हिन्दुओं का नववर्ष: चैत्र शुक्ल प्रतिपदा
नववर्ष विशेष : “अंग्रेजी का यह नववर्ष हमें मंजूर नहीं क्योंकि यह अपना उत्सव त्यौहार नहीं।” यह विचार हिन्दू नववर्ष यात्रा के संस्थापक मृत्युंजय कुमार ने व्यक्त किए हैं। भारतीय संस्कृति और परंपराओं का सम्मान करते हुए, हमें यह समझना होगा कि हिंदुओं का वास्तविक नववर्ष चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को मनाया जाता है।
यह दिन हिंदू पंचांग के अनुसार वर्ष का पहला दिन होता है। इसे महाराष्ट्र में गुड़ी पड़वा, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में उगाड़ी, कर्नाटक में युगादि, और अन्य स्थानों पर अलग-अलग नामों से मनाया जाता है। यह पर्व न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह हमारी संस्कृति और परंपराओं का प्रतीक भी है।
अपनी परंपरा का महत्व
आज जब हम अंग्रेजी नववर्ष को बड़े पैमाने पर अपनाते हैं, हमें अपनी सांस्कृतिक धरोहर को नहीं भूलना चाहिए। पश्चिमी नववर्ष केवल ग्रेगोरियन कैलेंडर का हिस्सा है, जबकि हिंदू नववर्ष धार्मिक, सांस्कृतिक और प्राकृतिक तत्त्वों से जुड़ा है।
हमें अपनी पहचान और परंपराओं पर गर्व होना चाहिए। चैत्र शुक्ल प्रतिपदा न केवल नव आरंभ का पर्व है, बल्कि यह हमारी संस्कृति की समृद्धि का प्रतीक भी है।
अंग्रेजी नववर्ष और समाज में बदलती परंपराएं
अंग्रेजी नववर्ष का आगमन हमारे देश में एक उत्सव के रूप में मनाया जाने लगा है। हालांकि, इस अवसर पर होने वाली कुछ गतिविधियां हमारी संस्कृति और सामाजिक मूल्यों से मेल नहीं खातीं। शराब का अत्यधिक सेवन, शबाब (फैशन और आधुनिकता के नाम पर अनुचित प्रदर्शन), अभद्र नृत्य, और गाड़ियों की खतरनाक गति—ये सब ऐसी चीज़ें हैं जो इस पर्व की गरिमा को घटाती हैं।
पश्चिमी संस्कृति का अंधानुकरण
आज अंग्रेजी नववर्ष का जश्न मनाने का तरीका पश्चिमी सभ्यता की नकल करता हुआ दिखता है। आधुनिक और एडवांस दिखने के नाम पर युवा वर्ग शराब और नशे का सहारा लेता है। क्लबों और पार्टियों में रातभर चलने वाले कार्यक्रमों में अभद्र व्यवहार और गंदे नृत्य आम हो गए हैं। इस प्रकार का वातावरण न केवल हमारी संस्कृति का अपमान करता है, बल्कि समाज में एक गलत संदेश भी देता है।
समाज और सुरक्षा पर प्रभाव
नववर्ष के दौरान गाड़ियों को तेज़ गति से चलाने और नियमों की अनदेखी करने से सड़क दुर्घटनाओं की संख्या बढ़ जाती है। नशे में वाहन चलाने के कारण अनगिनत जानें चली जाती हैं। इसके अलावा, सार्वजनिक स्थानों पर अशोभनीय आचरण समाज के नैतिक ताने-बाने को कमजोर करता है।
परंपरा और आधुनिकता का संतुलन
यह सच है कि समय के साथ जीवन में बदलाव आवश्यक है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि हम अपनी जड़ों को भूल जाएं। हमें यह समझने की ज़रूरत है कि आधुनिकता का अर्थ अनुशासन और बेहतर सोच है, न कि अपनी संस्कृति को त्याग देना। उत्सव मनाने का उद्देश्य खुशी और सकारात्मक ऊर्जा फैलाना होना चाहिए, न कि अनुशासनहीनता और सामाजिक अशांति को बढ़ावा देना।
एक जिम्मेदार समाज की ओर
अंग्रेजी नववर्ष का जश्न एक सकारात्मक शुरुआत का प्रतीक हो सकता है, यदि इसे सही तरीके से मनाया जाए। इसके लिए हमें निम्नलिखित कदम उठाने चाहिए:
1. संस्कार और संस्कृति का पालन: जश्न मनाते समय हमारी संस्कृति और परंपराओं का सम्मान करना चाहिए।
2. शराब और नशे से बचाव: पार्टी और उत्सव में शराब या अन्य नशे की वस्तुओं का कम से कम उपयोग करें।
3. सुरक्षा नियमों का पालन: वाहन चलाते समय ट्रैफिक नियमों का पालन करें और नशे में ड्राइविंग से बचें।
4. सामाजिक जिम्मेदारी: सार्वजनिक स्थानों पर शांति और मर्यादा बनाए रखें।
हिन्दुओं का नववर्ष: चैत्र शुक्ल प्रतिपदा
हिन्दू धर्म में नववर्ष का शुभारंभ चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से होता है। यह दिन वसंत ऋतु की शुरुआत का प्रतीक है और पूरे भारत में इसे भिन्न-भिन्न नामों से मनाया जाता है, जैसे महाराष्ट्र में गुड़ी पड़वा, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में उगाड़ी, कर्नाटक में युगादि, और कश्मीर में नवरोज। यह नववर्ष हिंदू पंचांग के अनुसार चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से प्रारंभ होता है।
यह भी पढ़ें : युवक की हत्या: दुर्ग में लव ट्रायंगल का खूनी खेल
इतिहास और महत्व
चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को ब्रह्मा जी द्वारा सृष्टि निर्माण का दिन माना गया है। इसी दिन भगवान राम का राज्याभिषेक भी हुआ था। यह दिन विक्रम संवत का प्रारंभिक दिवस भी है, जो सम्राट विक्रमादित्य की विजय के उपलक्ष्य में आरंभ हुआ था। यह संवत्सर भारतीय कालगणना का महत्वपूर्ण हिस्सा है।
धार्मिक और सांस्कृतिक विशेषताएँ
हिंदू नववर्ष धार्मिक एवं सांस्कृतिक दृष्टि से अति महत्वपूर्ण है। इस दिन घरों में पूजा-अर्चना, मंगल कार्य और नए संकल्पों का प्रारंभ किया जाता है। शुभ मुहूर्त में पूजा कर गुड़ी (ध्वज) को फहराया जाता है, जो विजय और समृद्धि का प्रतीक है। महिलाएँ रंगोली सजाती हैं, और विभिन्न व्यंजन बनाए जाते हैं।
इस नववर्ष का एक और विशेष पहलू यह है कि यह प्रकृति के साथ तालमेल बिठाने का पर्व है। फसल कटाई के इस मौसम में नई ऊर्जा का संचार होता है।
पश्चिमी नववर्ष से भिन्नता
पश्चिमी नववर्ष 1 जनवरी को मनाया जाता है, जो केवल ग्रेगोरियन कैलेंडर पर आधारित है। इसके विपरीत, हिंदू नववर्ष धार्मिक, सांस्कृतिक और प्राकृतिक दृष्टि से अधिक सार्थक और प्राचीन परंपराओं का प्रतिनिधित्व करता है।
हमें गर्व करना चाहिए कि हमारे त्यौहार और परंपराएँ न केवल आध्यात्मिक हैं, बल्कि वैज्ञानिक आधार भी रखती हैं। यह नववर्ष भारतीय संस्कृति की समृद्धि और गौरव का प्रतीक है।