Jamshedpur | Jharkhand
हमें कार्बन उत्सर्जन को कम करना है। इसके लिए जो भी आधुनिक तकनीक विश्व में उपलब्ध हैं उसकी पहचान कर अपने देश के अनुकुल तकनीकि उद्योगों को उपलब्ध कराने के लिए एवं आवश्यकता अनुसार अपने लिए तकनीकी विकसित करनें के लिए सरकार, उद्योग, शिक्षण संस्थान एवं शोध संस्थानों को मिल कर कार्य करना होगा। तभी हम कार्बन उत्सर्जन संबंधित चुनौति का सामना कर सकते हैं। उक्त बातें आज दो दिवसीय विचार मंथन कार्यक्रम के दुसरे दिन भारत सरकार के विज्ञान एवं प्राद्योगिकी विभाग के तहत कार्य करने वाली संस्था TIFEC के कार्यपालक निदेशक प्रोफेसर प्रदीप श्रीवास्तव नें कही। श्री श्रीवास्तव ने आगे कहा कि कार्बन को सोखने वाले पदार्थ पर शोध चल रहा है। गहरे समुद्र में उसे दबाने की योजना पर भी कार्य चल रहा है। कार्बन उत्सर्जन कम करनें एवं उसके प्रभाव को कम करने के लिए सभी को मिल कर कार्य करनें की आवश्यकता है।
राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान जमशेदपुर के निदेशक प्रोफेसर गौतम सुत्रधार ने कहा कि एन आई टी जमशेदपुर हर प्रकार से इस कार्य में सहयोग करेगा एवं उद्योगजगत, शोध संस्थान एवं सरकार के बीच कड़ी का काम करेगा।
विचार-मंथन सत्र में विभिन्न एल्युमीनियम क्षेत्रों के प्रमुख, डॉ. ए.पी. मिश्रा, महाप्रबंधक, बाल्को ने बहुत सुन्दर तरीके से आल्मुनियम जगत के समस्या को रखते हुए कहा कि यदि अलमुनियम उत्पादन में कार्बन उत्सर्जन कम करना है तो एक ही उपाय है हरित उर्जा का उपयोग। हरित उर्जा का उत्पादन खर्च कैसे कम हो इस पर कार्य करने की आवश्यकता है।
उक्त बातें आज दिनांक 4 जुलाई 2023 को राष्ट्रीय प्रौद्धयोगिकी संस्थान जमशेदपुर के परिसर में विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग, भारत सरकार के प्रौद्योगिकी थिंक टैंक टिफैक (TIFAC) जलवायु परिवर्तन के संबंध में भारत के लिए डीकार्बोनाईजिंग से संबंधित प्रौद्योगिकी की आवश्यकता का मूल्यांकन (TNA) पर विभिन्न उधोग जगत , शैक्षणिक क्षेत्र और अनुसंधान संस्थान से जुड़े प्रबुद्ध लोगों के बीच विचार मंथन का आयोजन के दूसरे दिन में हुई ।
मुख्य रूप से, इसमें आज इसमें दो उद्धोग एल्युमिनियम और उत्पादन से जुड़े उद्धोग के संबंध में विचार मंथन हुआ। ये उद्धोग अधिकांश ग्रीनहाउस गैसों के उत्पाद के लिए जिम्मेदार हैं। इस मंथन से भारत के जलवायु परिवर्तन पर प्रभाव को संवारने के लिए प्रौद्योगिकी आवश्यकताओं की पहचान की जानी है एवं उसका यथासंभव उपाय खोजना है।
आज की चर्चा का मुख्य विषय एल्युमीनियम क्षेत्र में डीकार्बोनाईजिंग के लिए प्रौद्योगिकी की आवश्यकता का आकलन था। बैठक की शुरुआत हमारे मुख्य अतिथि प्रोफेसर प्रदीप श्रीवास्तव, कार्यकारी निदेशक, टीआईएफएसी, नई दिल्ली और प्रोफेसर गौतम सूत्रधर, निदेशक एनआईटी जमशेदपुर द्वारा दीप प्रज्ज्वलन के साथ की गई।
डॉ. किरम वनमा, प्रमुख प्रक्रिया एवं नवाचार बालको, डॉ. शरत आचार्य अध्यक्ष, एमकेएसपीएल और विभिन्न क्षेत्रों के अन्य गणमान्य व्यक्ति जैसे डॉ. बीके गिरी , सीजीएम (खान) गोवा, डॉ. सुमन कुमार, डीजीएम (खान) गोवा, डॉ. बी.एन. साहू। निदेशक, सीईएमएस, डॉ. संग्राम कदम, निदेशक कदम पर्यावरण। सलाहकार, डॉ. एस. रंगनाथन, सदस्य ईएसी-1 और टीआईएफएसी के अन्य वरिष्ठ वैज्ञानिक भी उपस्थित थे। यह सत्र भारत को एक स्वच्छ राष्ट्र बनाने के लिए एल्यूमीनियम क्षेत्रों में डीकार्बोनाइजेशन द्वारा शुद्ध तटस्थता के लिए प्रौद्योगिकी की आवश्यकता को समझने पर केंद्रित था।
मुश्किल से कम होने वाले क्षेत्रों को डीकार्बोनाइज करना एक महत्वपूर्ण चुनौती है लेकिन भारतीय और वैश्विक जलवायु लक्ष्यों को प्राप्त करने में एक महत्वपूर्ण कदम है। प्रौद्योगिकी इन क्षेत्रों में डीकार्बोनाइजेशन प्रयासों को चलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। बाधाओं की पहचान करने और कार्बन उत्सर्जन को प्रभावी ढंग से कम करने के लिए आवश्यक तकनीकी समाधान निर्धारित करने के लिए एक तकनीक विकसित करने की आवश्यकता है।
चूंकि भारत एल्यूमीनियम उत्पादन के लिए दुनिया भर में लौह और इस्पात के बाद दूसरा सबसे बड़ा धातु बाजार है। भारत प्रति वर्ष 3-4 मीट्रिक टन एल्युमीनियम का उत्पादन करता है। एल्युमीनियम की उत्पादन प्रक्रिया के दौरान बड़ी मात्रा में CO2 गैस का उत्सर्जन हो रहा है। इस प्रकार, एल्यूमीनियम उद्योग CO2 गैस उत्सर्जन और वैश्विक जलवायु परिवर्तन में भी बड़ा योगदानकर्ता हैं। विचार-मंथन सत्र में एल्यूमीनियम उत्पादन के विभिन्न क्षेत्रों पर चर्चा की गई और कुछ समाधान निकाले गए।
डीकार्बोनाइजेशन के लिए यहां कुछ प्रमुख विचार दिए गए हैं:
1. एल्युमीनियम उत्पादन के दौरान बड़ी मात्रा में ऊर्जा की आवश्यकता होती है, जो सीधे ताप विद्युत संयंत्रों से आती है। ये ताप विद्युत संयंत्र ऊष्मा उत्पादन के लिए कोयले का उपयोग करते हैं। कोयले के उपयोग से बड़े पैमाने पर CO2 गैस का उत्सर्जन होता है। इसलिए, थर्मल पावर प्लांट के स्थान पर हम वैकल्पिक ऊर्जा स्रोत जैसे, जल विद्युत, सौर ऊर्जा या किसी हरित ऊर्जा पर ध्यान केंद्रित कर सकते हैं।
2. हम उच्च तापमान प्रक्रियाओं के लिए बायोएनर्जी और हाइड्रोजन जैसे विकल्पों पर ईंधन स्विचिंग की भी तलाश कर सकते हैं।
3. हम एल्यूमीनियम उत्पादन में उपयोग की जाने वाली गलाने की प्रक्रियाओं में भी संशोधन कर सकते हैं। वर्तमान में, लगभग सभी एल्यूमीनियम प्राथमिक गलाने में कार्बन एनोड का उपयोग होता है जो इलेक्ट्रोलिसिस प्रक्रिया के एक भाग के रूप में CO2 जारी करता है। इन एनोड को निष्क्रिय एनोड द्वारा प्रतिस्थापित किया जा सकता है जो क्षय होने पर ऑक्सीजन छोड़ते हैं।
4. पुनर्चक्रित उत्पादन का अनुपात बढ़ाना, क्योंकि यह प्राथमिक उत्पादन की तुलना में बहुत कम ऊर्जा-गहन है
5. हम एडॉप्शन ऑफ कार्बन कैप्चर यूटिलाइजेशन एंड स्टोरेज (सीसीयूएस) तकनीक का भी उपयोग कर सकते हैं। जिससे CO2 का उत्सर्जन काफी कम हो जायेगा।
6. इनके साथ-साथ हम मैग्नेटिक कैपेसिटिव रूट का भी उपयोग कर सकते हैं, जिससे ऊर्जा की खपत 7% तक कम हो सकती है।
उपरोक्त बिंदुओं के अलावा प्रत्येक क्षेत्र के विकास के लिए समय और अर्थव्यवस्था के पैमाने पर उभरती प्रौद्योगिकियों पर भी विचार किया जाना चाहिए। प्रौद्योगिकी की वर्तमान स्थिति और वांछित डीकार्बोनाइजेशन लक्ष्यों के बीच अंतराल की पहचान करने की आवश्यकता है। इसके अलावा उचित समाधान खोजने के लिए अनुसंधान एवं विकास, शिक्षा जगत और सरकारी संगठनों के बीच सहयोगात्मक कार्य किया जाना चाहिए। साथ ही, वैश्विक विशेषज्ञता का लाभ उठाने और प्रौद्योगिकी तैनाती में तेजी लाने के लिए अंतरराष्ट्रीय सहयोग और ज्ञान-साझाकरण के अवसरों का पता लगाना आवश्यक है। इसे सर्वोत्तम प्रथाओं को साझा करने और प्रौद्योगिकी हस्तांतरण की सुविधा के लिए अन्य देशों, अंतर्राष्ट्रीय संगठनों और डीकार्बोनाइजेशन पर केंद्रित पहलों के साथ साझेदारी में और अधिक जुड़ाव की आवश्यकता है।