जमशेदपुर । झारखंड
विश्व आदिवासी दिवस के अवसर पर आदिवासियों के ज्वलंत मुद्दों पर सभा सह 193 नगाड़ा (संयुक्त राष्ट्रसंघ का कुल सदस्य देश 193) बजाकर पूरे विश्व के आदिवासियों को आदिवासी दिवस की शुभकामनाएँ एवं संदेश जोहार।
हमारे लिए विश्व आदिवासी दिवस मनाने का महत्व इसलिए और अधिक बढ़ जाता है क्योंकि भारत में आदिवासियों की आबादी अफ्रीका के बाद सर्वाधिक है। इसी उद्देश्य को लेकर सन 2007 में आदिवासी छात्र एकता ने गोपाल (रीगल) मैदान, जमशेदपुर में विश्व आदिवासी दिवस मनाने का फैसला किया 21 अक्टूबर 1945 को संयुक्त राष्ट्रसंघ के गठन के 50 वर्ष बाद संयुक्त राष्ट्रसंघ ने यह महसूस किया कि 21वीं सदी में भी विश्व के विभिन्न देशों में निवासरत आदिवासी समाज अपने मूलभूत जैसी समस्याओं से ग्रसित है।
आदिवासी समाज के उक्त रामस्याओं का निराकरण हेतु विश्व का ध्यानाकर्शण के लिए वर्ष 1994 में संयुक्त राष्ट्रसंघ के महासभा द्वारा प्रतिवर्ष 9 अगस्त को विश्व आदिवासी दिवस मनाने का फैसला लिया गया। आदिवासी बहुल देशों में 9 अगस्त को विश्व आदिवासी दिवस बड़े जोर-शोर से मनाया जाता है जिसमें भारत भी शामिल है। पूरे विश्व में निवास करने
वाले एवं संयुक्त राष्ट्र संघ के 193 सदस्य देशों तक “आदिवासी बचेगा तो दुनिया बचेगा”, नारा का संदेश पहुँचाने के उद्देश्य से रीगल मैदान में 193 नगाड़ा की गुंज पर कार्यक्रम का शुभारम्भ होगा। आदिवासी दिवस के अवसर पर केन्द्र एवं राज्य सरकार के समक्ष सकारात्मक पहल हेतु निम्नलिखित मांगों को रखा जाएगा:
1. आदिवासियों को 1921 में (प्रकृति पूजक) एनिमिस्ट, 1931 में आदिम जनजाति, 1935 में पिछड़ा जनजाति और भारत सरकार ने 1950 में लागू किए गए संविधान में अनुसूचित जनजाति का नाम दिया। हम आदिवासी प्रकृति पूजक है, हमारा धर्म सरना है, हम सरना धर्मावलम्बी इसलिए जोर-शोर से सरना कोड की मांग कर रहे हैं क्योंकि जैन धर्मावलम्बी जिनकी संख्या करीब 45 लाख है, उनसे भी हमारी संख्या ज्यादा है इसलिए हम केन्द्र सरकार से आने वाले जनगणना में सरना कोड की मांग करते हैं।
2. देश के अन्य राज्यों में भी आदिवासी की आबादी है परन्तु अनुसूचित क्षेत्र नहीं है जैसे कि पश्चिम बंगाल। अतः केन्द्र सरकार उन राज्यों के आदिवासी क्षेत्र को अनुच्छेद 244 (1) के तहत् भारतीय संविधान के पाँचवी अनुसूची में शामिल करें।
3. देश में एक तरफ कुछ समुदाय आदिवासी बनने की मांग कर रही है, वहीं दूसरी तरफ असम में रहने वाले संथाल हो, मुण्डा, उराँव के साथ-साथ अन्य आदिवासियों को आदिवासी का दर्जा संवैधानिक रुप से नहीं मिल रहा है। असम में इन आदिवासियों को टी ट्राईब्स (Tea Tribes) के नाम से पुकारा जाता है। अतः हम असम में रहने वाले संथाल, आदिवासियों को उनका हक दिलवाने में उनके साथ है।