जमशेदपुर | झारखण्ड
सामाजिक संस्था जन सत्याग्रह के द्वारा आज उपायुक्त महोदय के द्वारा मुख्यमंत्री महोदय के नाम जमशेदपुर के कुछ हिस्से को बांट कर औधोगिक शहर घोषित की जा रही है यह देश के इतिहास में पहला ऐसा स्थान होगा जहाँ इस तरह के कानून को लागू करने की बात की जा रही है। हमारी सामाजिक संस्था जन सत्याग्रह जमशेदपुर की आम जनता से बिना राय-मशविरा लिए इस तरह के एकतरफा कानून बनाने का पुरजोर विरोध करती रही है और करती रहेगी। हमारी सामाजिक संस्था जन सत्याग्रह ने आम जनता से इस मुद्दे पर राय ली है जिसपर ज्यादातर लोगों का विचार नगर निगम के गठन और मालिकाना हक पर ही आया है।
महाशय,
सामाजिक संस्था जन सत्याग्रह की यह मांग है कि लोकतंत्र में किसी भी हालत में शासन व्यवस्था जनता के हाथों में (चुने हुए जन प्रतिनिधि) ही होनी चाहिए क्योंकि टाटा कंपनी ने लीज एग्रीमेंट के समय यह लिखकर दी थी कि कंपनी यहाँ की सभी बस्तियों में नागरिक सुविधा देगी तथा सभी बस्तियों जो लीज एरिया के अधीन है उसमे पानी, बिजली, और सड़क की सुविधा प्रदान करेगी जो अब तक प्रदान नहीं की है। इसलिए सबसे बड़ा प्रश्न यह उठता है कि किस आधार पर कंपनी के बातों पर भरोसा किया जाये। कंपनी के बातों और वादों को क्यों नहीं विरोधाभास समझा जाए?
जमशेदपुर की आम जनता के मन में कुछ प्रश्न उठ रहे है जिनका समाधान किये बिना ऐसे किसी भी फैसला का कोई मलतब नहीं होगा:-
1. लोकतंत्र में शासन व्यवस्था किसी क्षेत्र के रसूखदार व्यक्ति या कंपनी के हाथों में सौंप देना क्या राजतंत्र की एक तरह से पुनः स्थापना नहीं है? तब फिर इसी तरह हर शहर में अगर बड़े व्यवसायी को उस नगर के संचालन का जिम्मा दे दिया जाय और लोक प्रशासन संचालन कमिटी के द्वारा चलाया जाने लगे तो फिर ऐसे स्थानों में सांसद और विधायक या अन्य जन प्रतिनिधि की चुनाव की क्या आवश्यकता है? अगर शासन व्यवस्था निजी हाथों में देना है तो राजतंत्र को खत्म क्यों किया गया?
2. टाटा स्टील अपने कर्मचारियों के लिए आचार संहिता (Code of Conduct) बनाये हुए है जिसके मुताबिक कंपनी का कोई भी कर्मचारी कंपनी के खिलाफ किसी तरह का विरोध या धरना प्रदर्शन नही कर सकता है ना इसके विरुद्ध आवाज उठा सकते हैं उदाहरण के तौर पर कुछ वर्ष पूर्व ग्रेड रिविजन को लेकर एन.एस.ग्रेड के कर्मचारियों में कुछ बिन्दुओं पर असंतोष था जिसे लेकर कर्मचारी अपने यूनियन कार्यालय में जो कि कंपनी परिसर से बाहर है वहाँ प्रदर्शन करने लगे नेताओं के असहयोगात्मक रवैये के कारण कर्मचारी नारेबाजी करने लगे और कंपनी ने इसे भी आचार संहिता (Code of Conduct) का उल्लंघन मानते हुए कई कर्मचारियों को बर्खास्त कर दिया ऐसे में अगर औधोगिक नगर संचालन कमिटी में कंपनी का प्रतिनिधित्व, हस्तक्षेप या अधिकार होता है तो उसके कर्मचारी इस औधोगिक नगर के वाशिंदे होंगे वो अपनी आवाज नहीं उठा पाएंगे क्योंकि कर्मचारी के द्वारा ऐसा करने पर कंपनी अपने आचार संहिता (Code of Conduct) का उल्लंघन मानेगी और डर के चलते नागरिक सुविधाओं को लेकर कोई आवाज नहीं उठा पाएंगे ऐसे में औधोगिक नगर का चेहरा कर्मचारियों के लिए भयभीत करने वाला होगा?
3. क्या जनता को पूंजीपतियों का गुलाम बनाये जाने की यह शुरुआत नहीं है?
4. क्या केंद्र और राज्य सरकार यह मान चुकी है कि चुने हुए सारे जन प्रतिनिधि असमर्थ है और इनसे अच्छा कार्य नहीं हो सकता है?
5. निजी हाथों का समर्थन करने वाले जन प्रतिनिधि पहले अपने–अपने पदों से इस्तीफा दे क्योंकि जब सभी कार्य का संचालन कमिटी करेगी तो आप रह कर क्या करेगें और आपकी प्रासंगिकता क्या होगी? सांसद और विधायक अपने विकास फंड को बंद करवाने का आवेदन सरकार से करे क्योंकि तब इस फण्ड की आवश्यकता ही क्या होगी? अगर भविष्य में कंपनी घाटे में या मंदी का दौर आता है तो वह वैसे हालात में भी नागरिक सुविधाओं पर होने वाले खर्च को कौन वहन करेगा? अगर उन हालात में जनता का पैसा (सरकारी पैसा) खर्च होता है तो यह कोई बिना चुना हुआ प्रतिनिधि कैसे खर्च कर सकता है?
6. जो कंपनी लाभ में छोटे से उतार चढ़ाव पर अपने मजदुरों का हक मारती हो जैसे:- लेबर सेस का रकम जमा नहीं करती हो, अस्थायी ठेका कर्मियों को स्थायी नहीं बना पाती हो, पूर्ण रूप से ESI एवं PF की कटौती हो रही है कि नहीं इसकी सही निगरानी नहीं कर पाती हो जो वायु और जल प्रदूषण फैला रही हो ऐसी कंपनी पर लम्बे समय तक के लिए कैसे विश्वास किया जाये?
7. लीज शर्तो में कंपनी ने शहर में नागरिक सुविधा प्रदान करने के लिए लिखित तौर पर शपथ लिया था लेकिन जब सुविधाएँ देने की बात हुई तो कानूनी दांव-पेच गिनाने लगे अगर वे इस मुद्दे पर गंभीर थे तो वह बताये कितने सामुदायिक भवनों, सरकारी विद्यालयों में पानी एवं बिजली की सुविधा प्रदान की है? कितने बस्तियों के चौक-चौराहों और सड़कों के किनारे स्ट्रीट लाइट एवं ड्रेनेज की व्यवस्था दी है? अगर कंपनी इन सार्वजनिक जगहों पर भी सुविधा दे देती तो उस पर विश्वास करने का एक आधार बन सकता था कंपनी, सरकार, विधायक और सांसद बताये कि ऐसी स्थिति में किस तरह इस पर विश्वास किया जाए?
महोदय इसके पूर्व भी हमलोगों ने दिनांक:– 16.09.2014 एवं दिनांक:– 20.01.2016 एवं दिनांक:– 21.12.2016 एवं दिनांक:– 30.01.2017 को जमशेदपुर को औधोगिक शहर घोषित करने के प्रयास का पूर्णतः विरोध किया था। लोकतंत्र में शासन व्यवस्था जनता के द्वारा चुने हुए जन प्रतिनिधि के हाथों में ही हो इसकी मांग करता है।