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सोशल न्यूज़

अंग्रेजी हुकूमत की नींव हिलाने वाले प्रथम स्वतंत्रता सेनानी वीर शहीद मंगल पांडे की जयंती पर ह्यूमन वेलफेयर ट्रस्ट ने करवाया भोजन वितरण का कार्यक्रम। जिसमें मुख्य अतिथि रहें करीम सिटी कॉलेज के प्रिंसिपल डॉ मोहम्मद रियाज़।

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Jamshedpur : 20 जुलाई, 2022

अंग्रेजी हुकूमत की नाफरमानी की सजा निर्दयतापूर्ण मौत होती थी शायद यह सब जानते हुए भी पांडे जी ने अंग्रेजी हुकूमत की नींव हिला डाली थी।

उनके इस पराक्रम को भारत कभी भूल नहीं सकता। उनकी याद में आज ह्यूमन वेलफेयर ट्रस्ट द्वारा एमजीएम अस्पताल में 570 जरूरतमंदों के बीच भोजन का वितरण किया गया। जिसमे बतौर मुख्य अतिथि डॉ मोहम्मद रियाज़ प्रिंसिपल करीम सिटी कॉलेज जमशेदपुर शामिल हुए। उन्होंने अपने हाथों द्वारा अस्पताल में रह रहे मरीजों के अभिभावक, रिश्तेदार और अटेंडर के बीच स्वादिष्ट भोजन फल एवं मिनरल वॉटर का वितरण किया।
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आज के इस कार्यक्रम का हिस्सा बन कर डॉ मोहम्मद रियाज़ बहुत ही गौरान्वित महसूस कर रहे थे। इस अवसर पर उन्होंने संस्था के कार्यों की काफी प्रसंशा की। साथ ही उन्होंने प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के मुख्य क्रांतिकारी मंगल पांडे जी की जीवनी के बारे में प्रकाश डालते हुए बताया कि –
19 जुलाई 1827 ईस्वी को फैजाबाद के सुरुरपुर में जन्में मंगल पांडे को पूरे विश्व में भला कौन नहीं जानता। ये एकलौते ऐसे शख्स थे जिन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ क्रांति की शुरुवात कर दी थी। मूल रूप से ये बलिया जिले के नगवा गांव के रहने वाले थे। बाद में वह अपने गृह जनपद बलिया आ गए। आपको बता दें कि 1849 में उन्होंने मात्र 18 वर्ष की उम्र में अंग्रेजी हुकूमत ईस्ट इंडिया कंपनी में 34वीं बंगाल नेटिव इन्फैन्ट्री में सिपाही के तौर पर भर्ती हो गए थे।
वर्ष 1850 में सिपाहियों के लिए नई इनफील्ड राइफल आई, जिसमें कारतूस को लोड करने के लिए मुंह से काट कर भरा जाता था। ऐसा माना जाने लगा कि इनफील्ड राइफल की कारतूस में गाय और सुअर की चर्बी मिली होती थी। यह बात हिंदु और मुस्लिमों की धार्मिक भावनाओं के साथ खिलवाड़ जैसा था। यह बात मंगल पांडे को रास नहीं आई और उन्होंने 29 मार्च 1957 को अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ  बंगाल के बैरकपुर छावनी से विद्रोह कर दिया।
उन्होंने कारतूस का इस्तेमाल करने से मना कर दिया और साथ ही अन्य सिपाहियों को भी विद्रोह के लिए प्रेरित किया। ‘मारो फिरंगी को’ नारा देते हुए उन्होंने दो अंग्रेज अफसरों पर हमला कर दिया। लेकिन वे पकड़े गए। उनपर मुकदमा चला और बगावत के खिलाफ होने पर उन्हें फांसी की सजा 18 अप्रैल को सुनाई गई लेकिन विद्रोह के डर से 10 दिन पहले ही यानी 8 अप्रैल 1857 को मंगल पांडे को फांसी दे दी गई। उनकी फांसी के बाद पूरे देश में विद्रोह की आग भड़क गई। मेरठ, कसौली, कांगड़ा, धर्मशाली समेत देशभर में कई जगहों पर सिपाहियों और आम लोगों में अंग्रेजों के खिलाफ आक्रोश बढ़ने लगा।
मंगल पांडे के सम्मान में 1984 में भारत सरकार ने डॉक टिकट जारी किया था। वहीं उनकी जीवनी पर वर्ष 2005 में ‘मंगल पांडे- द राइजिंग’ नाम की फिल्म भी बनी थी।
संस्था के सदस्यों ने स्वतंत्रता संग्राम की अलख जगाने वाले मंगल पांडे की याद में आज का कार्यक्रम रखा जिसमें मुख्य रूप से संस्था के अध्यक्ष मतिनुल हक अंसारी और मुख्तार आलम खान, अनिल मंडल, ताहिर हुसैन, सैय्यद साजिद, आसिफ अख्तर, मास्टर खुर्शीद खान, मोइनुद्दीन अंसारी, हाजी अयूब अली, मासूम खान और शाहिद परवेज शामिल हुए।
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