जमशेदपुर | झारखण्ड
अपनों के बिछड़ने की तकलीफ क्या होती है वही जानता है जिसने अपनों को खोया है। और उस तकलीफ का क्या जिसे अपनों ने ही दिया हो। खासकर उस माता पिता के दिलों पर क्या बीतती होगी जिनके कलेजे के टुकड़े ने उन्हें घर से निकाल कर अनाथ आश्रम में रोने के लिए छोड़ दिया हो। भले ही आज उस अनाथ आश्रम को वृद्धा आश्रम क्यों न कहते हो।
“जिसे सीने से लगाकर पाला, उसकी नन्ही ऊँगली पकड़ कर ककहरा सिखाया वो आज अंग्रेजी झाड़कर यहाँ (वृद्धा आश्रम) छोड़ गया।”
हम बात कर रहे हैं जमशेदपुर शहर के बाराद्वारी में स्थित ओल्ड एज होम की। जहाँ आपको कई ऐसे वृद्ध मिल जायेंगे जिनकी डबडबाई आँखें अपने बच्चे के वापस आने का इंतजार करती रहती हैं। किसी नौजवान मेहमान के आने पर उन्हें हर दिन ऐसा लगता है जैसे उनका बेटा उन्हें लेना आया है। इसी आस में वो यहाँ हर दिन गुजार लेते हैं। उनका शरीर बूढ़ा जरूर है मगर उनका हौसला आज भी युवा है और यही सोचता है की काश वो दिन जल्द आ जाये की मैं अपने बच्चों के घर लौट जाऊँ।
उन्हें अपनों की कमी दूर करने और अपनों का अहसास दिलाने शहर के प्रमुख समाज सेवी पूर्वी घोष और शांतनु हल्दर पहुंचे और वृद्धों की सेवा कर उनका आशीर्वाद प्राप्त किया। आशीर्वाद ओल्ड एज होम में उन्होंने गुप्त दान किया, ताकी वहां पर रह रहे लोगो को आज का बेहतर भोजन कराया जा सके।
आपको बता दें की आज शान्तनु हल्दर के पिताजी की पुण्यतिथि थी। अपने पिता की कमी को दूर करने के लिए उन्होंने यहाँ पर रह रहे लोगो के साथ समय बिताया। वे अक्सर यहाँ आकर इनके बीच समय बिताया करते हैं और गिफ्ट दिया करते हैं।
आज के समय में अजीब विडंबना है की लोग अपने घर से बुजुर्गों को अलग कर वृद्धाश्रम का रास्ते दिखा देते हैं और वहां पर ले जाकर छोड़ देते हैं। माँ बाप अपने बच्चों को किसी भी प्रकार का दुःख नही देते, पर बच्चे कैसे अपने माँ – बाप को वृद्धाश्रम पहुंचा देते हैं?
ऐसे बच्चों के साथ ही अगर इस तरह की घटना घटे तो उन्हें कैसा महसूस होगा? वृद्धाश्रम में वृद्ध जनों से मिलकर पूर्वी घोष काफी भावुक हो गए। वहीँ यहाँ पर रह रहे वृद्धजनों ने गुनगुनाते हुए अपनी भावना को प्रकट किया।
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