवा बैठे। कई परिवार रोड पर आ गए, उनका सबकुछ ख़त्म हो गया। दैनिक मजदूरी और दैनिक दुकानदारी करने वाले लोग भुखमरी के कगार पर आ गए। कई सामजिक संगठनो ने आगे बढ़ कर इस चुनौती को स्वीकार किया और दैनिक लोगो की प्रमुख दैनिक आवश्यकताओं को पूरा करने में सहयोग दिया।
कोरोना काल में उन सिपाहियों को सलाम है जिन्होंने अपनी जान की परवाह न करते हुए अंजान और अज्ञात लोगो की सेवा की। इस बीमारी से निपटने के लिए डॉक्टर, स्वास्थ्यकर्मी और स्वच्छाग्रही असली नायक के हक़दार है। इस साल लगातार चुनौती भरे माहौल में काम करते हुए वे जरा भी विचलित नहीं हुए। भारत में कोरोना पर जीत का सेहरा इन सिपाहियों को मिलना चाहिए।
इस आपदा ने लोगो को जीवन के कई नए अनुभव दिए। जिंदगी से हारना कौन चाहता है इसलिए लोग इससे जीतने के करीब होते गए। आज जब कोरोना का कहर थोड़ा कम हुआ, तो लोग इस भयावह बीमारी का मजाक बनाने लगे। कोरोना पर जोक्स और कविताए भी बनने लगी। कइयों ने तो मास्क पहनना तक छोड़ दिया है।
लॉक डाउन के हटते ही थोड़े समय के लिए जीवन स्थिर-सा हो गया था। एक प्रकार से अनिश्चितता का माहौल बन गया था। हर किसी के मन में बस यही सब था – अब आगे क्या होगा ?? जिंदगी की रेलगाड़ी पटरी पर तो आ गई लेकिन रफ़्तार पकड़ना अभी बाकी है।
इस विषय पर हम आगे भी चर्चा करेंगे , हमारे साथ बने रहें। अपना ख्याल रखे, मास्क पहने और हाथ को सेनेटाइज या साबुन से धोते रहे।
धन्यवाद।